सोमवार, 3 अगस्त 2015

देश के गरीबी बनाम सरकार का नैतिक दिवालियापन


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भारत में 2011 से 2012 के बीच में 8.49 करोड़ लोग गरीब नहीं रहे. वे उस रेखा के ऊपर आ गए हैं जिसमे लोग उलझे रहते हैं पर वह सरकारों को दिखाई नहीं देती. अब तक यह कहा जाता रहा है कि देश की बड़ी आबादी निरक्षर है, परन्तु भारत का योजना आयोग मानता है कि देश की आबादी गंवार और बेवक़ूफ़ है. इसे गुलामी की आदत है, इसलिए इस पर शासन किया जाना चाहिए. वह मानता है कि गरीबी को वास्तविक रूप में कम करने की जरूरत नहीं है, कुछ अर्थ शास्त्रियों ने आंकड़ों को बाज़ार की भट्टी में गला कर एक नया हथियार बनाया है, जिसे वे गरीबी का आंकलन (ESTIMATION OF POVERTY) कहते हैं. उन्होंने यह तय किया है कि सच में तो लोग गरीबी से बाहर नहीं निकलना चाहिए परन्तु दिखना चाहिए कि गरीबी कम हो रही है. तो वे बस एक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले खर्चे को इतना तंग करते चले जा रहे हैं कि भारतीय नागरिक का गला दबता जाए.

सोमवार, 27 जुलाई 2015

मेरे चहेते राष्ट्रपति जो भारत के मिसाइल मैंन थे की म्रत्यु पर मुझे भी अपने मन के अन्दर अश्क गिरने की शिकायत हो गई ---------- न जाने क्यूँ


पूर्व राष्ट्रपति, मशहूर वैज्ञानिक एवम् भारत के मिसाइल मैन, भारत रत्न डॉ0 ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के निधन की सूचना पाकर अपार दुःख हुआ। सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए ये अपार क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। आप जैसे लोग इस धरती पर बार-बार जन्म लें।

शनिवार, 11 जुलाई 2015

विचारो के मंथन

विचारो के मंथन से माखन जैसे अभिव्यक्ति जन्म लेती है, पर भेड़चाल वाली स्वीकारिता जहर के समान होती है

शब्दों का जादूगर

शब्दों को क्या कहू, कमबख्त हर स्वाद उनके अन्दर है, जिसे उनकी जादूगरी आ गई वो शब्दों का जादूगर बन जाता है

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

सद्भावना और भावना

हम ऐसे देश मे रहते है, जहाँ भावना जल्द जागती है और देर से सोती है, पर सद्भावना देर से उठ कर जल्द सो जाती है  @SHAKTIANAND1

कामयाबी

कामयाबी किसी चिडिया का नाम नही, बल्कि वो तो एक शिकार है, जो अवसर पर प्रयास न करने पर दुर चली जाती है, और फ़िर तलाश करनी पड़ती है 

सोमवार, 29 जून 2015

यहां चलती है साहब की हुकूमत!

Shakti Anand Kanaujiya
यहां साहब की हुकूमत चलती है! नियम, शासनादेश सब बेईमानी है जो साहब ने कह दिया, वही होना है हम बात कर रहे है लोक निर्माण विभाग की। बड़े साहब का फरमान सर आंखो पर, जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है। कोई कर्मचारी नेता विरोध करता है तो उसे हिदायत दी जाती है कि ऐसी भूल न करो न तो पश्चाना पड़ेगा। कर्मचारियों की क्या मजाल है कि वह कुछ बोल पायें। विभागीय सूत्रों की मानें तो लोक निर्माण विभाग के बड़े साहब के आगे किसी की नही चलती है। जो विभागीय कार्य होते है वह अपनी इच्छा से करवाते है पता चला है कि साहब की शासन में काफी पकड़ है। सड़के निर्माण कराने का कार्य हो या कोई अन्य, हो ही नही सकता है उसमें गड़बड़ी न हो। एकाध काम छोड़ दिया जाय तो सब में गड़बड़ी है और बड़े पैमाने पर। यह बात तो कर्मचारी यूनियन भी जानते है लेकिन वह अपनी पेट पर लात क्यों मारेंगे क्योंकि साहब से कह कर कई काम कराते है कुछ नेता विरोध करते भी है तो वह हिदायत पा जाते है और उनके लिए इतना काफी है। बताया जाता है कि साहब बड़े-बड़े घोटाले किए है और उसे पचा भी गये है उनकी पचाने की क्षमता काफी है। किसी में जांच आ भी गयी तो कौन जांच करेगा। शासन में कुछ ले देकर वह मामला सब फिट कर देंगे। उनसे उलझने की हिम्मत कोई नही करता है। कुछ कर्मचारी भी इसी में हाथ सेक लेते है यदि कुछ चर्चित अधिकारी, कर्मचारी की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच करा दी जाय तो मामला आईने की तरह साफ हो जाएगा और सच जनता के सामने आ जायेगा। ऐसे में लोक निर्माण विभाग का भगवान ही मालिक है।http://shakti-anand.blogspot.com

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...