शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

प्रकोप जारी है

कोविड़–१९ के प्रकोप का दौर अभी भी जारी ही रहेगा क्योंकि वायरस किसी भी ढंग से कम नहीं हो रहा है। समूचे विश्व में तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोना संक्रमितों के आकड़ों में कमी नहीं आ रही है। लेकिन यह जरूर है कि देश भर में मृत्यु दर में गिरावट आई है। परंतु इसे फिर भी इत्मिनान लायक नहीं माना जा सकता‚ बल्कि जान का जोखिम तो अभी भी बना हुआ ही है। हमें अभी और एहतियात बरतने की भी आवश्यकता है॥

मनरेगा मजदूरी कम

आधार के आने से मनरेगा भुगतान में फायदा देखने को मिला है लेकिन फिर भी कुछ समस्या है जो समझाने की जरूरत है। धीरे से मुआवजे का भुगतान करने से बचने के लिए प्रणाली विकसित हो क्योंकि मजदूरी के भुगतान में देरी जानबूझकर दबा दी जाती है। अठारह राज्यों में मनरेगा मजदूरी दरों से कम रखी गई है। काम की बढ़ती मांग के कारण योजना धन से बाहर चल रही है। कई राज्यों में सूखे और बाढ़ के कारण काम की मांग बढ़ गई है। राज्यों में मनरेगा मजदूरी में डाटा की असमानता है। मजदूरी इस समय लगभग सभी राज्यों में मनरेगा मजदूरी से अधिक है। मनरेगा को सरकार की अन्य योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए। जैसे कि ग्रीन इंडिया पहल‚ स्वच्छ भारत अभियान आदि।

चुनाव और वह भी चीन में!

आगामी ६ सितम्बर को हांगकांग की ७० सदस्यों वाली विधान परिषद् का चुनाव होना निश्चित है। मगर इस बार का मंजर बिल्कुल अलग होने वाला है। जैसा कि डर था वैसा ही हुआ। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अस्तित्व में आने के कारण अब चुनाव केवल नाम का रह जाएगा क्योंकि नामांकन के दौरान ही १२ संभावित प्रत्याशियों‚ जो लोकतंत्र के समर्थक थे‚ को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। पिछले साल जिला परिषद चुनावों में लोकतंत्र समर्थकों को जोरदार जीत हासिल हुई थी। लगता है कि वो सब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा क्योंकि साम्यवादी चीन में चुनाव नहीं‚ केवल चयन होता है॥

शिक्षा नीति को लेकर सवाल

मोदी सरकार ने देश की शिक्षा नीति में लगभग ३४ वर्ष बाद जो भारी और अच्छा बदलाव किया है‚ उस पर सभी के अपने–अपने विचार हो सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सवाÈगीण विकास हो सके। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस नीति से गरीब से गरीब लोगों के बच्चे भी डॉक्टर‚ इंजीनियर बन पाएंगेॽ क्योंकि इन विषयों की पढ़ाई के लिए लोगों को भारी खर्चा करना पड़ता है। क्या देश का हर गरीब बच्चा स्कूल जा पाएगा या फिर आधुनिक तकनीक से पढ़ाई कर पाएगाॽ क्या सरकारी स्कूलों में अध्यापकों और आधुनिक पढ़ाई के साधनों की जो कमी है‚ उसे समय पर पूरा किया जा सकेगाॽ क्या जातिगत आरक्षण इस नई शिक्षा के रास्ते में बाधा तो नहीं बनेगाॽ॥

सोमवार, 27 जुलाई 2020

कड़़ी कार्रवाई जरूरी

दिल्ली हमेशा ही चर्चा में रहती है। प्रत्येक वर्ष कुछ महीने के लिए दिल्ली में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इसी के कारण कूड़़ा जलाने पर भी प्रतिबंध है। इसके बावजूद खुलेआम नशीले पदार्थों की बिक्री होती है। १८ वर्ष से कम आयु के लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए मनाही है‚ लेकिन सिर्फ कागजों पर। जब भी प्रतिबंध लगाया जाता है तो कुछ दिनों तक सख्ती देखने को मिलती है। बाद में सब साधारण हो जाता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसे नियमों को लाने के बाद सख्ती से पालन भी कराएं और नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई भी हो‚ तभी इनसे निजात पाया जा सकता है।

जनता से संवाद

कल ‘मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस के प्रति देश की जनता को आगाह किया। उन्होंने कहा कि खतरा अभी भी टला नहीं है; इसलिए मास्क पहनना और दो गज की दूरी बनाए रखना जरूरी है। संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने मास्क पहनने से होने वाली परेशानियों का भी जिक्र किया। वहीं उन्होंने डॉक्टर और नर्स का उदाहरण देते हुए कहा वह हमारी सेवा करने के लिए घंटों मास्क पहने रहते हैं तो क्या आप मास्क नहीं पहन सकते हैंॽ सावधानी और सतर्कता अभी भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि पहले थी। संबोधन के दौरान मोदी ने कोरोना से रिकवरी रेट और कम मृत्यु दर का भी जिक्र किया।

भविष्य का सवाल है

कोरोना के बढ़ते रफ्तार को देखते हुए परीक्षा का विरोध व्यवहारिक एवं जायज भी है‚ लेकिन गंभीर मसला यह है कि परीक्षा न कराने की स्थिति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास विकल्प क्या हैॽ बड़े स्तर पर मास प्रमोशन भी छात्रों के हितों में नहीं है। अगर उनको प्रोन्नत कर दिया जाता है तो फिर कोरोना काल की समाप्ति के बाद उनकी डिग्री को संदेह की oष्टि से निजी कंपनियां देखेंगी। गांव–देहात में नेट कनेक्टिविटी के जर्जर हालात को देखते हुए ऑनलाइन परीक्षा कराने की बात सोचना भी न्यायसंगत नहीं है। ऐसे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को मिल–बैठकर बीच का कोई रास्ता निकालना चाहिए‚ जिससे छात्रों का भविष्य दांव पर न लगे। इस मसले पर तत्काल निर्णय लिया जाए॥

सतर्क रहना होगा

मेरठ में लव जिहाद की हालिया वारदात वाकई बेहद गंभीर है। आखिर क्यों हिंदू लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं। प्रिया की मौत कोई पहली मौत नहीं है। इस प्रकार की घटना मेरठ में पहले भी घटी थी। मेरठ में लोइया ग्राम निवासी शाकिब ने अपना धर्म छिपाकर एकता नाम की युवती को अपने प्रेम जाल में फंसाया और फिर सच्चाई खुलने पर एकता के शरीर के टुकड़े–दुकड़े कर दिए। लव जिहाद जैसी घटनाओं पर सरकार को तो सख्ती करनी ही चाहिए‚ इसके अतिरिक्त युवतियों को भी अपनी समझदारी का स्तर बढ़ना होगा। परिवार को भी ऐसे मामलों में सचेत रहने की जरूरत है॥

बुधवार, 22 जुलाई 2020

ऑनलाइन मतदान का विकल्प

वर्तमान समय में पूरी दुनिया के साथ बिहार में भी कोरोना का कहर जारी है। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के काल में ऐसा लग रहा है मानो सरकार चुनाव कराने के लिए कटिबद्ध हो लेकिन आज कोरोना का प्रकोप कहर ढा रहा है। लोगों को इलाज की जरूरत हैसरकार को चुनाव कराने की इतनी ही ज्यादा जल्दी है और लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए इतनी ही बेकरारी हैतो ऑनलाइन चुनाव करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। ऑनलाइन शॉपिंग की तरह ऑनलाइन मतदान की व्यवस्था करे। जिस तरह नेट बैंकिंग द्वारा पैसा ट्रांसफर हो जाता हैउसी तरह मतदान की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती। लोकतंत्र को जिंदा रखने के नाम पर लोक के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं किया जाए। विदेशों में कोरोनाकाल में चुनाव होने का तर्क देकर बिहार में भी चुनाव कराने का तर्क दिया जाता हैतो उन्हें विशाल मतदाता संख्या को भी देखने की जरूरत है।


विधायकों की पिंजड़़ाबंदी

जब तक उच्चतम न्यायालय से फैसला नहीं आ जाता है‚ तब तक राजस्थान की जनता को देखने वाला कोई नहीं है। विधायकों का यह आचरण लोकतंत्र की मर्यादा के विरुûद्ध है। उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान भी विधायकों को जनता के बीच रहना चाहिए। जिस तरीके से लोग जानवरों को पिंजड़े में कैद कर रखते हैं‚ उसी तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने–अपने समर्थक विधायकों को पिंजड़े में कैद किए हुए हैं। क्या इन नेताओं को अपने विधायकों पर भरोसा नहीं है‚ या इनकी जान को खतरा हैॽ विधायकों की निष्ठा जनता के प्रति है या बड़े नेताओं के प्रतिॽ जनता को इन सभी सवालों का जवाब जानने का हक है। यह लोकतंत्र के पतन की पराकाष्ठा है। न्यायालय को जनता की खातिर जल्द से जल्द इस मामले में फैसला सुना देना चाहिए॥

न हो अनर्गल शब्दों का प्रयोग

विगत दिनों से राजस्थान में राजनीति के अंतर कलह और दांवपेच जग जाहिर हैं। राजनेताओं के आपसी मतभेदों की चरम सीमा यहां तक पहुंच गई कि निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्द उस माहौल में गूंज रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं के आक्रोश भरे मतभेद ओर अंतर कलह की इस प्रतियोगिता में राजनेताओं को यह भी भान नहीं होता कि हम आरोप–प्रत्यारोप में जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं‚ उनका जना धार पर और समाज पर क्या प्रभाव होगा.ॽ कम से कम अशोभनीय और अनर्गल शब्दों का तो ध्यान रखना चाहिए। निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्दों का अगर प्रयोग होगा तो राजनीति के मायने ही बदल जाएंगे॥


फिर लगाएं बंदिशें


सड़कों पर जो स्थिति दिख रही है‚ उससे कहीं नहीं लग रहा है कि हम कोरोना जैसी महामारी के बीच जिंदगी जी रहे हैं। लोग बड़े आराम से घर से बाहर बाजार और अन्य जगहों पर टहल रहे हैं। ऐसे में इस महामारी का प्रकोप बढ़ना निश्चित है। सरकार को चाहिए कि फिर से लंबे समय के लिए बंदिशें लागू कर दे‚ नहीं तो पिछले कुछ समय में की गई सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा॥

सोमवार, 13 जुलाई 2020

पाऊच लॉकड़ाउन में

लॉकड़ाउन जब दो महीने का होता था‚ तब उसे मेगा लॉकडाउन का लॉकडाउन का फैमिली पैक कह सकते थे‚ अब ५५ घंटों के लॉकडाउन‚ ४८ घंटों के लॉकडाउन‚ इन्हें लॉकडाउन का पाऊच वर्जन कहा जा सकता है। अब लॉकडाउन का फैमिली पैक खत्म हो लिया है‚ पाऊच वर्जन चल रहा है। बंगलूर में‚ यूपी में और भी बहुत जगह॥। कोरोना पर खबरें लिखने वाले और पढ़ने वाले दोनों ही बहुत परेशान हो गए हैं कोरोना से। डर का एक मनोविज्ञान यह भी है कि जब डर बहुत ज्यादा फैल जाता है‚ तो एक खास किस्म की निडरता को जन्म देता है–ठीक है‚ होगा जो भी देखा जाएगा। दरअसल‚ इसके सिवाय कोई विकल्प भी नहीं है। क्या कर लेंगे‚ कोरोना आ रहा है‚ कोरोना आ गया है‚ कोरोना आएगा। क्या किया जा सकता है। पाऊच लॉकडाउन को देखिए‚ मेगा लॉकडाउन देख चुके हैं। मैं तो रोज सरकारी बयानों को देखता हूं‚ जिनमें सब कुछ फिट दिखाई देता है। वैसे कोरोना भी सबके लिए एक सा ना होता। बड़ा आदमी कोरोना की गिरफ्त में आता है‚ तो खबरें ये आती हैं‚ फलां जी ने १२ बजे पानी पिया‚ १ बजे सेब खाया‚ २ बजे ये खाया.। आदमी फंसता है‚ तो खबर यह आती है कि सात अस्पतालों में गर्भवती पत्नी लेकर भटकते रहा भट्टालाल कहीं दाखिला ना मिला। ॥ कोरोना टाइप की बीमारियां बड़े आदमियों को ही होनी चाहिए‚ दरअसल वो ही अफोर्ड कर सकते हैं। लॉकडाउन में थ्रोबैक पुरानी फोटू डालते हैं–बीस साल पहले मैं ऐसा था–टाइप। आम आदमी की जिंदगी में बीस साल में फर्क इतना भर आ जाता है कि बीस साल पहले वह बच्चे के स्कूल एडमीशन की लाइन में खड़ा था‚ अब वह कंसेशन रेट पर कराए जा रहे कोरोना टेस्ट की लाइन में लगा हुआ। पुराना नया सब एक सा है‚ बदलता नहीं है। लाइन में हैं जी। लाइन मुक्त होकर फाइव स्टार जीवन के लिए इस मुल्क में या तो परम संपन्न होना पड़ेगा या विधायक‚ जाने कहां कहां के विधायक फाइव स्टार होटलों में जनता की सेवा कर रहे हैं। आप ना विधायक हैं ना संपन्न‚ तो भगवान ना करे कि आपकी ऐसी खबरें आएं–किसी अस्पताल में दाखिला ना मिला।

किस करवट बैठेगाॽ

मार्च महीने में मध्य प्रदेश में ज्योदिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच तनातनी में सरकार चली गई थी। अब ऐसा ही कुछ राजस्थान में हो रहा है। यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच टकराव चरम पर है। क्या कांग्रेस के लिए युवाओं का जज्बा मायने नहीं रखताॽ पायलट ने दावे के साथ कहा कि उनके साथ ३० से ज्यादा नेताओं के समर्थन है। वैसे राजनीतिक दलों में दल–बदल कोई नई बात नहीं है॥

सख्त बने कानून

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया का निर्माण होता है। जनसंख्या वृद्धि के कारण हमारे देश में तमाम विकास योजनाएं एवं संसाधन बोने सिद्ध हो रहे हैं। शिक्षा‚ स्वास्थ्य‚ आवास‚ रोजगार एवं जीवन स्तर से जुड़ा हर पहलू सीधे तौर पर जनसंख्या वृद्धि से प्रभावित होता है। जनसंख्या पर नियंत्रण के संबंध में हमारा समाज पहले से काफी जागरूक हुआ है। फिर भी अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। सरकार को ‘एक दंपति दो संतान' का कानून संसद से पारित करवाना चाहिए एवं इसे देश के सभी समुदायों पर सख्ती के साथ लागू करना चाहिए॥। 

भारतीय वायुसेना को अमेरिकी एयरोस्पेस कम्पनी ‘बोइंग' से खरीदे गए सभी २२ अपाचे हेलीकॉप्टर मिल गए हैं‚ जिसके साथ वायुसेना की ताकत काफी बढ़ गई है। ढई अरब डॉलर का यह रक्षा सौदा सितम्बर २०१५ में हुआ था। इन हेलीकॉप्टरों की पहली खेप गत वर्ष २७ जुलाई को गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर पहुंची थी‚ जिन्हें पठानकोट एयरबेस पर तैनात कर दिया गया था। बोइंग द्वारा निमत अपाचे दुनिया का सबसे आधुनिक और घातक हेलिकॉप्टर माना जाता है‚ जो ‘लादेन किलर' के नाम से भी विख्यात है। भारत दुनिया का १४वां ऐसा देश है‚ जिसने अपनी सेना के लिए इसका चयन किया है। वर्तमान में चीन के साथ विवाद के दौर में इसकी महkवपूर्ण भूमिका देखी भी गई है। 

सावन की छटा गायब

आज के इस इंटरनेट के युग में अब कोई यक्ष अपनी प्रेयसी यक्षिणी को मेघ के माध्यम से संदेशा भेजने का साहस नहीं दिखाता है। अब तो मेघों के माध्यम से संदेशा भेजना तो दूर की कौड़ी; चिट्ठियों के दौर को भी आधुनिकता ने निगल लिया है। अब तो सावन मोबाइल की सात इंच की स्क्रीन तक सिमट कर रह गया है। वन और वृक्षों का इस गति से सफाया होता गया कि सावन की हरियाली नदारद होती गई। भगवान शिव को भी जंगल की गुफाओं से लाकर अट्टालिकाओं के गृहगर्भ में शिफ्ट कर दिया गया। लगता है रूठ गया है सावन। इसलिए भी कि जिन अंग्रेजों की तपती जुल्म की गर्मी से राहत दिलवाकर शहीदों ने भारतवर्ष में सावन लाया था‚ उस सावन का तथाकथित जनसेवकों ने सत्यानाश कर दिया। अब भारतीय जनता के भाग्य में केवल तपना ही लिखा है॥

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

सीबीआई जांच हो

कानपुर के जघन्य हत्याकांड़ में उप्र सरकार कार्रवाई में विफल साबित हुई। अलर्ट के बावजूद विकास का उज्जैन तक पहुंचना‚ सुरक्षा के दावों की पोल खोलता है और मिलीभगत की ओर इशारा करता है। तीन महीने पुराने पत्र पर ‘नो एक्शन' और कुख्यात अपराधियों की सूची में ‘विकास' का नाम न होना बताता है कि इस मामले के तार दूर तक जुड़़े हैं। मामले की सीबीआई जांच करा सभी तथ्यों और संरक्षण देने से जुड़़े संबंधों को जगज़ाहिर करना चाहिए।

मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो

खबर आ रही है कि ‘कानपुर–कांड़' का मुख्य अपराधी पुलिस की हिरासत में है। अगर यह सच है तो सरकार साफ करे कि यह आत्मसमर्पण है या गिरफ्तारी। साथ ही उसके मोबाइल के सीड़ीआर (कॉल डि़टेल रिकॉर्ड़) सार्वजनिक करें‚ जिससे असली मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो सके। 

राजनीतिक संरक्षकों को सजा मिले

कानपुर–कांड़ का दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे को काफी लम्बी जद्दोजहद के बाद अन्ततः मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद अब इसके तमाम आपराधिक साठगांठ व माफियागिरी आदि का पर्दाफाश होने का उत्तर प्रदेश और देश की जनता को काफी इन्तजार है। इतना ही नहीं‚ जनता को इस बात की भी प्रतीक्षा है कि विकास दुबे के साथ–साथ उसके जघन्य अपराधों से जुड़़े एवं संबंधित सभी सरकारी और राजनीतिक संरक्षकों एवं षड़्यंत्रकारियों को भी उत्तर प्रदेश सरकार जल्द से जल्द सख्त सजा जरूर दिलाए। 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

बहिष्कार की होड़

इन दिनों देश में चीनी माल के बहिष्कार का माहौल है। सरकार के अंदर भी अलग-अलग मंत्रलयों की ओर से चीनी उपकरणों का उपयोग न करने को लेकर लगातार फैसले हो रहे हैं। अब तक केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और बिजली मंत्री आरके सिंह की ओर से घोषणाएं हो चुकी हैं। बताया जा रहा है कि दूसरे मंत्रियों ने भी अपने-अपने विभागों में अधिकारियों को इसकी पड़ताल में लगा दिया है कि वे पता करें कि उनके अधीन आने वाले किसी भी मामले में चीनी माल आता है या नहीं। उन्हें हिदायत है कि वे यह फटाफट मालूम करें ताकि इसके उपयोग न करने की घोषणा की जा सके। कुछ लोगों ने तो यह तक तलाशना शुरू कर दिया है कि उनके घर पर कौन-कौन से चीनी सामान हैं।

विकल्प नहीं तो करें क्या

चीन के साथ जारी तनातनी और चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर व्यापारी एक-दूसरे को कोसने से नहीं चूक रहे हैं। हाल ही में कई जगहों पर चीन के सामान की होली जलाई गई, लेकिन कई व्यापारी अपने ही व्यापारी दोस्तों से यह कहते देखे गए कि उन्हीं चीनी सामान की होली जलाई जा रही है जो बेकार हो गए हैं। व्यापारी यह भी कहते सुने गए कि जिस फोन से चीनी सामान के होली जलाने की तस्वीर खींच रहे थे, वे भी चीन के हैं। लेकिन किसी व्यापारी ने फोन को तो नहीं जलाया। इनकेमतभेद इसलिए भी हैं कि चीनी सामानों पर रोक की स्थिति में दिल्ली के थोक बाजार के आधे कारोबार बंद हो जाएंगे। देश का सबसे बड़ा इलेक्टिक बाजार भगीरथ पैलेस में तो 60 फीसद माल चीन से आता है। ऐसे में यहां के कारोबारी साफ बोल रहे हैं कि चीन का सामान बेचने के अलावा उनके पास अभी विकल्प ही क्या है?

एप की याद

सरकार ने टिकटॉक समेत चीन के 59 एप को बैन तो कर दिया है, लेकिन इस कारण सरकारी कर्मचारियों का टाइम पास नहीं हो रहा है। असल में ये कर्मचारी इन दिनों काम के दौरान अपने खाली समय में टाइम पास के लिए चीनी एप का खूब इस्तेमाल कर रहे थे। अब इन कर्मचारियों ने सरकारी दायित्व समझते हुए अपने-अपने मोबाइल फोन से टिकटॉक और हेलो जैसे चीनी एप को हटा तो दिया है, लेकिन इनके दिल में इस बात की कसक जरूर रह गई है कि अब उन्हें टिकटॉक का मजा नहीं मिल पाएगा। चीनी एप की जगह कई भारतीय एप आ तो गए हैं, लेकिन पिछले कई सालों से चीनी एप के अभ्यस्त इन कर्मचारियों को शायद उनके देसी अवतारों की कोई जानकारी नहीं। उनकी जानकारी के बाद शायद उनका गम कुछ कम हो सके।

सियासी बंगला

मौजूदा दौर में सियासतदां ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालकर एक दूसरे की सफेदी को गंदा करने का मौका नहीं चूकते। मगर इस दौर में भी कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनका जिक्र आते ही ऐसी सियासत थम जाती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बंगले का आवंटन रद करने के सरकार के फैसले पर छिड़ी सियासी जंग के बीच ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। इसे गांधी परिवार के खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने अपने आधिकारिक बयान में भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बंगले पर सवाल उठाने की तैयारी कर ली। मगर बताया जाता है कि बयान के इस मजमून में आडवाणी का नाम देखकर कांग्रेस नेतृत्व ने इसे आधिकारिक बयान में शामिल करने की इजाजत नहीं दी। दरअसल वैचारिक दूरी के बावजूद बीते कुछ वर्षो में सोनिया गांधी और आडवाणी के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। अपनी आत्मकथा सोनिया को भेंट करने के लिए कुछ साल पूर्व आडवाणी दस जनपथ भी गए थे। राजनीतिक गलियारों और संसद में रूबरू होने के दौरान राहुल गांधी भी आडवाणी को पूरा सम्मान देते हैं। इसीलिए बंगले की सियासत में हाइकमान ने ही आडवाणी का नाम नहीं लेने की ताकीद कर दी। फिर स्वाभाविक रूप से जोशी का जिक्र भी नहीं किया गया। इसलिए यह कहना गैरमुनासिब नहीं कि कुछ चेहरों के आगे सियासत भी लिहाज करती है।

बुधवार, 24 जून 2020

सफाई न होने से गलियों में जलजमाव

मानसून से पहले नगर पालिका परिषद प्रशासन की तैयारियां अधूरी हैं। शहर में नाले-नालियों की हालत देख कर इसका अंदाजा साफ तौर पर लगाया जा सकता है कि मानसून पूर्व तैयारियों को लेकर प्रशासन संजीदगी नहीं बरत रहा। इससे आने वाले दिनों में जनता की मुश्किलें और बढ़ेंगी। फिलहाल अधिकांश नालियां गंदगी से पटी पड़ी हैं। बजबजाती नालियों की दुर्गंध से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। वहीं कटहल नाले में भी जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा है और पानी जाम हो गया है। अगर समय रहते प्रशासन नहीं जागता है तो लोगों को जलनिकासी की समस्या से सामना करना पड़ेगा।- बच्चू जी, स्टेशन रोड, बलिया।परीक्षाफल से बच्चों का आकलन न करें27 जून को माध्यमिक शिक्षा परिषद के वर्ष 2020 के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणाम की बाबत विद्यार्थियों के प्रति स्थायी विचार न बनाएं क्योंकि इस वर्ष आने वाला परीक्षाफल कई सारी बाधाएं और विसंगतियों के बाद आ रहा है। कोरोनाकाल में बोर्ड परीक्षा के उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन में आने वाली रुकावटों के बाद यह रिजल्ट आ रहा है। यूपी बोर्ड ने बच्चों के हितों को ध्यान में रखकर उन्हें आगामी कक्षा की तैयारी के लिए निर्णायक समय में उन्हें परीक्षाफल दे रहा है। जिससे हो सकता है कि इस आपाधापी में कापियों का सही आकलन और मूल्यांकन नहीं हो पाया हो। परीक्षाफल से बच्चों का आकलन नहीं करना चाहिए।

लोकतंत्र की हत्याए.

आज के ही दिन 25 जून, 1975 को भारत के महान लोकतंत्र की हत्या हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता के लिए देश के लोकतंत्र का गला घोंटने में संकोच नहीं किया था। देश ने लगातार 21 महीने तक इंदिरा शासन की तानाशाही को बर्दाश्त किया था। संजय गांधी और उनके सलाहकार आरके धवन की चौकड़ी ने कैबिनेट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को धता बताकर देश के शासन का संचालन सूत्र अपने हाथों में ले लिया था। एक अनजाने भय के वशीभूत होकर इंदिरा सरकार ने संघ के सभी आयु वर्ग के स्वयं सेवकों के साथ जो क्रूरतम व्यवहार किया, उसको विस्मृत नहीं किया जा सकता। यह अत्याचार कांग्रेस के लिए इतना घातक सिद्ध हुआ कि 1977 के आम चुनाव में देश की आम जनता ने इंदिरा गांधी को सत्ताच्युत कर दिया। यद्यपि विपक्षी दलों के घालमेल से बनी जनता दल सरकार भी बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह पाई। जिसके परिणामस्वरूप अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने सब कुछ भुलाकर इंदिरा गांधी के हाथों में फिर से देश की बागडोर सौंप दी। राजनीति में इस तरह का विस्मरण संभव है, लेकिन सामान्य जन-जीवन में आपातकाल के काले अध्याय को भुला पाना संभव नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह किसी सबक से कम नहीं है।

बारिश ने खोली पोल

दो दिन की बारिश ने नगर पालिका के सफाई व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। शुरुआती बारिश के बाद नगर के गली-मोहल्ले की नालियां चोक हो गई हैं। इससे नगर पालिका की तरफ से कराए गए गुणवत्ता के कार्यों का पता लग रहा है। नगरवासी जाम नालियों से परेशान हैं। साफ-सफाई ठीक ढंग से होती तो इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़ता। बरसात से पहले नगर पालिका को युद्ध स्तर पर सफाई अभियान चलाना चाहिए, जिससे इस समस्या से निजात मिल सके।

मनरेगा की जांच हो, खुलेगा राज

मनरेगा को लेकर जनपद में हर जगह चर्चा है। हालात तो यह है कि इसमें धन का बंदरबांट इस तरीके से किया जा रहा है जिसमें किसी को पकड़ना मुश्किल हो रहा है यानी नीचे से लेकर ऊपर तक लोग जुड़े हुए हैं। अगर इसकी पारदर्शी ढंग से जांच हो तो बड़ा खुलासा होगा। कई जगहों पर तो बिना काम कराये पैसा निकाल लिया गया है। श्रमिकों को नौकरी देने के नाम पर जमकर सरकारी धन से अपनी जेबें भरीं जा रही हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है जगह-जगह आंदोलन भी शुरू हो। यही हालात टंका के मामले में भी है। इसे लेकर भी लोगों में आक्रोश उभरने लगा है। इस मामले में शासन स्तर से जांच कराने की जरूरत है।

बच्चों को दें अच्छे संस्कार

अभिभावक बच्चों पर उम्मीदों का बोझ लाद देते हैं जबकि बच्चों को अपने सपने पूरे करने देना चाहिए। अब बच्चों को लेकर माता-पिता में संजीदगी कम होती जा रही है। आजकल के व्यस्तता भरे जीवन में हर व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में लोग बच्चों पर भी उचित ध्यान नहीं दे पाते। उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करते हैं। इससे उनमें संस्कार कम होते जा रहे हैं। जिन बच्चों को उम्मीद से ज्यादा आजादी दी जाती है, वे अक्सर परिजनों के साथ-साथ समाज को भी शर्मसार कर देते हैं। आज बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी के पास बैठना पसंद नहीं करते हैं जबकि बड़े-बुजुर्गों से ही बच्चों को संस्कार प्राप्त होते हैं। सभी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि समाज में नाम रोशन कर सकें।

AGHORI KILA

राबर्टसगंज से 25 कि0 मी0 दक्षिण चोपन से 7 कि0 मी0 पश्चिम स्थित यह किला तीन नदियों रेणु विजूल तथा सोन के बीच स्थित है । इस किले में कहावत के अनुसार बहुत सम्पदा है एवं यह भी तिलस्मी किला है । मोलागत राजा से लोरिक का युध्द यंही पर हुआ था । इस किले में देवी दुर्गा की कलात्मक मूर्ति आंगन के द्वार पर है । यंहा पर एक कुंआ है जो बहुत गहरा है सोन नदी से इसका सन्बंध बताया जाता है । आगे राजा की कचहरी है फिर परकोटा है जंहा से दरवाजा है । नीचे एक बड़ा हाल है जंहा हजारो लोग निवास कर सकते हैं । यंहा भी दुर्गा जी की एक कलात्मक मूर्ति स्थापित है । यंहा पर देवी की पूजा करने लोग दूर दूर से आतें हैं । दुर्ग को चारो ओर से नाले तथा खाई से सुरक्षित किया गया है । इस दुर्ग पर खरवारों का अधिपत्य था जिसे बाद में चंदेलों ने अपने अधीन कर लिया था । दुर्ग से निकलने पर एक गेरूआ पहाड़ दिखता है लोग कहते हैं कि इस पहाड़ पर लाखों वीरों की तलवार की धार उतारी गई थी । सोननदी की धारा में एक हाथी की शक्ल का पत्थर है इसे लोग मोलागत राजा का कर्मामेल हाथी बताते है जो लोरिक द्वारा मारा गया था। इस दुर्ग तक चोपन से नाव द्वारा पहुंचा जा सकता है।

VIJAYGARH KILA

यह किला राबर्टसगंज से लगभग 28 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में सोन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से 15 कि0 मी0 पूर्व दक्षिण चतरा गांव से एक सड़क धनरौल बांध तक जाती है जंहा से मऊ गांव तक जो चतरा से करीब 10 15 कि0 मी0 होगा जीप द्वारा कभी भी जाया जा सकता है बरसात के बाद किले तक पहुंचने के लिये जंगल विभाग द्वारा कच्ची सड़क का निर्माण हो जाता है । इस दुर्ग का निर्माण पॉंचवी शताब्दी में कोल राजाओं द्वारा कराया गया था । इस किले में लगभग 12 बड़े बड़े कक्ष और चार तालाब ऐसे हैं जिनका जल कभी समाप्त नहीं होता है । इस दुर्ग के शिलालेख गुहाचित्र एवं कलात्मक मूर्तियां अत्यन्त दर्शनीय हैं । गंगा की तलहटी से करीब 400 फीट ऊंचाई पर बना यह किला काशी नरेश राजा चेत सिंह के अधिपत्य में अंग्रजो के आने के समय तक रहा है । यह किला चरो तरफ से दीवार से घिरा हुआ है जिस पर तोपची निशान लगाये बैठे रहते होंगे ।किले के मुख्यद्वार को सीढ़ियों से नीचे से जोड़ा गया था जो अब टूट चुकी है । कहते हैं कि यह तिलस्मी किला है तथा इसके नीचे भी एक किला छिपा है ऐसा देखने से प्रतीत होता है । मुख्य द्वार से आगे बढ़ने पर रानी का महल है । रानी के महल में पत्थर की कलात्मक कलाकारी की गयी है । अन्दर कमरे तथा बरामदे बने हुये हैं जो अब गिर रहे हैं । इस किले पर अप्रेल के महीनें में हर वर्ष एक उर्स का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं । यह उर्स सुप्रसिद्व सैयद हजरत मीरान शाह बाबा की मजार पर आयोजित होता है । मजार के चारो ओर अब दीवार बनाई जा रही है जिसमें चुने दो पत्थरो को देखने से पता चल्ता है कि वंहा एक शिला पर कुछ लिखा हुआ है जो हिन्दु परम्परा तथा धर्म से सम्बंधित है । इस मकबरे के पास एक बड़ा तालाब है जिसका पानी साफ है । आगे चलकर रामसागर तालाब है । इसके साथ ही राजा का महल है । खिड़की का दरवाजा बन्द कर दिया गया था जिसे फिर खोल कर उधर से चढ़ने उतरने का रास्ता बनाया गया है रास्ते में एक गणेश की दाहिने सूड़ की प्रतिमा है।

HANTHI NALA

यह राबर्टसगंज से करीब 60 कि0 मी0 पर दक्षिण पूर्व में दुध्दी के मार्ग पर अंग्रजो के द्वारा निर्मित कृत्रिम प्रपात है । यंहा पर ठहरने के लिये हट भी निर्मित है जिसका उपयोग पर्यटको के लिये किया जा सकता है । इससे करीब 35 कि0 मी0 पर म्योरपुर के पास नदी में भी एक प्रपात है जो देखने योग्य है।

MUKKHA DARI

जनपद में सबसे सुन्दर जल प्रपात मुखा दरी है जो शिवद्वार से करीब 8 कि0 मी0 पश्चिम में बेलन नदी पर स्थित है । बीच रास्ते पर कड़िया ताल है जिसे विकसित कर झील का रूप दिया जा रहा है जंहा नौका विहार एवं होटल पर्यटक दृष्टि से प्रभावी होगा । मुखा दरी की गुफाओं में बहुत से शैलाश्रित गुहा चित्र हैं जो प्राचीनतम एवं बहुमूल्य हैं । यंही देवी की प्रतिमा तथा मन्दिर है।

GARAGJAWA

राबर्ट्सगंज पिपरी मार्ग पर सलखन नामक स्थान पर मुख्य मार्ग से 1 कि0 मी0 पश्चिम गरगजवा पहाड़ी है । यंहा पर पेड़ के कटे तनो की आकृति की चट्टाने अभी हाल में पायी गयी हैं । इसके विषय में कहा जाता है कि यह पेड़ के कटे तने लगभग डेड़ अरब वर्ष पुराने हैं जो कालांतर परत दर परत चढ़ने पर पत्थ की आकृति में परिवर्तित हो गये।

OBRA GUPHA

ओबरा में पानी हेतु टंकी तथा पाईप लाइन बिछाने का कार्य चलते समय ये गुफायें मिली । वैसे तो तीन गुफायें स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु प्रमुख गुफा करीब 20 फिट गहरी 10 फिट ऊंची तथा 20 फिट चौड़ी है ।

KANDAKOT

राबर्टसगंज से दक्षिण पश्चिम कोण पर लगभग 12 कि0 मी0 की दूरी पर यह दुर्ग स्थित है । इसके प्राचीर अब ध्वंसाावशेष हैं । यंहा पर कण्डेश्वर महादेव का मन्दिर तथा कई गुफायें हैं जंहा पर शैलाश्रित गुहाचित्र देखे जा सकतें हैं । दुर्ग के चारो ओर खाई तथा हरे जंगल हैत्त्। शिवरात्रि एवं बसंत पर यंहा मेला लगता है । यंहा से 2 कि0 मी0 पर कुंडारी देवै का मन्दिर एवं गुफायें हैं ।

DUDHIYA NALA

एक प्राचीन मन्दिर मऊ गांव के आगे धनरौल बांध से करीब 4 कि0 मी0 पर स्थित है । इसका शिवलिंग करीब 15 से 2 फिट व्यास का 3 फिट ऊंचा है । इसी मन्दिर के साथ खुले में दो ओर शिवलिंग है जो एक ही मोटाई तथा ऊंचाई के हैं परन्तु एक पर सहस्त्रनाग प्रतिमायें बनी हैं । सहस्त्रनाग शिवलिंग का भग्नावशेष शिवद्वार में भी देखा गया है परन्तु वह करीब एक फिट का ही है । यंहा पर काले पत्थर की एक अष्टभुजी की प्रतिमा है।

SODHARIGARH DURG

यह दुर्ग बेलन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से लगभग 35 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में तथा घोरावल से इसकी दूरी लगभग 8 किलोमीटर है । इस दुर्ग की सुरक्षा हेतु चारो तरफ गहरीं खाईया आज भी देखी जा सकती हैं । इसके भग्नावशेषों की खुदाई से अत्यन्त कलात्मक मूर्तियां मिली हैं जिसमें से कुछ खण्डित है जो शयद मुगल काल में तोड़ दी गयी होंगी । यंहा गहड़ूवाल राजाओं का कभी राज्य था।

मंगलवार, 23 जून 2020

संतोष से ही मानसिक शांति संभव


आज बड़ी संख्या में लोग मानसिक तनाव के साथ जी रहे हैं। इसका एक कारण है कि मनुष्य ने धन को ही सवरेपरि मान लिया है। जो जितना असंतुष्ट है वह उतना ही आधुनिक समझा जाने लगा है। जीवन अपनों से दूर हो गया है। फलस्वरूप तनाव स्वाभाविक है। यह जीवन में मुसीबतें ही लेकर आता है। याद रखें कि केवल संतोष से ही मानसिक शांति और सुख मिल सकता है।

कितनी कारगर है दवा

ब्रिटेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें एक ऐसा प्रमाण मिला है जिससे कोविड-19 मरीजों को बचाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि डेक्सामेथासोन नामक स्टेराइड के इस्तेमाल से गंभीर रूप से बीमार कोविड मरीजों की मृत्यु दर में एक तिहाई तक की कमी आई है। इस दवा के काफी उत्साहजनक नतीजे अभी तक मिल रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि जल्द ही इस दवा को लेकर एक रिसर्च पेपर भी प्रकाशित किया जा सकता है। वैसे तो अध्ययन की इस उपलब्धि को सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, परंतु यह देखना अभी बाकी है कि यह अन्य लोगों पर यह कितनी कारगर साबित होगी।

गांव में ही रोजगार का सही कदम

लॉकडाउन के कारण पलायन करने वाले प्रवासी श्रमिकों को सरकार ने गांव में ही रोजगार देने का फैसला किया है, जो स्वागतयोग्य है। ऐसे कदमों से ही देश विकेंद्रीकरण की शानदार नीति से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सकता है। असल में गांव ही तो देश की प्रमुख इकाई है। आज देश में जनशक्ति और काम की कोई कमी नहीं है। कमी तो नीति और नीयत की ही है जिसे सही तरीके से सर्वहित में बनाने और लागू करने की जरूरत है।

चीन की नीयत में खोट

दो देशों के बीच में समझौते तभी सफल होते हैं जब दोनों उसका पालन करें। अगर एक भी देश इसका पालन नहीं करता है तो संधि का मकसद बेकार हो जाता है। यही समस्या भारत-चीन की सीमा पर है। एक दूसरे पर हथियार से हमला नहीं करने व सीमित संख्या में ही सैन्य बल तैनात करने की संधि के बावजूद चीन इसका उल्लंघन कर रहा है। इसका नतीजा खूनी संघर्ष के रूप में सामने आया। चीन अभी भी भारत की गलवन घाटी में तनाव पैदा करने में लगा हुआ है और अपनी गलती को नहीं मान रहा है। उसकी नीयत में खोट है। वह कभी भरोसे का देश नहीं रहा है। उसके साथ किसी भी तरह की वार्ता में बहुत सावधानी की जरूरत है।


चीन को आर्थिक नुकसान का झटका दें

जब-जब भी हमारे देश का चीन के साथ तनाव बढ़ता है, तब-तब इसके सामान के बहिष्कार का जुनून भी देश में बढ़ता है, लेकिन यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि हमारे देश की सरकार चीन से आर्थिक लड़ाई खुलकर नहीं लड़ सकती और न ही चीनी सामान पर पूर्ण प्रतिबंध आसानी से लगा सकती। ऐसा इसलिए, क्योंकि विदेशी व्यापार, आयात-निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समझौते हुए होते हैं, जिनकी अवहेलना देश के लिए भारी पड़ सकती है। ऐसे में चीन से आर्थिक लड़ाई लड़ने में हमारे देश के नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए नागरिकों को चीनी सामान पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। अगर हमारा देश अनावश्यक चीनी सामान का प्रयोग करना भी छोड़ दे तो भी चीन को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। इनमें मुख्यत: बच्चों के खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक सामान, चीनी मोबाइल एप्लीकेशन आदि तो ऐसे हैं जिन्हें आसानी से तिलांजलि दी जा सकती है। इस पर अवश्य विचार किया जाए।

विक्रम और वीरता राष्ट्रीय चरित्र

चीनी सेना ने लद्दाख की गलवन घाटी में धोखे से भारतीय सैनिकों को जिस तरह निशाना बनाया उसके बाद चीन से रिश्ते सामान्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं। ऐसा शायद चीनियों ने इसलिए किया कि आर्थिक व व्यापारिक मामलों में भारत को दबाव में लेने के साथ ही दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस से उपजी महामारी से हटा सके। इस छल पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने का समय आ गया है। उसने भारत ही नहीं अमेरिका जैसे देशों को भी अपना शत्रु बना लिया है।

दुर्दशा पर आंसू बहा रहा क्षतिग्रस्त मार्ग

सरकारी संस्थाओं को भले ही हाईटेक संसाधनों से जोड़कर पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा हो लेकिन, उनकी कार्यशैली में जमीनी तौर पर कितना बदलाव हुआ है इसका उदाहरण जिले की सबसे महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग की तरफ से 40 किमी. लंबे राबट्र्सगंज-खलियारी संपर्क मार्ग को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दुर्दशा को लगातार फोकस करने के बाद भी प्रशासन की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सड़क की हाल यह हो गई कि बड़े-बड़े गड्ढ़े बन जाने से बारिश के बाद उसमें पानी भर जाने से लोग अक्सर दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। इसको लेकर लोग संबंधित विभाग के खिलाफ मोर्चा भी खोलने लगे हैं। बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की जा रही है।

कैसे हो सुधार

कोरोना संक्रमण काल में विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्थाओं को कैसे संचालित किया जाए, इसको लेकर सोचने की जरूरत है। जुलाई आने वाला है। ऐसे में सरकार द्वारा शिक्षा के नए सत्र की शुरुआत की जाती है लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इस पर नीति नियंताओं को सोचने की जरूरत है। जिससे बचाव भी हो और शिक्षण कार्य भी न प्रभावित हो सके। शिक्षा बाधित होने से छात्रों की पढ़ाई में रूचि भी कम हो जाती है। संक्रमण को देखते हुए शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जरूरत है।

सार्थक भूमिका निभाए विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा

कोरोना काल हो या मौजूदा भारत-चीन संकट, उसमें कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं ने बचकाने प्रश्न पूछकर बार-बार अपने अपरिपक्व रवैये का ही प्रदर्शन किया है। संभव है कि उन्हें यह संकटकाल राजनीतिक बढ़त का अवसर दिख रहा हो, लेकिन उन्हें इससे पहले राष्ट्रीय हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में कांग्रेस अन्य दलों से सबक ले सकती है जिनमें से कई सरकार के बेहद तल्ख विरोधी हैं, लेकिन इस संकट में सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी गतिशील लोकतंत्र को एक सशक्त विपक्ष की भी उतनी ही दरकार होती है जितनी मजबूत सत्ता प्रतिष्ठान की। इसके लिए आवश्यक होगा कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अर्थपूर्ण सवाल उठाए। इससे न केवल वह अपनी भूमिका का सही से निर्वहन कर सकेगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अफसोस की बात यही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा जिसकी बानगी सर्वदलीय बैठक में देखने को मिली। वहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि वामदल इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं लेना चाहते। वे भी आग में घी डालने से पीछे नहीं रहे और 1962 वाला उनका चीनी प्रेम आखिर जगजाहिर हो ही गया। उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि संकट के समय में ऐसी राजनीतिक विषमताएं शत्रु देश को संजीवनी देने का ही कार्य करती हैं।अमित दुबे, छिबरामऊ(कन्नौज)कार्बाइड का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातकप्रशासन के मनाही के बाद भी कई फलों को पकाने के लिए आज भी कार्बाइड का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। खासतौर पर इस समय आम पकाने के लिए तो इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में बिकने वाले लगभग आम कार्बाइड से ही पकाए गए हैं। कार्बाइड एक खतरनाक केमिकल और इसका उपयोग शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद भी फलों को पकाने में किए जा रहे इसे प्रयोग पर रोक नहीं लग पा रहा है। इस तरह की स्थिति में लगभग सभी लोग मीठा जहर के रूप में इसे शरीर के अंदर ले रहे हैं। कोरोना वायरस के समय यह और घातक हो जाता है।माया यादव, रामपुर महावल, बलिया।अब कस्बों और गांवों की ओर कोरोनामहानगरों से बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी के बाद छोटे-छोटे नगरों व कस्बों में भी तेजी से कोराना वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है। लाकडाउन खुलने के बाद लोग वापस पुराने र्ढे की जीवनशैली पर तेजी से लौटने लगे हैं, जिसके साइड इफेक्ट भी कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई देने लगा है। कई माह के कारोबार की बंदी और बेरोजगारी से भी सबक लेने को लोग तैयार नहीं हैं। छोटे शहरों के लोगों को भी अब बेहद सतर्क और चौकन्ना रहना होगा। पुष्पा त्रिपाठी, हिकमा कोपागंज, मऊ।पेड़ों की रुके कटाईपर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जंगलों को संरक्षित रखने की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए जाने से वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी 

शनिवार, 20 जून 2020

राजनीतिक खून का असर

अमूमन यही देखा गया है कि बॉलीवुड से पॉलीवुड यानी सियासी पगडंडियों का सफर शुरू करने वाले राजनीति में अपनी मंजिल तक कम ही पहुंच पाते हैं। अपनी सीमित राजनीतिक सोच और कुशलता के अभाव में उनकी सियासी पारी अक्सर छोटी रह जाती है। केंद्र की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने जब सिने वर्ल्ड छोड़कर संसद में प्रवेश किया तो यही माना गया कि यह तो पिता की राजनीतिक कमाई का फल है। हालांकि सही वक्त पर अपने पिता को भाजपा के साथ लाने, फिर सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी बरकरार रखने, बिहार चुनाव से पहले ‘युवा बिहारी’ के टाइटल के साथ पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर सरकार को ही घेरने और विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीनने की जो रणनीति उन्होंने अपनाई, उसने दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को भी आकर्षित किया है। कहा जा रहा है यह राजनीतिक खून का असर है। अब इंतजार है आगामी बिहार चुनाव का। शायद यहीं से यह तय होगा कि चिराग अपने पिता की राजनीतिक विरासत को कितना विस्तार दे पाएंगे।


मजबूत मन को पलीता

भले ही कोरोना का कहर अभी थमने का नाम नहीं ले रहा, पर धीरे-धीरे लोग इस महामारी को लेकर अपना कलेजा मजबूत करने में जुट गए हैं। कोरोना का डर भगाने के लिए शायद मन को दृढ़ करने की यह सोच ही है कि सत्ता और नौकरशाही के शीर्ष गलियारों ने इससे मुकाबले का नया तरीका इजाद किया है। यह तरीका है कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर भी इसकी चर्चा बाहर न जाने पाए। सत्ता गलियारों में कुछ एक मंत्रियों और उनके स्टाफ तो किसी मंत्रलय में बड़े अफसरों के कोविड पॉजिटिव होने की कानाफूसी खूब है। ये सभी अस्पताल जाने के बजाय अपने घर में डॉक्टरों की देखरेख और सलाह के तहत सेहत लाभ कर रहे हैं। वहीं केंद्रीय गृह मंत्रलय के राजधानी दिल्ली में होम क्वारंटाइन की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने के आदेश पर कशमकश ने चुपचाप कोविड को मात देने की सत्ता के रसूखदारों की इस रणनीति को पलीता लगाने का पूरा इंतजाम कर दिया। सरकार का यह आदेश जाहिर तौर पर ऐसे मजबूत मन वालों के छिपे हुए रहस्य को उजागर कर सकता है।

वचरुअल सुनवाई

कोरोना काल में एकबारगी तेजी से फैले वचरुअल प्लेटफॉर्म ने बहुत कुछ आसान तो बना दिया, लेकिन कई बार असहज स्थिति भी पैदा होने लगी। सुप्रीम कोर्ट की वचरुअल सुनवाई के दौरान देश के जाने-माने वकील मुकुल रोहतगी बहस कर रहे थे। कैमरे पर दिखे तो उनके पीछे लगी बड़ी मूर्तियों को देखकर न्यायाधीश ने पूछ लिया- क्या आप म्यूजियम में हैं। वकील ने ङोंपते हुए कहा, ‘नहीं, माईलार्ड मै अपने फार्म हाउस में हूं। आजकल यहीं शिफ्ट हो गया हूं ताकि दोनों समय स्वीमिंग कर सकूं। दो दिन बाद फिर वही वकील साहब एक अन्य केस में पेश हुए। इस बार वह जहां बैठे थे उनके पीछे पेंटिंग लगीं थीं। संयोग से वही न्यायाधीश सुनवाई कर रहे थे और उन्होंने फिर पूछा कि क्या आप आर्ट गैलरी में हैं? वकील साहब ने कहा, ‘नहीं, माई लार्ड यह मेरा घर है। मै अपने घर आ गया हूं।’

पांच लाख करोड़ का रहस्य

एमएसएमई के लिए यूं तो सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये के लोन का पैकेज घोषित किया है, लेकिन बड़ी दिलचस्पी पांच लाख करोड़ रुपये के रहस्य को लेकर है। दरअसल एमएसएमई मंत्रलय की ओर से अनौपचारिक रूप से कहा गया कि केंद्र सरकार के पीएसयू एवं विभागों पर छोटे उद्यमियों का पांच लाख करोड़ रुपये का बकाया है। हालांकि इस पांच लाख करोड़ का कभी विवरण जारी नहीं किया गया है कि आखिर किन विभागों और पीएसयू पर कितना बकाया है। मगर सब कुछ जोड़-जाड़कर यह रकम पांच लाख करोड़ रुपये बैठती है। वैसे अभी भी यह तय नहीं है कि यह फंसी हुई रकम आखिर कब तक निकल सकेगी, लेकिन उद्यमी इस बात को ही सोचकर खुश हो रहे हैं कि कभी न कभी तो ये पांच >> लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।

शुक्रवार, 19 जून 2020

चीन का करें बहिष्कार

लद्दाख सीमा पर चीन के सैनिकों की कायराना हरकत से हमारा देश असहनीय पीड़ा से गुजर रहा है। इस घटना के बाद से भारत में स्वाभाविक तौर पर चीन का विरोध शुरू हो गया है। चूंकि भारत एक बड़ा बाजार है, इसलिए यहां चीन से काफी ज्यादा उत्पाद भी आते हैं। मगर अब भारत की जनता और स्थानीय कंपनियों ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। खबर है कि भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी से साथ किया करार रद्द कर दिया है, तो बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी दूरसंचार कंपनियों में अब चीन की कंपनियों को टेंडर-प्रक्रिया में भाग नहीं लेने दिया जाएगा। जगह-जगह देश की जनता ने भी ‘बायकॉट मेड इन चाइना' की तख्ती टांगकर चीनी उत्पादों को जलाना शुरू कर दिया है। इसका चीन पर असर होगा, क्योंकि उसकी मजबूती उसके व्यापार से है, जो काफी हद तक वह भारत के साथ करता है। अगर प्रत्येक भारतीय यह फैसला कर ले कि वह चीनी सामान का इस्तेमाल नहीं करेगा, तो निश्चय ही शहीद हुए वीर जवानों को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे।


योग की सार्थकता

योग का उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना है। कहा भी गया है कि पहला सुख निरोगी काया है, और निरोग शरीर के लिए योग के साथ-साथ हमारी दिनचर्या भी संयमित होनी चाहिए। पूरी दुनिया ने योग के होने वाले फायदों को महसूस किया है, इसलिए 21 जून को योग दिवस के मौके पर पूरा विश्व योग-क्रिया करता है। योग का लक्ष्य स्वास्थ्य-सुधार से लेकर मोक्ष प्राप्त करने तक है। यह एक कला है, जो स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन को गढ़ने का काम करता है। इससे मिलने वाले प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ को देखते हुए हर आदमी को इसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें रोजाना योग अवश्य करना चाहिए। इससे हमें कई तरह के फायदे मिलेंगे।


व्यावहारिक नहीं है विरोध

आवेश में आकर चीनी उत्पादों का दहन। उसके झंडे जलाना। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले और तस्वीरों में आग लगाना। चीनी उत्पादों के बहिष्कार के नारे लगाना। उनको न खरीदने की कसमें खाना। ये सब क्षणिक मानसिक गुस्से का स्वाभाविक इजहार है। मगर चीन पर हमारी निर्भरता इतनी है कि एकबारगी अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। दवा उत्पादों में लगने वाले कच्चे माल से लेकर ऑटोमोबाइल के कल-पुर्जे और इलेक्ट्रॉनिक सामान तक हम आमतौर पर चीन से ही मंगवाते हैं। चीन के उत्पादों की लोकप्रियता का बड़ा कारण यही है कि वे सस्ते होते हैं, जो भारत जैसे गरीब देश की जनता के लिए काफी मायने रखते हैं। इसलिए एक झटके में हम चीन से अपना कारोबारी रिश्ता खत्म नहीं कर सकते। दीर्घ अवधि की कोई योजना ही इसमें कारगर हो सकती है।


गरीबों के नाम पर

अपने देश में केंद्र और राज्य सरकारें गरीबों को सहायता पहुंचाने के लिए तमाम कोशिशें करती रहती हैं। कोरोना के बुरे दिनों में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकारें प्रयासरत हैं, लेकिन यह खबर शर्मनाक और निंदनीय है कि कुछ समृद्ध लोग राजनेताओं और सरकारी बाबुओं से मिलीभगत करके फर्जी गरीब बनकर लाभार्थियों की राहत सामग्री हड़प रहे हैं। इससे सरकारी खजाने को भी भारी चूना लग रहा है। अगर हमारे देश में फर्जी गरीब बनकर फर्जीवाड़ा यूं ही चलता रहा, तो आने वाले समय में देश की आर्थिक सेहत और बिगड़ जाएगी। इसका नुकसान हरेक तबके को होगा। इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए गंभीरता दिखाएं।


नहीं मिल रहा मजदूरों को लाभ

मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर पहुंची तो जरूर लेकिन उसका वास्तविक लाभ मजदूरों को नहीं मिल पा रहा है। कारण गंवई राजनीति के चलते जॉब कार्ड अपात्रों का जारी कर दिया गया है। मजदूरों को जहां तहां जारी भी किया गया है तो गंवई राजनीति हावी होने के चलते मनरेगा का कार्य नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते उन्हें परेशानी हो रही है। कोरोना संक्रमण के दौर से गुजर रहे मजदूर शहरों से पलायन कर गांव पहुंचे पर उन्हें मजदूरी नहीं मिल पा रही है। यह स्थिति कई गांवों में है। शिकायत के बावजूद अधिकारी कुछ नहीं कर रहे हैं। इसकी जांच कराने पर मामला स्पष्ट हो जाएगा।

रखें शारीरिक दूरी का ख्याल

कोरोना संक्रमण की चेन रोकने के लिए शारीरिक दूरी का खयाल रखना बहुत जरूरी है। कहीं भी रहें आपस में शारीरिक दूरी कायम रखें। हर हाल में किसी भी एक दूसरे के सीधे संपर्क में न आएं इससे कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर देखा जा रहा है कि लोग शारीरिक दूरी के प्रति सजग नहीं दिख रहें हैं। भीड़ लगाकर दुकानों पर खरीदारी कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति अगर भीड़ में शामिल है तो अन्य लोगों में संक्रमण की संभावना अधिक है और स्थिति भयावह हो सकती है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि कोरोना संक्रमण को लेकर शारीरिक दूरी का खयाल रखकर सदैव सजग रहें।

अब संभलने की जरूरत

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में हर कोई इससे चिंतित व भयजदा है। लगातार बढ़ते मामलों को लेकर अब और ज्यादा संभलने की जरूरत है, जिससे कोरोना संक्रमण से निजात मिल सके। चिकित्सकों का मानना है कि जून के अंत तक संक्रमित मरीजों का आंकड़ा और बढ़ जाएगा। इसलिए लोगों को संभलने की जरूरत है। दिल्ली समेत अन्य राज्य अपने यहां चिकित्सालयों में पर्याप्त बेड की व्यवस्था कर रहे हैं। इसको देखते हुए लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।

चीन को सबक सीखाने का समय

चुनौतियां आती ही हैं परीक्षा लेने के लिए। क्षमता का आकलन करने के लिए। कौन कितने पानी में है इसकी थाह के लिए। अब वो समय आ गया है जब भारत को अपनी ताकत का अहसास कराना होगा। विश्व पटल पर अपनी छाप दिखाने के लिए चीन को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। 20 के बदले 20 को जब तक मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा जबतक जवानों के बलिदान के साथ न्याय नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों को भी तरजीह देने की जरूरत है। एक ऐसी रणनीति तैयार करने की जरूरत है जिसमें चीन सैन्य स्तर से तो झुके ही राजनयिक स्तर पर भी उसे यह लगना चाहिए कि अब भारत से मुकाबला आसान नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश को जवाब देना मुश्किल होगा। सत्ता पक्ष की असली घड़ी का समय है। हां, एक बात और है। स्थितियां जितनी विपरीत होंगी मुकाबला उतना ही रोचक होगा। देश का बच्चा-बच्चा प्रधानमंत्री के साथ है।

बहिष्कार और आक्रामकता दोनों की जरूरत

वर्तमान स्थितियों में भारत-चीन सीमा पर जैसे हालात बन रहे हैं, उसके मद्देनजर अब चीन के साथ दुश्मन देश जैसा व्यवहार करना जरूरी है। इसके लिए जहां एक ओर जबरदस्त सैन्य आक्रामकता की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर चीन निíमत वस्तुओं का देशव्यापी बहिष्कार भी आवश्यक है। संघ का आनुषांगिक संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ तो बहुत पहले से ही चीन निíमत वस्तुओं के बहिष्कार की अलख जगा रहा है। लेकिन सस्ते के चक्कर में फंसा हुआ भारतीय उपभोक्ता चीनी उत्पाद से अपना मोह भंग नहीं कर पा रहा था। लेकिन आज जब चीन खुलकर भारत से दुश्मनी निभाने पर उतारू है तो सभी देशभक्त भारतवासियों का यह फर्ज बनता है कि वे चीन निíमत वस्तुओं का बहिष्कार करें, भले ही वह वस्तु कितनी सस्ती और उपयोगी क्यों न हो। भारतीय जन-मानस का यह चीन विरोधी रुख उसकी आíथक कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए जिस जन जागरूकता की जरूरत है, उसका अभाव परिलक्षित हो रहा है। कोरोना के साथ साथ दुराग्रही विपक्ष की आलोचना और असहयोग से जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब यह जरूरी है कि वह चीन के उस दुष्प्रचार का कि यदि भारत चीन पर आक्रामक हुआ तो उसे पाकिस्तान और नेपाली सेनाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जबाव देते हुए सीमा पर चीन के समक्ष अपनी सैन्य आक्रामकता को बनाए रखे। चूंकि भारतीय सैनिकों ने पहली झड़प में ही चीनी सेना को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, इसलिए अब चीन के समक्ष भारत का रक्षात्मक मुद्रा में रहना कतई उचित नहीं होगा। भारत को चीन के हर दुस्साहस का कड़ाई से प्रतिकार करना चाहिए।

सन्निकट है चीन की पराजय‘ध्वस्त करने होंगे

वर्तमान चीन में हिटलर की आत्मा प्रवेश कर गई है। हिटलर ने पहले ऑस्टिया को निगला। फिर चेकोस्लोवाकिया को कुतरा। जब दो बार अपने साम्राज्यवादी मंसूबों में सफल रहा तो फिर उसने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। यदि पहले ही उसे यूरोपीय देश और अमेरिका सख्त लहजे में समझा देते तो उसे दूसरे विश्वयुद्ध को प्रारंभ करने वाली घटना-पोलैंड पर हमला-करने का दुस्साहस ही न होता। कम्युनिस्ट चीन ने पहले मंचूरिया को हड़पा, फिर इनर मंगोलिया और पूर्वी तुकस्तान पर कब्जा किया। दुनिया चुप रही तभी वह तिब्बत को कब्जाने का दुस्साहस कर सका। यहां तक भी उसकी मनमानी को कोई चुनौती नहीं मिली। तब उसने हिंदुस्तान पर अपनी आंखें गढ़ाईं। भारत को खुद की सुरक्षा में अक्षम पाकर उसकी बांछें खिल गईं। उसने लद्दाख की 37,000 वर्ग किमी भूमि हड़प ली। ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए शर्मनाक 1950 का दौर चीन के लिए अत्यंत उत्साहवर्धक रहा। उसकी खुमारी उस पर अभी तक चढ़ी हुई है। 1962 की जीत के नशे में वह इतराता रहता है। यहां तक कि 1967 में सिक्किम में भारतीय सेना से भिडंत में उसकी जो नाक लहूलुहान हुई, उसे उसने भुला दिया है। 1969 में सोवियत रूस ने मंचूरियन सीमा पर चीन को परास्त किया, 1979 में वियतनाम ने उसके 20,000 हजार सैनिकों का खात्मा कर उसे शर्मनाक पराजय दी। उसके बाद कंबोडिया जैसे छोटे देश में भी चीन ने अपना नाम डुबोया। ये चीनी पराभव एवं अपयश के चिन्ह पिछले पचासवर्षो में दुनिया के सम्मुख उभरे हैं। गलवन की घटना में भी हमारी सेना उससे श्रेष्ठ साबित हुई है। अब अगर व्यापार के मोर्चे पर उसे शिकस्त दे दी गई तो चीन की सारी अकड़ झड़ जाएगी। कैट (भारतीय व्यापारियों का सर्वोच्च संगठन) यह इरादा बना चुका है कि दिसंबर तक 15 अरब डॉलर (एक लाख करोड़ रुपये) के बराबर चीनी माल के ऑर्डर वे रद्द करेंगे। यह एक बड़ी चपत चीन को लगने जा रही है। जनता भी चीनी मोबाइल एप जैसे टिकटोक, जूम को नकार रही है। प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भरता का आह्वान तथा ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का विचार लोगों को भा रहा है। उधर सीमा पर सड़कों का तेज निर्माण एवं विश्व के बेहतरीन शस्त्रों की खरीद अथवा उत्पादन चीन को सबक सिखाने की तैयारी दर्शा रहे हैं। अब चीन की निर्णायक पराजय साफ दिखने लगी है।

चीन का जवाब देना जरूरी

देश की आजादी के कुछ ही वर्षो बाद चीन ने अपनी हरकतों से बता दिया कि उसके साथ संबंध तो रहेंगे लेकिन विश्वास नहीं। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया के विशाल दो देशों के बीच मधुर संबंध विकसित करने की योजना बनाई थी। इसके लिए नारा भी दिया। चीन ने बहुत जल्द 1962 में झटका दिया। उसके बाद से तो स्थितियां बदल ही गईं। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर देश की नीतियां बहुत ज्यादा ढुलमुल रही हैं। आज देश में चीन के सामानों का जबर्दस्त फैलाव है। इसके चलते देसी उत्पादन प्रभावित हुआ। कई कंपनियां खत्म हो गईं। उत्पादन खर्च कम करके वस्तुओं के दामों में कमी करने के फामरूले के साथ चीनी उत्पाद ने भारतीयों के बीच अपनी पैठ बनाई। अब इसे तोड़ने का समय आ गया है। 

चीन की दादागिरी

चीन सीमा पर स्थित गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन भी मित्र नहीं अपितु पीठ पीछे छूरा घोंपने वाला कायर देश ही है। अब वक्त बदल चुका है और सहन करने की सीमा भी पार हो चुकी है। सरकार को भी चीन नीति बदलनी होगी, जिसके तहत हंदूी-चीनी, भाई-भाई का नारा बुलंद किया जाता रहा है। हमारा देश काफी समय से चीनी उत्पादों का आयात कर चीनी अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करता रहा है। इसको भी बिल्कुल ही बंद करना होगा। आर्थिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर चीन के खिलाफ हमला ही हमारे वीर जवानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

सस्ता उत्पाद बनाएं कंपनियां

चीन के साथ विवाद के चलते लोगों में उसके प्रति गुस्सा और चाइनीज सामान के प्रति नफरत छाई है। चारों ओर से चाइनीज सामान के बहिष्कार की आवाज उठ रही है। सस्ता और सर्वसुलभ के कारण आज हर हाथ में चाइनीज सामान है। इन सामान के बहिष्कार से पहले हमें अपने दैनिक उपयोग के सामान का सस्ता उत्पादन करना होगा। भारतीय कंपनियों को सभी प्रकार के उत्पाद काफी कम लागत पर बनाकर देश के आंतरिक इलाकों तक पहुंचाना होगा। भारतीय कंपनियां अपने महंगे प्रचार खर्च और मुनाफा में कटौती कर सभी जरूरी चीजों के दामों पर नियंत्रण रखकर लोगों तक पहुंचाए, लोग खुद ब खुद विदेशी छोड़ स्वदेशी अपनाने लगेंगे।

स्थगित हो परीक्षाएं

कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य के बीच संघर्ष जारी है। असल में, अगले महीने सीबीएसई 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करना चाह रहा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की कई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन भी अगले माह होना है। मगर कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई अभिभावकों ने इन परीक्षाओं के आयोजन को लेकर चिंता जताई है, जो वाजिब भी है। इन परीक्षाओं में लाखों परीक्षार्थी शामिल होते हैं। ऐसे में, इनका आयोजन बच्चों व किशोरों के स्वास्थ्य के मद्देनजर होना चाहिए। किसी भी प्रकार की हड़बड़ी या लापरवाही लाखों प्रतियोगियों की सेहत को खतरे में डाल सकती है। लिहाजा स्वास्थ्य और शिक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

तेल के बढ़ते दाम

कोरोना संकट और चीन-सीमा विवाद के बीच पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग पांच रुपये प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम हुई कीमतों का कोई लाभ शायद ही भारतीयों को मिल पाया। कारण स्पष्ट है कि जन-हितकारी सरकार आम आदमी को होने वाले लाभ को अपनी कमाई में जोड़कर अपना गणित सुधारने में जुटी रही। आम आदमी के बिगड़े हुए गणित से जैसे उसे कोई सरोकार न हो। पेट्रोलियम पदार्थों पर मनमानी नीतियां लागू करके सरकार जनमानस को क्या संदेश देना चाहती है, यह तो वही जाने, पर आम आदमी के लिए ऐसी नीतियां कष्टकारी सिद्ध हो रही हैं, जिसका एहसास सरकार को होना ही चाहिए।

विश्वासघाती चीन

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर अचानक हमला करके चीन ने अक्षम्य अपराध किया है। इस विश्वासघाती हमले के बाद भारत और चीन के बीच रहा-सहा विश्वास भी दरक गया है। अब चीन को कड़ा सबक सिखाना ही चाहिए। इसके लिए सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक उपायों के साथ-साथ जबर्दस्त आर्थिक नाकेबंदी भी हमें करनी होगी, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को चोट लगे। वहां से होने वाले आयात में हरसंभव कटौती का प्रयास केंद्र सरकार को करना चाहिए। ऐसी खबरें आई हैं कि हमारे यहां कई प्रोजेक्ट में चीन की कंपनियों को ठेके दिए गए हैं। उन ठेकों को रद्द करते हुए नए टेंडर जारी किए जाने चाहिए और उसमें चीनी कंपनियों के शामिल होने पर रोक लगा देनी चाहिए। हमारे देश में ही करोड़ों प्रशिक्षित लोग बेरोजगार हैं। हम उनके श्रम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर हम ‘मेक इन इंडिया' को बुलंद कर सके, तो आत्मनिर्भर आसानी से बन सकेंगे। चीन की हर तरह से आर्थिक कमर तोड़ने के अलावा भारत के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।

योग शिक्षकों की अनदेखी

यह सच है कि सरकार ने योग को देश की प्राचीन पद्धति के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। आज हम सभी स्वस्थ जीवन जीने के लिए योग-क्रिया करते हैं। यह बात भी साबित हो चुकी है कि नियमित योग करने से स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जीने में काफी मदद मिलती है। परंतु यह भी एक दुखद सत्य है कि सरकार योग शिक्षकों को लगातार उपेक्षित कर रही है। नियमित योग शिक्षकों को बहाल करने की बजाय अनुबंध पर कुछ स्कूलों में शिक्षकों को बहाल करके उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। राज्य सरकार योग दिवस पर आयोजन करके अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों की बहाली निश्चय ही अच्छी बात है, लेकिन जिन विद्यार्थियों ने योग में पीजी डिप्लोमा और एमए किया है, उनके बारे में केंद्र या राज्य सरकारों का न सोचना काफी दुखद है। स्थाई रोजगार से ही हम विद्यार्थियों में विश्वास पैदा होगा, तभी स्वस्थ तन और मन का भी विकास हो सकेगा।

बुधवार, 17 जून 2020

चीनी सामानों का करें बहिष्कार

जिस प्रकार बॉर्डर पर चीन ने वार्ता की आड़ में भारत के पीठ में छुरा घोप कर हमारे 20 सैनिकों की जान ली है, उससे सिद्ध होता है कि वह सभ्यता की भाषा नहीं जानता। उसके साथ भी शठे शाठ्यम समाचरेत वाला व्यवहार करना होगा। देश भी अब 1962 वाला देश नहीं है। हम उससे लड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं। हम सभी चीनी सामानों का सौ फीसदी बहिष्कार करें। यही देशभक्ति है। भारत के सैनिक भी उन्हें भरपूर जवाब दे रहे हैं और यह होना चाहिए। यदि वह शांति की भाषा नहीं समझता है तो यह आत्म सम्मान के लिए जरूरी है।

किसानों की बुनियादी समस्या हो दूर

भारत में कृषि कार्य मानसून का जुआ माना जाता था। स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाएं बनीं, हरित क्रांति की बातें की गईं। तत्कालीन सरकारों के पास इच्छाशक्ति की कमी होने से किसानों की बुनियादी समस्याओं को ठीक से समझा नहीं गया। नतीजतन, किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में जीता है, और कर्ज के चलते असमय जीवन गंवा देता है। कुछ संपन्न और बड़ी जोत के किसानों को छोड़ दें तो आज भी हालात ज्यों के त्यों हैं। उपज का उचित दाम न मिलने, प्राकृतिक आपदा और बिचौलियों के शोषण से अन्नदाता बमुश्किल अपना जीवन गुजार पा रहे हैं। यही कारण है कि कृषि के प्रति किसानों का उत्साह कम होता जा रहा है। कृषि कार्य से विमुख होकर किसान दूसरे काम, धंधों की ओर उन्मुख हो रहे हैं। 

चीन की चाल

सुपर पावर बनने की चीन की चाहत ने आज दुनिया के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पहले उसने कोरोना रूपी संकट दुनिया के सामने खड़ा किया और अब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारतीय सीमा में दखल दे रहा है। इस स्थिति में भारत की विदेश नीति कमजोर पड़ती दिख रही है। स्थिति यह है कि चीन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए नेपाल को भी हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है, जबकि अब तक काठमांडू हमारा सबसे विश्वसनीय मित्र रहा है। प्रधानमंत्री को बाकी सभी देशों के साथ मिलकर चीन से आ रही चुनौती से निपटना चाहिए। उन्हें चीन के खिलाफ डटकर खड़ा होना चाहिए।

कृषि और स्वरोजगार की शिक्षा दें

देश को विभिन्न समस्याओं से मुक्त करने में पढ़े-लिखे नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब वे किताबी पढ़ाई-लिखाई के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक भी पढ़ें। स्कूलों से आत्मनिर्भरता की राह तभी निकल सकती है, जब विद्याÍथयों को देशसेवा, जनसेवा का भी सबक पढ़ाया जाए। यही नहीं हमारे देश की आत्मनिर्भरता की राह में जनसंख्या भी एक बहुत बड़ी बाधा है। स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थाओं से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा पढ़ाई-लिखाई कर रोजगार तलाशने की ओर अग्रसर होते हैं। इनमें बहुत से दफ्तरी रोजगार पाने की लालसा रखते हैं। अगर इन्हें शिक्षा संस्थानों में कृषि और अन्य स्वरोजगार के बारे में भी पढ़ाया-समझाया जाए तो यह इनके बेहतर भविष्य के लिए उचित होगा। इससे देश में बेरोजगारी की समस्या से भी निपटने में काफी मदद मिलेगी। स्वरोजगार से देश में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।

जवाब देने का वक्त

चीन से जिस तरह का अंदेशा था, आखिर उसने वही विश्वासघात किया। भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश शोकाकुल है। भारत इसका बदला जरूर लेगा, लेकिन पीठ पीछे वार करके नहीं। इस हमले में चीन की कायरता ही नजर आई। इसलिए अब हमें अपनी चीन-नीति बदल लेनी चाहिए। हमें अब मान लेना चाहिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई' कभी नहीं हो सकते। अब चीन से सभी तरह के राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय और सैन्य समीकरण बदल जाने चाहिए। चीन को अलग-थलग करने की लड़ाई अब प्रमुखता से लड़ने की जरूरत है। भारत के लिए यह माकूल समय है, जब लगभग आधी दुनिया चीन के खिलाफ है। अब भारत सन 1962 वाला नहीं रहा। चीन को मजबूत जवाब दिया जाना चाहिए।

खान-पान पर भी बरतें सावधानियां

कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए हर व्यक्ति को खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बाहर की वस्तु का सेवन कदापि न करें और बच्चों को भी दुकानों के खुले सामान आइसक्रीम, कोल्डिंक्स इत्यादि का सेवन कतई न करने दें। घर में भी फ्रिज का बहुत ठंडा पानी व अधिक मसाला का सेवन न करें। कोरोना वायरस के साथ ही भीषण गर्मी का प्रभाव भी व्यक्ति के ऊपर पड़ता है, जिससे तरह-तरह की बीमारियां पांव पसारने लगती हैं। बाहरी सामानों के सेवन से संक्रमण का खतरा हर पल बना रहता है। इस नाते संकट के इस दौर में भरसक प्रयास करें कि बाहर के सामानों का सेवन न करना पड़े, जिससे संक्रमण को रोका जा सके। 

अनलॉक में खुद पर नियंत्रण जरूरी

जनपद में तेजी से कोरोना संक्रमित लोगों का तादात बढ़ रहा है। बाहर से असुरक्षित तरीके से यात्र कर आए श्रमिकों से संक्रमण बढ़ गया है। अभी भी बड़ी संख्या में प्रवासी लोग अपने-अपने घरों में छिपे पड़े हैं। उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए खुद ही अपने को क्वारंटीन होना चाहिए। अपने परिजनों की भलाई के लिए सभी आगंतुक प्रवासी लोगों को प्रशासनिक और चिकित्सीय सलाह को मानते हुए स्वयं शारीरिक दूरी बनाकर सुरक्षित रहना चाहिए। जरा भी खांसी, बुखार व कोई कोरोना का लक्षण दिखे तुरंत डॉक्टर को फोन कर बुलाये। अनलॉक का मतलब कोरोना का समाप्ति नहीं है अभी और ज्यादा सावधानी पूर्वक रहने की जरूरत है। घर के बच्चों और बुजुर्गों सहित बीमार लोगों का विशेष ख्याल रखना बहुत जरूरी है। 

बढ़ती परेशानियां

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने देश में नई बहस छेड़ दी है। यह बताता है कि देश में तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में नौजवान तुलनात्मक रूप से अधिक दिख रहे हैं, जो देश और समाज के लिए गंभीर संकेत है। आज अवसाद और तनाव की समस्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि शायद ही कोई इससे अछूता है। सेलिब्रिटी इससे ज्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि उन पर पूरे देश और समाज की नजर होती है। परेशानी की बड़ी बात यह है कि लोग इस समस्या पर अपनों से भी खुलकर बातें नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आज भी हमारे देश में शिक्षा की कमी है। घर, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कहीं पर भी अवसाद या हताशा पर चर्चा नहीं होती, इसे अनसुना कर दिया जाता है। इसी के कारण पीड़ित अपनी समस्या पर बात नहीं कर पाता औरवह अंदर-अंदर घुटता रहता है, और अंत में आत्महत्या की राह चुन लेता है। इस समस्या पर वक्त रहते ध्यान देना होगा।

पीठ पर वार

किसी मुल्क का क्षेत्रफल उसके साहस का परिचायक नहीं होता। अगर होता तो चीन जैसा देश पेट्रोलिंग पर भारतीय सेना द्वारा लौटाए जाने पर यूं छुपकर रॉड–पत्थर व कंटीले तारों से पीठ पर वार नहीं करता। चीन हमेशा से हमारी पीठ पर खंजर घोपता आया है। चाहे वो १९६२ का युद्ध ही क्यों न हो। डोकलाम में भारत ने उसे जिस कूटनीति से हराया था शायद वो उसे दोबारा दोहरा कर खुद को विश्व पटल पर किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं दिखना चाहता है। इसीलिए बातचीत के बीच भी वो इस तरह की झड़प कर भारत को डराना चाहता है। आज हर भारतीय को ५६ इंच के साथ अपनी सेना के साथ खड़ा होना है। 

आत्महत्या से सभी आहत

बिहार के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाले एक आम इंसान ने चांद को छू लेने जैसे सपने देखे। उसे पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर महज 34 वर्ष की उम्र में भारतीय फिल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई और कामयाबी की बुलंदियों की ओर धीरे-धीरे बढ़ते हुए ऊंचाई पाई। यह सुशांत सिंह राजपूत की कठिन परिश्रम का नतीजा था। अचानक उनकी खुदकुशी की खबर ने सभी को चकित कर दिया। यह आत्महत्या की खबर तथाकथित समाज विकास की विडंबनापूर्ण एवं त्रसद तस्वीर को बयां करती है। इस तरह आत्महत्या करना जीवन से पलायन का डरावना सत्य है। संपूर्ण मानवता इनके इस कदम से आहत है। 

चीन को जवाब जरूरी

अच्छे पडोसी एक दूसरे के काम आते हैं‚ जिसमें उनकी भलाई है। मगर पडोसी देश पाकिस्तान‚ चीन के बाद अब पिद्दी सा देश नेपाल भी भारत के क्षेत्र को अपने नक्शे में दिखाकर आंख दिखा रहा है‚ जो बड़े आश्चर्य की बात है। इससे यह साफ है कि पाकिस्तान और नेपाल ये हरकतें सिर्फ चीन के इशारे पर ही कर रहे हैं वरना तो इनकी औकात ही क्या है। सबसे पहले तो चीन से ही अब दो हाथ करने होंगे। इसके बाद इन दूसरों की तो कोई हिम्मत ही न होगी। देश आज शक्ति और संसाधनों से किसी से पीछे नहीं है। ऐसे में अच्छी‚ ठोस और सही नीति तथा नीयत से आगे बढ़ना जरूरी है। 

अश्लीलता के खिलाफ

विगत कुछ वर्षों में आधुनिकता और मनोरंजन के नाम पर फिल्मों समेत वीडियो, गाने आदि में धड़ल्ले से अब अश्लीलता परोसी जाने लगी है। सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि लोग इसे आधुनिकता का प्रतीक मानकर सामान्य जीवन में भी उतारने लगे हैं। इससे न केवल भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर गहरा दाग लग रहा है, बल्कि बच्चे, बुजुर्ग, युवा, सभी के मन-मस्तिष्क में अश्लीलता पनपने लगी है। इसी का नतीजा है कि देश के विभिन्न हिस्सों से दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। प्राचीन समय में सिनेमा जागरूकता, आचार-व्यवहार, संस्कार, न्याय और सभ्य जीवन शैली सिखाने का एक सशक्त-सकारात्मक माध्यम था, पर आज यह हमारे समाज को दीमक की तरह चट कर रहा है। साफ है, सेंसर बोर्ड इसके लिए जिम्मेदार है। अश्लीलता रोकने की बजाय वह अपनी मोटी कमाई के लिए बेसिर-पैर की फिल्मों को जारी करने की अनुमति देता है। इस प्रवृत्ति पर जल्द से जल्द रोक लगनी चाहिए।

चीन की नापाक हरकत

चीन ने लद्दाख में हाल ही में जो नापाक हरकत की‚ वो उसके नापाक इरादों को उजागर करती है। जहां एक तरफ आज जब सारी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से जूझ रही है‚ वहीं हमारे देश के नापाक पड़ोसी देशों को शरारत करने की सूझ रही है‚ जोकि बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है। चीन ने भारत–चीन सीमा पर गलवान घाटी में पाकिस्तान जैसी अपनी नापाक हरकत को अंजाम देकर यह साफ कर दिया कि यह भी भरोसे लायक नहीं है‚ इसकी कथनी–करनी में जमीन आसमान का फर्क है‚ यह भी दोस्ती की आड़ में दुश्मनी निभा सकता है‚ लेकिन फिर भी चीन की इस नापाक हरकत ने मोदी सरकार की विदेश नीति और नापाक पडोसियों को सख्त सबक सिखाने की नीयत को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। 

दिनचर्या चलाना मुश्किल

तेल की कीमतों में नरमी आने के बावजूद देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में कोई भी राहत नहीं हुई है। आम जनता ने इस पर आपत्ति जताई तो पेट्रोलियम उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि यह वृद्धि अवश्यंभावी है क्योंकि कोविड–१९ महामारी के कारण जब देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया एवं आÌथक गतिविधियां ठप हो गई थीं‚ तो तब पेट्रोलियम पदार्थों के दाम एक समय में दो दशक के निम्न स्तर पर पहुंच गए थे। परंतु गौरतलब है कि जहां लोग पहले से ही लॉकडाउन के कारण अपनी जेबें जरूरत से ज्यादा ढीली कर चुके हैं‚ तो ऐसे में महंगाई इतनी बढ़ जाएगी तो लोग अपनी दिनचर्या कैसे जिएंगे॥

मंगलवार, 16 जून 2020

नेपाल की मंशा

पड़ोसी देश नेपाल जिस तरह से चीन की जुबान बोल रहा है, उससे लगता है कि चीन कोई राजनीतिक चाल चलने की तैयारी कर चुका है। भारत की चेतावनी के बाद भी नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को अपने नए नक्शे में शामिल कर लिया और उस पर राजनीतिक मुहर लगा दी। इससे लगता है कि वह पूरी तरह से भारत के साथ अपने रिश्तों को भूल चुका है। सीमा पर बेवजह का विवाद खड़ा करके वह चीन के हाथों की कठपुतली बन गया है। इस विवाद से निरंतर नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ रहे हैं। अच्छी बात है कि भारत ने अब भी बातचीत करके मसले को सुलझाने का भरोसा दिया है। इससे नेपाल को भारत की भलमनसाहत का एहसास हो जाना चाहिए।

अफवाहों को रोकें

जब हमारा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है और सरकार-प्रशासन समेत सभी संवेदनशील नागरिक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं, तब कुछ लोग सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप जानकारी साझा कर रहे हैं, जबकि इसके माध्यम से सरकारी अधिकारी भी आम लोगों के लिए दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। दिक्कत यह है कि जागरूकता के अभाव में कई लोग इन भ्रामक जानकारियों में फंस जाते हैं। इन अराजक तत्वों पर जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए। यह संबंधित विभाग का दायित्व है कि वह स्वत: संज्ञान लेकर उन लोगों पर कार्रवाई करे, जो गलत सूचनाएं साझा करते हैं और लोगों को भ्रमित करते हैं। आज जब देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है,तब सोशल मीडिया के माध्यम से हम कई अच्छे काम कर सकते हैं। एकांतवास के इस दौर में आभासी तौर पर लोगों को जोड़ना वक्त की मांग है। रिश्तों को तोड़ने की कोशिश करना अक्षम्य अपराध माना जाना चाहिए।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...