अमूमन यही देखा गया है कि बॉलीवुड से पॉलीवुड यानी सियासी पगडंडियों का सफर शुरू करने वाले राजनीति में अपनी मंजिल तक कम ही पहुंच पाते हैं। अपनी सीमित राजनीतिक सोच और कुशलता के अभाव में उनकी सियासी पारी अक्सर छोटी रह जाती है। केंद्र की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने जब सिने वर्ल्ड छोड़कर संसद में प्रवेश किया तो यही माना गया कि यह तो पिता की राजनीतिक कमाई का फल है। हालांकि सही वक्त पर अपने पिता को भाजपा के साथ लाने, फिर सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी बरकरार रखने, बिहार चुनाव से पहले ‘युवा बिहारी’ के टाइटल के साथ पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर सरकार को ही घेरने और विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीनने की जो रणनीति उन्होंने अपनाई, उसने दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को भी आकर्षित किया है। कहा जा रहा है यह राजनीतिक खून का असर है। अब इंतजार है आगामी बिहार चुनाव का। शायद यहीं से यह तय होगा कि चिराग अपने पिता की राजनीतिक विरासत को कितना विस्तार दे पाएंगे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई बुरा ना माने,
मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...
-
भारत इस वक्त कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सामना अपने दृढ़ संकल्प से कर रहा है। पश्चिमी मीडिया और भारत के एक वर्ग के भीतर यह कुंठा साफ म...
-
कानपुर–कांड़ का दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे को काफी लम्बी जद्दोजहद के बाद अन्ततः मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद अब इस...
-
कोविड़–१९ के प्रकोप का दौर अभी भी जारी ही रहेगा क्योंकि वायरस किसी भी ढंग से कम नहीं हो रहा है। समूचे विश्व में तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोन...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें