वर्तमान स्थितियों में भारत-चीन सीमा पर जैसे हालात बन रहे हैं, उसके मद्देनजर अब चीन के साथ दुश्मन देश जैसा व्यवहार करना जरूरी है। इसके लिए जहां एक ओर जबरदस्त सैन्य आक्रामकता की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर चीन निíमत वस्तुओं का देशव्यापी बहिष्कार भी आवश्यक है। संघ का आनुषांगिक संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ तो बहुत पहले से ही चीन निíमत वस्तुओं के बहिष्कार की अलख जगा रहा है। लेकिन सस्ते के चक्कर में फंसा हुआ भारतीय उपभोक्ता चीनी उत्पाद से अपना मोह भंग नहीं कर पा रहा था। लेकिन आज जब चीन खुलकर भारत से दुश्मनी निभाने पर उतारू है तो सभी देशभक्त भारतवासियों का यह फर्ज बनता है कि वे चीन निíमत वस्तुओं का बहिष्कार करें, भले ही वह वस्तु कितनी सस्ती और उपयोगी क्यों न हो। भारतीय जन-मानस का यह चीन विरोधी रुख उसकी आíथक कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए जिस जन जागरूकता की जरूरत है, उसका अभाव परिलक्षित हो रहा है। कोरोना के साथ साथ दुराग्रही विपक्ष की आलोचना और असहयोग से जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब यह जरूरी है कि वह चीन के उस दुष्प्रचार का कि यदि भारत चीन पर आक्रामक हुआ तो उसे पाकिस्तान और नेपाली सेनाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जबाव देते हुए सीमा पर चीन के समक्ष अपनी सैन्य आक्रामकता को बनाए रखे। चूंकि भारतीय सैनिकों ने पहली झड़प में ही चीनी सेना को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, इसलिए अब चीन के समक्ष भारत का रक्षात्मक मुद्रा में रहना कतई उचित नहीं होगा। भारत को चीन के हर दुस्साहस का कड़ाई से प्रतिकार करना चाहिए।
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