आज के ही दिन 25 जून, 1975 को भारत के महान लोकतंत्र की हत्या हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता के लिए देश के लोकतंत्र का गला घोंटने में संकोच नहीं किया था। देश ने लगातार 21 महीने तक इंदिरा शासन की तानाशाही को बर्दाश्त किया था। संजय गांधी और उनके सलाहकार आरके धवन की चौकड़ी ने कैबिनेट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को धता बताकर देश के शासन का संचालन सूत्र अपने हाथों में ले लिया था। एक अनजाने भय के वशीभूत होकर इंदिरा सरकार ने संघ के सभी आयु वर्ग के स्वयं सेवकों के साथ जो क्रूरतम व्यवहार किया, उसको विस्मृत नहीं किया जा सकता। यह अत्याचार कांग्रेस के लिए इतना घातक सिद्ध हुआ कि 1977 के आम चुनाव में देश की आम जनता ने इंदिरा गांधी को सत्ताच्युत कर दिया। यद्यपि विपक्षी दलों के घालमेल से बनी जनता दल सरकार भी बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह पाई। जिसके परिणामस्वरूप अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने सब कुछ भुलाकर इंदिरा गांधी के हाथों में फिर से देश की बागडोर सौंप दी। राजनीति में इस तरह का विस्मरण संभव है, लेकिन सामान्य जन-जीवन में आपातकाल के काले अध्याय को भुला पाना संभव नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह किसी सबक से कम नहीं है।
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