छोटे विवादों के बाद पीड़ित पक्ष थाने पर न्याय के लिए पहुंचते हैं तो थाने पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की रवैया भी बहुत अजीब है। समस्या के समाधान या मुकदमा दर्ज कराने के बजाए पीड़ित और विपक्षी को थाने पर बुलाया जाता है। विपक्षी की पैठ पुलिस में अच्छी होने पर उसको तवज्जो और पीड़ित को दबाव दिया जाता है। पुलिस आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के बजाए पंचायत करने में जुट जाती है। लाचार पीड़ित पुलिस के खौफ से दबाव में आकर बगैर समाधान के सुलह पर सहमत हो जाता है। जिससे पीड़ितों को थाने स्तर से बहुत ही कम न्याय मिल पाता है। जिसकी वजह से आपराधिक घटनाएं अधिक हो रही हैं। पुलिस की लापरवाही से पीड़ितों को नुकसानी भी उठानी पड़ रही है। ऐसे में थाने पर पुलिस की कार्यशैली में बदलाव समय की मांग है। जिससे निरीह पीड़ितों को न्याय मिल सके।
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