बुधवार, 27 मई 2020
ऐसा हो लोकतंत्र
नई भूमिका में राहुल
मंगलवार, 12 मई 2020
अगली पीढ़ी के लिए
कोरोना वायरस जब मनुष्य का जीवन निगल रहा है, तब पर्यावरण को एक नया जीवन मिल रहा है। पर्यावरण को सुधारने में हम दशकों से लगे हुए हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी सफलता हमें अब तक नहीं मिल पाई थी। मगर अब एक महामारी ने पूरी तस्वीर बदल दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 70 लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं, वायरस भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से खराब पर्यावरण की ही देन हैं। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प है कि हम कब तक पर्यावरण को इस तरह साफ रख पाते हैं? अब यह एक एक इंसान के आगे साफ हो गया है कि जीवित रहने के लिए हमें स्वच्छ पर्यावरण की ही जरूरत है। अपनी नहीं, तो कम से कम अगली पीढ़ी के बारे में हमें सोचना ही चाहिए।
नीति क्यों
विगत 20 अप्रैल को बिहार के सिर्फ पांच जिले कोरोना-संक्रमित थे, लेकिन आज कमोबेश पूरा बिहार इससे संक्रमित हो चुका है। कुछ यही स्थिति पूरे देश की है। माना कि आज टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं, मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि जो जहां है, वह वहीं रहे। ऐसे में, आखिर क्या वजह है कि अब लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाकर संक्रमण बढ़ाने का जोखिम लिया जा रहा है। क्या भारत से कोरोना खत्म हो गया है? जब देशवासी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए इतने दिनों से कष्ट उठा रहे थे, तो इन लोगों को कुछ दिन और रोकने में दिक्कत क्या थी? मजदूरों की घर वापसी कई अन्य तरह की समस्याओं को जन्म देगी। जिन राज्यों में ये लौट रहे हैं, वहां इन्हें काम मिलना कठिन है, क्योंकि रोजगार की तलाश में ही तो वे प्रवासी बने थे। और फिर, जहां से वे लौट रहे हैं, वहां पर भी मानव संसाधन की कमी हो जाने से उद्योग-धंधों पर बुरा असर पडे़गा। साफ है, कोरोना नियंत्रण के लिए जांच के साथ-साथ राहत के उपाय को भी तेज करने की जरूरत है। सरकारों को मिलकर इस पर काम करना होगा।
इम्तिहान लेता वक्त
लॉकडाउन खुलने के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम दैहिक दूरी को बनाए रखना है। जब हर तरह की सेवाएं शुरू हो जाएंगी, रेल-बसें आदि चलने लगेंगी, मॉल-सिनेमा घर खुल जाएंगे, कंपनी-फैक्टरियों में काम होने लगेगा, तो लोगों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखना आसान काम नहीं होगा। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए। हालांकि लोगों को भी संयम, धैर्य, जागरूकता और समझदारी का परिचय देना होगा। वर्ष 2020 के अंत तक इस महामारी के उन्मूलन की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में, यह पूरा ही वर्ष हमारा इम्तिहान लेने वाला है।
गंदी राजनीति से बचें
क्या मज़दूर अब ग़ुलाम हो जाएंगे?
सोमवार, 11 मई 2020
सामूहिक प्रयास हों
केंद्र और राज्य सरकारों के सामने परीक्षा की यह वह घड़ी है, जब कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने के प्रयास करने हैं। यह करीब-करीब स्पष्ट है कि कारोबारी गतिविधियों को गति देने के कुछ उपाय अब किए जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र और राज्य ज्यादा से ज्यादा फैसले मिलकर करें और उन पर अमल केंद्र सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप हो।
बदहाल अन्नदाता
जहां भारत में रोजाना कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारी अर्थव्यवस्था के आधार किसानों की हालत भी लगातार दयनीय होती जा रही है। पहले ही महामारी और पूर्ण बंदी ने सारा काम बिगाड़ रखा है, और अब बेवक्त की आंधी और बारिश ने बची कसर पूरी कर दी। पूर्ण बंदी की वजह से किसान अपनी फसल नहीं काट पा रहे, जबकि आंधी-पानी से फसल खेत में ही खराब हो रही है। पता नहीं, हमारे अन्नदाताओं की मुश्किलों का अंत कब होगा?
महाराष्ट्र की जंग
जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी कुरसी बचाने के लिए धमकी देनी पडे़, तो ऐसे मुख्यमंत्री को मजबूत कतई नहीं कहा जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के लिए महा विकास आघाडी में शामिल पार्टियों में घमासान मचा हुआ है, उससे तो यही लगता है कि उनमें समन्वय का घोर अभाव है। वैसे शिवसेना की धमकी के बाद उद्धव ठाकरे का राज्य विधान परिषद में जाना तय है, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस ने शिवसेना को परेशान कर दिया, उससे तो यही जाहिर होता है कि उनमें अच्छा तालमेल अब तक नहीं बन सका है।
जागरूकता है जरूरी
रविवार, 10 मई 2020
जान गंवाते मजदूर
शुक्रवार की सुबह रेल की पटरी पर सो गए प्रवासी #मजदूरों पर एक मालगाड़ी के गुजर जाने से कई मजदूरों की मौत हो गई। यह घटना बेहद दर्दनाक है। असल में, ये मजदूर #लॉकडाउन के कारण साधन के अभाव में रेल पटरियों से स्टेशन जा रहे थे। जैसा तय था, रेलवे ने संवेदना जताकर मामला खत्म कर दिया और सरकार ने शोक व्यक्त करके अपनी जिम्मेदारी निभा ली। मगर सवाल यह है कि जिन मजदूरों से देश के बडे़-बडे़ कारखाने चलते हैं, लॉकडाउन की इस विकट स्थिति में उनकी दशा इतनी खराब क्यों हो गई है? उनकी इस कदर #अनदेखी क्या उचित है?
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
कोई बुरा ना माने,
मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...
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लॉकडाउन के बाद पूरे देश की आÌथक स्थिति चरमरा गई है। छोटे उद्योग–धंधे वाले‚ छोटे पूंजीपति वर्ग‚ कारीगरों के लिए सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं ...
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मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...
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Shakti Anand Kanaujiya बेबाक अपना काम बखूबी करने वाले इस शख्सियत के पास इतनी फुर्सत नहीं कि इस महामारी में अपने ऊपर कशीदे लिखने - पढने वालो ...