कई राज्यों ने मजदूरों से संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिए हैं और मौजूदा कानूनों को कुछ महीनों से लेकर तीन-तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिए गया है. क्या मजदूरों को भी कानून की सुरक्षा से बेदख़ल किया जा रहा है. एक ऐसे वक्त में जब उनके पास रोजगार नहीं है, पैसा नहीं है, अनाज नहीं है, और वो हजारों मील दूर पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं, क्या ऐसा किया जाना बेहद जरूरी था? मीडिया जब भी मजदूरों के कानूनों का कमजोर किया जाता है तो उसे सुधार कहता है. लेबर रिफॉर्म कहता है. इस मीडिया का बस चलता तो श्रम कल्याण मंत्रालय का नाम ही उद्योग कल्याण मंत्रालय रख देता. और देश में श्रम मंत्री की जरूरत को ही खत्म कर देता.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई बुरा ना माने,
मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...
-
भारत इस वक्त कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सामना अपने दृढ़ संकल्प से कर रहा है। पश्चिमी मीडिया और भारत के एक वर्ग के भीतर यह कुंठा साफ म...
-
कानपुर–कांड़ का दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे को काफी लम्बी जद्दोजहद के बाद अन्ततः मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद अब इस...
-
कोविड़–१९ के प्रकोप का दौर अभी भी जारी ही रहेगा क्योंकि वायरस किसी भी ढंग से कम नहीं हो रहा है। समूचे विश्व में तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोन...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें