वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें।
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