भारत में कृषि कार्य मानसून का जुआ माना जाता था। स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाएं बनीं, हरित क्रांति की बातें की गईं। तत्कालीन सरकारों के पास इच्छाशक्ति की कमी होने से किसानों की बुनियादी समस्याओं को ठीक से समझा नहीं गया। नतीजतन, किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में जीता है, और कर्ज के चलते असमय जीवन गंवा देता है। कुछ संपन्न और बड़ी जोत के किसानों को छोड़ दें तो आज भी हालात ज्यों के त्यों हैं। उपज का उचित दाम न मिलने, प्राकृतिक आपदा और बिचौलियों के शोषण से अन्नदाता बमुश्किल अपना जीवन गुजार पा रहे हैं। यही कारण है कि कृषि के प्रति किसानों का उत्साह कम होता जा रहा है। कृषि कार्य से विमुख होकर किसान दूसरे काम, धंधों की ओर उन्मुख हो रहे हैं।
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