कोरोना काल हो या मौजूदा भारत-चीन संकट, उसमें कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं ने बचकाने प्रश्न पूछकर बार-बार अपने अपरिपक्व रवैये का ही प्रदर्शन किया है। संभव है कि उन्हें यह संकटकाल राजनीतिक बढ़त का अवसर दिख रहा हो, लेकिन उन्हें इससे पहले राष्ट्रीय हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में कांग्रेस अन्य दलों से सबक ले सकती है जिनमें से कई सरकार के बेहद तल्ख विरोधी हैं, लेकिन इस संकट में सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी गतिशील लोकतंत्र को एक सशक्त विपक्ष की भी उतनी ही दरकार होती है जितनी मजबूत सत्ता प्रतिष्ठान की। इसके लिए आवश्यक होगा कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अर्थपूर्ण सवाल उठाए। इससे न केवल वह अपनी भूमिका का सही से निर्वहन कर सकेगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अफसोस की बात यही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा जिसकी बानगी सर्वदलीय बैठक में देखने को मिली। वहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि वामदल इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं लेना चाहते। वे भी आग में घी डालने से पीछे नहीं रहे और 1962 वाला उनका चीनी प्रेम आखिर जगजाहिर हो ही गया। उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि संकट के समय में ऐसी राजनीतिक विषमताएं शत्रु देश को संजीवनी देने का ही कार्य करती हैं।अमित दुबे, छिबरामऊ(कन्नौज)कार्बाइड का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातकप्रशासन के मनाही के बाद भी कई फलों को पकाने के लिए आज भी कार्बाइड का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। खासतौर पर इस समय आम पकाने के लिए तो इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में बिकने वाले लगभग आम कार्बाइड से ही पकाए गए हैं। कार्बाइड एक खतरनाक केमिकल और इसका उपयोग शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद भी फलों को पकाने में किए जा रहे इसे प्रयोग पर रोक नहीं लग पा रहा है। इस तरह की स्थिति में लगभग सभी लोग मीठा जहर के रूप में इसे शरीर के अंदर ले रहे हैं। कोरोना वायरस के समय यह और घातक हो जाता है।माया यादव, रामपुर महावल, बलिया।अब कस्बों और गांवों की ओर कोरोनामहानगरों से बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी के बाद छोटे-छोटे नगरों व कस्बों में भी तेजी से कोराना वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है। लाकडाउन खुलने के बाद लोग वापस पुराने र्ढे की जीवनशैली पर तेजी से लौटने लगे हैं, जिसके साइड इफेक्ट भी कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई देने लगा है। कई माह के कारोबार की बंदी और बेरोजगारी से भी सबक लेने को लोग तैयार नहीं हैं। छोटे शहरों के लोगों को भी अब बेहद सतर्क और चौकन्ना रहना होगा। पुष्पा त्रिपाठी, हिकमा कोपागंज, मऊ।पेड़ों की रुके कटाईपर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जंगलों को संरक्षित रखने की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए जाने से वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी
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