आज के इस इंटरनेट के युग में अब कोई यक्ष अपनी प्रेयसी यक्षिणी को मेघ के माध्यम से संदेशा भेजने का साहस नहीं दिखाता है। अब तो मेघों के माध्यम से संदेशा भेजना तो दूर की कौड़ी; चिट्ठियों के दौर को भी आधुनिकता ने निगल लिया है। अब तो सावन मोबाइल की सात इंच की स्क्रीन तक सिमट कर रह गया है। वन और वृक्षों का इस गति से सफाया होता गया कि सावन की हरियाली नदारद होती गई। भगवान शिव को भी जंगल की गुफाओं से लाकर अट्टालिकाओं के गृहगर्भ में शिफ्ट कर दिया गया। लगता है रूठ गया है सावन। इसलिए भी कि जिन अंग्रेजों की तपती जुल्म की गर्मी से राहत दिलवाकर शहीदों ने भारतवर्ष में सावन लाया था‚ उस सावन का तथाकथित जनसेवकों ने सत्यानाश कर दिया। अब भारतीय जनता के भाग्य में केवल तपना ही लिखा है॥
सोमवार, 13 जुलाई 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई बुरा ना माने,
मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...
-
लॉकडाउन के बाद पूरे देश की आÌथक स्थिति चरमरा गई है। छोटे उद्योग–धंधे वाले‚ छोटे पूंजीपति वर्ग‚ कारीगरों के लिए सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं ...
-
Shakti Anand Kanaujiya बेबाक अपना काम बखूबी करने वाले इस शख्सियत के पास इतनी फुर्सत नहीं कि इस महामारी में अपने ऊपर कशीदे लिखने - पढने वालो ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें