शनिवार, 4 जुलाई 2020

सियासी बंगला

मौजूदा दौर में सियासतदां ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालकर एक दूसरे की सफेदी को गंदा करने का मौका नहीं चूकते। मगर इस दौर में भी कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनका जिक्र आते ही ऐसी सियासत थम जाती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बंगले का आवंटन रद करने के सरकार के फैसले पर छिड़ी सियासी जंग के बीच ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। इसे गांधी परिवार के खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने अपने आधिकारिक बयान में भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बंगले पर सवाल उठाने की तैयारी कर ली। मगर बताया जाता है कि बयान के इस मजमून में आडवाणी का नाम देखकर कांग्रेस नेतृत्व ने इसे आधिकारिक बयान में शामिल करने की इजाजत नहीं दी। दरअसल वैचारिक दूरी के बावजूद बीते कुछ वर्षो में सोनिया गांधी और आडवाणी के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। अपनी आत्मकथा सोनिया को भेंट करने के लिए कुछ साल पूर्व आडवाणी दस जनपथ भी गए थे। राजनीतिक गलियारों और संसद में रूबरू होने के दौरान राहुल गांधी भी आडवाणी को पूरा सम्मान देते हैं। इसीलिए बंगले की सियासत में हाइकमान ने ही आडवाणी का नाम नहीं लेने की ताकीद कर दी। फिर स्वाभाविक रूप से जोशी का जिक्र भी नहीं किया गया। इसलिए यह कहना गैरमुनासिब नहीं कि कुछ चेहरों के आगे सियासत भी लिहाज करती है।

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