लॉकड़ाउन जब दो महीने का होता था‚ तब उसे मेगा लॉकडाउन का लॉकडाउन का फैमिली पैक कह सकते थे‚ अब ५५ घंटों के लॉकडाउन‚ ४८ घंटों के लॉकडाउन‚ इन्हें लॉकडाउन का पाऊच वर्जन कहा जा सकता है। अब लॉकडाउन का फैमिली पैक खत्म हो लिया है‚ पाऊच वर्जन चल रहा है। बंगलूर में‚ यूपी में और भी बहुत जगह॥। कोरोना पर खबरें लिखने वाले और पढ़ने वाले दोनों ही बहुत परेशान हो गए हैं कोरोना से। डर का एक मनोविज्ञान यह भी है कि जब डर बहुत ज्यादा फैल जाता है‚ तो एक खास किस्म की निडरता को जन्म देता है–ठीक है‚ होगा जो भी देखा जाएगा। दरअसल‚ इसके सिवाय कोई विकल्प भी नहीं है। क्या कर लेंगे‚ कोरोना आ रहा है‚ कोरोना आ गया है‚ कोरोना आएगा। क्या किया जा सकता है। पाऊच लॉकडाउन को देखिए‚ मेगा लॉकडाउन देख चुके हैं। मैं तो रोज सरकारी बयानों को देखता हूं‚ जिनमें सब कुछ फिट दिखाई देता है। वैसे कोरोना भी सबके लिए एक सा ना होता। बड़ा आदमी कोरोना की गिरफ्त में आता है‚ तो खबरें ये आती हैं‚ फलां जी ने १२ बजे पानी पिया‚ १ बजे सेब खाया‚ २ बजे ये खाया.। आदमी फंसता है‚ तो खबर यह आती है कि सात अस्पतालों में गर्भवती पत्नी लेकर भटकते रहा भट्टालाल कहीं दाखिला ना मिला। ॥ कोरोना टाइप की बीमारियां बड़े आदमियों को ही होनी चाहिए‚ दरअसल वो ही अफोर्ड कर सकते हैं। लॉकडाउन में थ्रोबैक पुरानी फोटू डालते हैं–बीस साल पहले मैं ऐसा था–टाइप। आम आदमी की जिंदगी में बीस साल में फर्क इतना भर आ जाता है कि बीस साल पहले वह बच्चे के स्कूल एडमीशन की लाइन में खड़ा था‚ अब वह कंसेशन रेट पर कराए जा रहे कोरोना टेस्ट की लाइन में लगा हुआ। पुराना नया सब एक सा है‚ बदलता नहीं है। लाइन में हैं जी। लाइन मुक्त होकर फाइव स्टार जीवन के लिए इस मुल्क में या तो परम संपन्न होना पड़ेगा या विधायक‚ जाने कहां कहां के विधायक फाइव स्टार होटलों में जनता की सेवा कर रहे हैं। आप ना विधायक हैं ना संपन्न‚ तो भगवान ना करे कि आपकी ऐसी खबरें आएं–किसी अस्पताल में दाखिला ना मिला।
सोमवार, 13 जुलाई 2020
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