सोमवार, 27 जुलाई 2020

कड़़ी कार्रवाई जरूरी

दिल्ली हमेशा ही चर्चा में रहती है। प्रत्येक वर्ष कुछ महीने के लिए दिल्ली में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इसी के कारण कूड़़ा जलाने पर भी प्रतिबंध है। इसके बावजूद खुलेआम नशीले पदार्थों की बिक्री होती है। १८ वर्ष से कम आयु के लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए मनाही है‚ लेकिन सिर्फ कागजों पर। जब भी प्रतिबंध लगाया जाता है तो कुछ दिनों तक सख्ती देखने को मिलती है। बाद में सब साधारण हो जाता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसे नियमों को लाने के बाद सख्ती से पालन भी कराएं और नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई भी हो‚ तभी इनसे निजात पाया जा सकता है।

जनता से संवाद

कल ‘मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस के प्रति देश की जनता को आगाह किया। उन्होंने कहा कि खतरा अभी भी टला नहीं है; इसलिए मास्क पहनना और दो गज की दूरी बनाए रखना जरूरी है। संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने मास्क पहनने से होने वाली परेशानियों का भी जिक्र किया। वहीं उन्होंने डॉक्टर और नर्स का उदाहरण देते हुए कहा वह हमारी सेवा करने के लिए घंटों मास्क पहने रहते हैं तो क्या आप मास्क नहीं पहन सकते हैंॽ सावधानी और सतर्कता अभी भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि पहले थी। संबोधन के दौरान मोदी ने कोरोना से रिकवरी रेट और कम मृत्यु दर का भी जिक्र किया।

भविष्य का सवाल है

कोरोना के बढ़ते रफ्तार को देखते हुए परीक्षा का विरोध व्यवहारिक एवं जायज भी है‚ लेकिन गंभीर मसला यह है कि परीक्षा न कराने की स्थिति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास विकल्प क्या हैॽ बड़े स्तर पर मास प्रमोशन भी छात्रों के हितों में नहीं है। अगर उनको प्रोन्नत कर दिया जाता है तो फिर कोरोना काल की समाप्ति के बाद उनकी डिग्री को संदेह की oष्टि से निजी कंपनियां देखेंगी। गांव–देहात में नेट कनेक्टिविटी के जर्जर हालात को देखते हुए ऑनलाइन परीक्षा कराने की बात सोचना भी न्यायसंगत नहीं है। ऐसे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को मिल–बैठकर बीच का कोई रास्ता निकालना चाहिए‚ जिससे छात्रों का भविष्य दांव पर न लगे। इस मसले पर तत्काल निर्णय लिया जाए॥

सतर्क रहना होगा

मेरठ में लव जिहाद की हालिया वारदात वाकई बेहद गंभीर है। आखिर क्यों हिंदू लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं। प्रिया की मौत कोई पहली मौत नहीं है। इस प्रकार की घटना मेरठ में पहले भी घटी थी। मेरठ में लोइया ग्राम निवासी शाकिब ने अपना धर्म छिपाकर एकता नाम की युवती को अपने प्रेम जाल में फंसाया और फिर सच्चाई खुलने पर एकता के शरीर के टुकड़े–दुकड़े कर दिए। लव जिहाद जैसी घटनाओं पर सरकार को तो सख्ती करनी ही चाहिए‚ इसके अतिरिक्त युवतियों को भी अपनी समझदारी का स्तर बढ़ना होगा। परिवार को भी ऐसे मामलों में सचेत रहने की जरूरत है॥

बुधवार, 22 जुलाई 2020

ऑनलाइन मतदान का विकल्प

वर्तमान समय में पूरी दुनिया के साथ बिहार में भी कोरोना का कहर जारी है। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के काल में ऐसा लग रहा है मानो सरकार चुनाव कराने के लिए कटिबद्ध हो लेकिन आज कोरोना का प्रकोप कहर ढा रहा है। लोगों को इलाज की जरूरत हैसरकार को चुनाव कराने की इतनी ही ज्यादा जल्दी है और लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए इतनी ही बेकरारी हैतो ऑनलाइन चुनाव करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। ऑनलाइन शॉपिंग की तरह ऑनलाइन मतदान की व्यवस्था करे। जिस तरह नेट बैंकिंग द्वारा पैसा ट्रांसफर हो जाता हैउसी तरह मतदान की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती। लोकतंत्र को जिंदा रखने के नाम पर लोक के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं किया जाए। विदेशों में कोरोनाकाल में चुनाव होने का तर्क देकर बिहार में भी चुनाव कराने का तर्क दिया जाता हैतो उन्हें विशाल मतदाता संख्या को भी देखने की जरूरत है।


विधायकों की पिंजड़़ाबंदी

जब तक उच्चतम न्यायालय से फैसला नहीं आ जाता है‚ तब तक राजस्थान की जनता को देखने वाला कोई नहीं है। विधायकों का यह आचरण लोकतंत्र की मर्यादा के विरुûद्ध है। उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान भी विधायकों को जनता के बीच रहना चाहिए। जिस तरीके से लोग जानवरों को पिंजड़े में कैद कर रखते हैं‚ उसी तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने–अपने समर्थक विधायकों को पिंजड़े में कैद किए हुए हैं। क्या इन नेताओं को अपने विधायकों पर भरोसा नहीं है‚ या इनकी जान को खतरा हैॽ विधायकों की निष्ठा जनता के प्रति है या बड़े नेताओं के प्रतिॽ जनता को इन सभी सवालों का जवाब जानने का हक है। यह लोकतंत्र के पतन की पराकाष्ठा है। न्यायालय को जनता की खातिर जल्द से जल्द इस मामले में फैसला सुना देना चाहिए॥

न हो अनर्गल शब्दों का प्रयोग

विगत दिनों से राजस्थान में राजनीति के अंतर कलह और दांवपेच जग जाहिर हैं। राजनेताओं के आपसी मतभेदों की चरम सीमा यहां तक पहुंच गई कि निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्द उस माहौल में गूंज रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं के आक्रोश भरे मतभेद ओर अंतर कलह की इस प्रतियोगिता में राजनेताओं को यह भी भान नहीं होता कि हम आरोप–प्रत्यारोप में जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं‚ उनका जना धार पर और समाज पर क्या प्रभाव होगा.ॽ कम से कम अशोभनीय और अनर्गल शब्दों का तो ध्यान रखना चाहिए। निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्दों का अगर प्रयोग होगा तो राजनीति के मायने ही बदल जाएंगे॥


कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...