मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

नफरत

कभी ख्वाबो में तुम्हे तराशा, 
तो कभी ख्यालो में सज़दा किया,
तुम्हारा रूप कभी चांदनी बनकर बिखरा,
तो कभी शबनम  बनकर,
इस दिल में तुम्हारी अदाए ही क्या कम थी,
जो क़यामत ढ़ाने के लिए तुमने मुझे छुकर कहा 
कि तुम मुझसे नफरत करती हो 
-शक्ति आनंद 

बेचैन

" बिखरे हुए चंद लम्हे, 
कुछ सिमटे हुए ख्वाब, 
खुशियो  के चंद  मंज़र, 
मुहब्बत के कुछ एहसास,
शायर मन हो तो कभी शेर बनते है, 
कभी ग़ज़ल, कभी गीत तो
कभी कविता या फिर सिर्फ लफ्ज़।
 जिंदगी  मशरूफियत ने कभी इन्हे समेटने का मौका ही नहीं दिया, 
आज जिंदगी ने कुछ फुर्सत दी तो
शायरी और लफ्ज़ो  के समुन्दर को समेटने का मौका मिला"

-शक्ति आनंद

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां 

गुलशन में नहीं लगता।
शेहरा में नहीं सजता। 
ले जाँउ कहाँ तुझको। 
दिल तुही बता मुझको। 

(एक तोहफ़ा ज़ज्बात का)
-शक्ति आनंद 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...