सोमवार, 22 जून 2015

कोटेदार बेच रहे राशन

सरकार की लाख कवायद के बाद भी कार्डधारकों को राशन नहीं मिल रहा है। कोटेदार राशन को बाजार में बेच कर कार्डधारकों का हक मार रहे हैं साथ ही राशन बिकने से मिलने वाले पैसे का कुछ हिस्सा कर्मचारी को देकर उनका मुंह बंद कर दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पूर्ति विभाग के उच्चाधिकारियों को इस बारे में कुछ नही मालूम है लेकिन वह भी जांच के बहाने अपना हिस्सा लेते हैं। कार्डधारकों में राशन वितरित कराने के लिए विभाग के अधिकारी, कर्मचारी निरीक्षण करते हैं और सरकारी कागजों में निरीक्षण की खानापूर्ति कर कोटेदार को राशन बेचने का लाइसेंस दे देते हैं। यदि कोई साहब उनके इस कार्य में रोड़ा पहुंचाने का प्रयास करते हैं तो उनकी जेब भी गर्म कर उन्हें खामोश कर देते हैं। ऐसे में सवाल यह हैं कि कार्डधारकों को राशन कैसे मिलेगा।

रविवार, 21 जून 2015

फिर भी क्यों होती है भूख से मौतें!



अभी प्रदेश में ऐसे तमाम गांव हैं जहां गरीबों का राशन कार्ड नहीं बना हैं। इन गांवों में रहने वाले लोग इतने गरीब हैं कि दिनभर मजदूरी करके किसी तरह से अपना व अपने परिवार का पेट भर रहें है। राशन कार्ड बनाने के लिए वह पूर्ति विभाग का चक्कर लगाते रहते हैं लेकिन उनका राशन कार्ड नहीं बनता है। किसी दिन उनकी कमाई नहीं हुयी तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता हैं। दो-चार दिन के बाद वह भूख से दम तोड़ देते ह। मीडिया रिपोर्ट भूख से होने वाली मौतों की पुष्टि करती हैं लेकिन इसे प्रशासन मानने से इंकार कर देता हैं। गरीबों को राशन पहुंचाने की सरकार की तमाम नीतियों को अधिकारी, कर्मचारी नाकाम कर दे रहे हैं। हद तब हो जाती हैं जब उनके पास कोई गरीब आकर राशन कार्ड के लिए गिड़गिड़ाता हैं लेकिन वह कुछ फजूल सी बातें कह कर उन्हें भगा देते हैं। जिनकी पहुंच ऊपर तक होती हैं उनका राशन कार्ड आसानी से बन जाता हैं। सरकार अधिकारियों, कर्मचारियों की इस तरह की मनमानी पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही हैं। ऐसे में गरीबो की भूख से मौत होना लाजमी हैं। आज भी प्रदेश के कुछ गांव की तस्वीर बद से बदत्तर हैं लेकिन यहां कोई झांकने वाला नहीं है। सरकार को इस ओर ठोस कदम उठाना होगा। शासन, प्रशासन सभी को मिल कर भूख से हो रही मौतों के खिलाफ एक कार्य योजना बनानी होगी और उसका अनुपालन सख्ती से कराना होगा तभी भूख से होने वाली मौतों पर अंकुश लग सकेगा।

कागजों में हो रहा समग्र विकास



डा. अम्बेडकर ग्रामीण समग्र विकास योजना का मुख्य उददेश्य प्रदेश की ग्राम सभाओं का समग्र विकास करना हैं जिससे कि ग्राम सभाओं के सभी वर्गो के लोग विकास की मुख्य धारा से जुङ सकें तथा विकास का लाभ सभी को मिल सकें लेकिन अफसरों की कार्य प्रणाली से ऐसा नही लग रहा हैं कि यह योजना सफल हो पायेगी।

गुरुवार, 18 जून 2015

नहीं हो रहा योजनाओं का क्रियान्वयन



केन्द्र व प्रदेश सरकार गरीबों के हित में तमाम योजनाएं चला रही हैं लेकिन उन योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो रहा हैं। सरकार ने इन्दिरा आवास योजना, स्वच्छ पेयजल, रोजगार गारन्टी योजना, विकलांग पेंशन, पोलिया उन्मूलन सहित तमाम योजनाएं, जो सर्वसमाज के उत्थान और उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोङने में मील का पत्थर साबित होगा। अफसरों को चाहिए कि वह योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से करें।

मंगलवार, 16 जून 2015

योजना + लुट = अफसर



उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में केन्द्र व प्रदेश सरकार की जनहित की तमाम योजनाएं कागजों में चल रही हैं। जमीनी सच्चाई चौकाने वाली ही नहीं, डरावनी वाली भी हैं। वृध्दावस्था पेंशन, पारिवारिक लाभ योजना, विकलांग पेंशन, छात्रवृत्ति योजना, मातृ एवं शिशु कल्याण स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना तथा स्वास्थ्य योजना, गरीबों को आवासीय सुविधाएं, रोजगार सृजन आदि योजनाएं गरीब, पिछड़ो के जीवन में एक नया बदलाव ला सकती हैं। सरकार ने सभी वर्गों के हित को ध्यान में रखकर इन योजनाओं को बनाया लेकिन अफसरों की कार्यप्रणाली ने इन योजनाओं का लाभ पात्रों तक नहीं पहुंचने दिया। लूट, खसोट की व्यवस्था को अब ऊपरी मन से ही सही लेकिन अफसर अपनाने लगे हैं।

तो यूं होगा जन शिकायतों का निस्तारण


जन शिकायतों के निस्तारण के लिए शासन ने सख्त निर्देश दिया हैं वह यह हैं कि हर दशा में जन शिकायतों का निस्तारण किया जाय लेकिन इस निर्देश का पालन नहीं हो रहा हैं। सोनभद्र जिले में पीड़ित विभागों का चक्कर लगा लगा कर थक जा रहे हैं लेकिन उनकी समस्या का निस्तारण तो दूर उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं हैं। अधिकारियों के टेबुल पर शिकायतों का अम्बार लगा रहता हैं लेकिन वह अपने बचाव के लिए अपने मातहतों को शिकायतों के निस्तारण का निर्देश देकर अपना कोरम पूरा कर लेते हैं। उन्हें इससे कोई सारोकार नहीं हैं कि शिकायतों का निस्तारण हुआ कि नहीं।

रविवार, 7 जून 2015

नजराना चढ़ाओ काम कराओ!

सरकार की योजनाओं को दीमक की तरह उनके विभाग के अधिकांश कर्मचारी चाट रहे है। किसी भी योजना को ले लिया जाए तो उसका क्रियान्वयन सही तरीके से हो तो कोई पात्र इधर-उधर न  भटके लेकिन विभागों में बिना नजराना चढ़ाए कोई काम नही होता है। एक चपरासी भी फाइल खोजने का सुविधा शुल्क लेता है। सरकार की मंशा साफ है कि पात्रों को योजना का लाभ मिले लेकिन सवाल यह है कि योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे हो। जिनके जिम्मे सारा कार्य ही चलता है उन अधिकांश कर्मचारियों को भेंट लेने की लत लग गयी है और यह किसी ने नही कुछ लोगों ने लगायी है। अब लत लगी है तो सुधरेगी कैसे। शायद हम यही कह सकते हैं कि यह लत नही सुधरने वाली है क्योंकि साहब भी अच्छी तरह जानते है कि वर्कलोड अधिक है तो ऐसे काम कौन करेगा। साहब कर भी क्या सकते है उन्हें मालूम है कि अधिकांश कर्मचारी तो भेट लेते ही है किसको -किसको निलम्बित करेंगे और ज्यादा को निलम्बित कर देंगे तो काम कौन करेगा। मजबूरी है कि जांच बैठा देगे, डांट डपट देंगे इससे ज्यादा क्या करेंगे। घूस लेने वाले कर्मचारी को दंडित करने का कानून भी है लेकिन इस पचड़े में शरीफ क्यों पड़े। धीरे से कर्मचारी की जेब गर्म की और हो गया तुरन्त काम। आखिर झंझट कौन पाले। सवाल यह है कि ऐसे में योजनाओं का लाभ पात्रों को नही मिल पाता है और वह दर-दर भटकने को मजबूर हो जाते है। पात्रों का हक अपात्र ले लेते है। यह क्रम नीचे से ऊपर तक बंधा है किसको-किसको कहां रोकेंगे। जरुरत है ईमानदार अधिकारी, कर्मचारी की जो योजना का लाभ पात्रों तक पहुंचा सके लेकिन इन्हें ईमानदारी का पाठ कौन पढ़ाये। घूस लेते रंगेहाथ तमाम कर्मचारी पकड़े जाते है लेकिन लगता है घूस लेने की प्रथा ही चल पड़ी है। सरकार, जनता, अधिकारी और कर्मचारी सभी मिलकर ही इस घूस लेनी की प्रथा पर पूर्ण विराम लगा सकते है और योजना का लाभ पात्रों तक पहुंचा सकते है इसके लिए सभी को अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए क्योंकि सरकार जानती है कि कर्मचारी के इतने बड़े तबके के खिलाफ कार्रवाई करके भी काम बाधित रहेगाhttp://shakti-anand.blogspot.in/

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...