अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गये। निजाम में कई सरकारें आई गई, लेकिन आज भी पुलिस विभाग वहीं के वहीं रुका रह गया। आज भी लगभग कई वर्ष पीछे का इतिहास आधुनिक युग में अलापा जा रहा हैं। इस आधुनिक युग में अपराधी अत्याधुनिक युक्त गाड़ियां लेकर सड़क पर फर्राटे भर रहे हैं लेकिन सरकार निजाम की पुलिस को महज साधारण और सस्ती किराये की वाहन से इन्हें पछाड़ना चाहती है, आखिर कैसे निजाम की पुलिस गुडवर्क कर पायेगी।
गुरुवार, 20 अगस्त 2015
दलाली का चोखा धंधा हावी है
जिले में दलाली का चोखा धंधा चल रहा हैं। तहसील, थाना में मिडिया कवरेज के बहाने पैसा ऐठती हैं। तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना मिडिया की फिदरत हैं। जिले के अफसरों के ईद-गिर्द घूमकर दलाली कर मोटी कमायी हो रही हैं।
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
कागजों में बन रही गुणवत्तायुक्त सड़कें
सोनभद्र जिले में शासन के निर्देशों का किस तरह से क्रियान्वयन हो रहा हैं यह अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी जान रहे हैं। शासन को भेजी जाने वाली रिपोर्टों की जांच करा दी जाय तो विभाग के आंकड़ों की पोल खुल जायेगी। विभागीय सूत्र बताते हैं कि यह सभी जानते हैं कि किसका कितना कमीशन हैं और इसे दिये बिना फाइल खिसकती नहीं हैं। फिर भी शासन के डंडे से बचने के लिए ऐसी रिपोर्ट बनायी जाती हैं जिसमें न के बराबर गड़बड़ी होती हैं। इससे दो फायदा होता हैं एक तो ठेकेदारों से फायदा होता हैं और दूसरी तरफ शासन के दिशा निर्देशों का पालन हो जाता हैं। लेकिन सवाल यह उठता हैं क्या लोगों को टूटी फूटी सड़कों से गुजरना ही पड़ेगा। इसका जवाब फिलहाल विभाग का कोई भी अफसर देने को तैयार नहीं हैं।
सोमवार, 3 अगस्त 2015
देश के गरीबी बनाम सरकार का नैतिक दिवालियापन
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भारत में 2011 से 2012 के बीच में 8.49 करोड़ लोग गरीब नहीं रहे. वे उस रेखा के ऊपर आ गए हैं जिसमे लोग उलझे रहते हैं पर वह सरकारों को दिखाई नहीं देती. अब तक यह कहा जाता रहा है कि देश की बड़ी आबादी निरक्षर है, परन्तु भारत का योजना आयोग मानता है कि देश की आबादी गंवार और बेवक़ूफ़ है. इसे गुलामी की आदत है, इसलिए इस पर शासन किया जाना चाहिए. वह मानता है कि गरीबी को वास्तविक रूप में कम करने की जरूरत नहीं है, कुछ अर्थ शास्त्रियों ने आंकड़ों को बाज़ार की भट्टी में गला कर एक नया हथियार बनाया है, जिसे वे गरीबी का आंकलन (ESTIMATION OF POVERTY) कहते हैं. उन्होंने यह तय किया है कि सच में तो लोग गरीबी से बाहर नहीं निकलना चाहिए परन्तु दिखना चाहिए कि गरीबी कम हो रही है. तो वे बस एक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले खर्चे को इतना तंग करते चले जा रहे हैं कि भारतीय नागरिक का गला दबता जाए.
सोमवार, 27 जुलाई 2015
शनिवार, 11 जुलाई 2015
विचारो के मंथन
विचारो के मंथन से माखन जैसे अभिव्यक्ति जन्म लेती है, पर भेड़चाल वाली स्वीकारिता जहर के समान होती है @SHAKTIANAND1
शब्दों का जादूगर
शब्दों को क्या कहू, कमबख्त हर स्वाद उनके अन्दर है, जिसे उनकी जादूगरी आ गई वो शब्दों का जादूगर बन जाता है @SHAKTIANAND1
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