मंगलवार, 9 जून 2020

सोशल डि़स्टेंसिंग जरूरी

महज ४ महीने पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा की यह अश्य वायरस माहामारी का रूप ले सकता है। एक ऐसी माहामारी‚ जिसका कोई इलाज नहीं है‚ सिवाय आपसी दूरी के। अभी तक के आंकड़े देखे तो संक्रमण के बाद भी दुनिया भर में लाखों मरीज ठीक हो चुके हैं‚ जबकि ८० फीसद मरीज घर में आइसोलेशन में रहकर खुद ही ठीक हो जाते हैं। हर रोज मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं कर रहे हैं‚ अभी से ही कुछ शहरों में लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया है‚ जाहिर सी बात है संक्रमण तो फैलेगा ही। अगर हम सब एकजुट होकर सोशल डिस्टेंस का पालन करें तो जल्द ही कोरोना जैसी महामारी से भी मुक्ति पा सकते हैं।

अनलॉक का पालन करें

सरकार ने आम जनता की परेशानियों को समझते हुए देश के कई राज्यों को नियम तथा कानून के साथ अनलॉक किया‚ लेकिन अभी भी कुछ राज्य लॉकडाउन में हैं। लोगों को यह समझना होगा कि अनलॉक करने का यह मतलब नहीं कि कोरोना का खतरा कम हो गया है। बल्कि संक्रमितों की संख्या दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है‚ जहां कोरोना से संक्रमितों की संख्या अधिक है। सोशल डिस्टेंशिग को अनदेखा ना करें। अनलॉक में बनाए गए सभी नियमों का पालन करना चाहिए। खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें।

सबकी जिम्मेदारी बढ़

लॉकड़ाउन के बाद अब भारत ने अनलॉक होने का फैसला कर लिया है। राज्य की सीमाओं‚ दफ्तरों‚ दुकानों के बाद सरकार ने मंदिरों‚ चर्चों‚ मस्जिदों को खोला है। लोगों का उत्साह देखने लायक था‚ लेकिन अब कुछ भी पहले जैसा नहीं है। अब मंदिरों में घंटियों और मूÌतयों को छूने पर रोक है‚ तिलक लगाने पर भी परहेज है। वहीं मस्जिदों और चर्च में बिना कोरोना जांच के अंदर जाने पर निषेध है। भले धर्म अलग–अलग हो‚ लेकिन अब सबका मिशन एक ही है। कोरॉना से जंग देश के अनलॉक होने के बाद हम सबकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है।

पैर पसारती भुखमरी

कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण विश्व स्तर पर भुखमरी का खतरा बढ़ गया है। सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी की दर गत 22 वर्षों में पहली बार बढ़ी है। विश्व की 50 फीसदी आबादी लॉकडाउन में है, जिनकी आय या तो बहुत कम है या उनके पास आय के साधन खत्म हो गए हैं। दुनिया के छह करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जाने वाले हैं। भारत में भी 1.20 करोड़ लोग भुखमरी या गरीबी की स्थिति में आ सकते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक की मानें, तो दुनिया में हर रात 82.10 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। अभी दुनिया के 13़.50 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। साफ है, यदि सरकारों ने भुखमरी और गरीबी के खात्मे की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, तो यह स्थिति और भयावह हो जाएगी। इससे बचने के लिए एक समग्र नीति बननी चाहिए।

आत्मनिर्भरता की ओर

लद्दाख में चीन की सेना द्वारा किए गए सीमा-उल्लंघन पर भारतीय आक्रोशित हैं। चीन को सबक सिखाने के लिए उपाय सुझाए जा रहे हैं। उसे आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की बात हो रही है। कहा जा रहा है कि भारत की जीवन-चर्या का अंग बन चुके चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाए। सच भी है कि द्विपक्षीय रिश्तों में भारत निर्यात के मुकाबले चीन से तीन गुना अधिक सामान आयात करता है। जनसंख्या की दृष्टि से सभी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जुटाने के संदर्भ में भी भारत में आत्मनिर्भरता का अभाव जग जाहिर है। यही नहीं, चीन के सामान की तुलना में भारतीय सामान का महंगा होना भी चीनी सामान के व्यापक उपयोग का बड़ा आधार है। मगर भारत में कौशल की कमी नहीं है। यदि भारत अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करके इस कौशल का सदुपयोग करे, तो किसी अन्य देश से उसे उपभोक्ता वस्तुओं के आयात की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और जीवन के लिए उपयोगी तमाम क्षेत्रों में हमारी आत्मनिर्भरता को दुनिया का कोई देश रोक नहीं सकेगा।

एक गुजारिश

दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने इस वर्ष प्रॉपर्टी टैक्स सिर्फ ऑनलाइन जमा करने की बात की है, जबकि इसका सॉफ्टवेयर एकदम निम्न स्तरीय है। कई-कई दिनों तक मोबाइल पर ओटीपी ही नहीं आता, जिसके बिना आगे कोई काम नहीं कर सकते। बैंक के खाते से राशि ज्यादा कटती है, लेकिन निगम के खाते में कम दिखाई देती है। इससे सब परेशान हैं, विशेषकर वरिष्ठ नागरिक। नगर निगम को चाहिए कि जब तक इनका सॉफ्टवेयर ग्राहक के अनुकूल नहीं हो जाता है, तब तक चेक द्वारा ही वह भुगतान स्वीकारे। आखिर बैंक भी तो रोज लाखों चेक ले-दे रहे हैं।

हताश होते बेरोजगार

जहां एक तरफ केंद्र सरकार देश के नौजवानों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दे रही है, तो वहीं कुछ युवा नौकरी जाने के तनाव में आत्महत्या कर रहे हैं। प्रवासी मजदूरों की पीड़ा भी किसी से छिपी नहीं है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, करीब ढाई करोड़ नौजवान अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। इनके लिए रोजगार के अवसर जुटाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। फिर भी, बेरोजगार हुए नौजवानों का आत्मविश्वास टूटने न पाए। यदि देश के युवाओं पर ही इस तरह की त्रासदी आएगी, तो देश का भविष्य क्या होगा? इस विपदा की घड़ी में जरूरत है युवाओं को उनकी शक्ति और योग्यता का स्मरण करा सकने वाले जामवंतों की, जो उन्हें आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सही राह दिखा सकें। सरकार युवाओं को इसके लिए प्रेरित करे और उन्हें सही राह दिखाए।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...