बिहार के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाले एक आम इंसान ने चांद को छू लेने जैसे सपने देखे और उसे पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके भारतीय फिल्म जगत में अपनी अलग पहचान बनाना और कामयाबी की बुलंदियों की ओर बढ़ना सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत की कठिन परिश्रम का नतीजा था। अचानक उनकी खुदकुशी ने सभी को चकित कर दिया। आत्महत्या की यह खबर तथाकथित विकसित समाज की त्रासद तस्वीर को उजागर करती है। आज तमाम ऐशो-आराम होने के बाद भी मानसिक तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं विराट हैं। यही कारण है कि आत्महत्या की खबरें अब रोजाना आने लगी हैं। मगर यह याद रखना चाहिए कि सभी के जीवन में संघर्ष का एक दौर आता है। यह कभी लंबा होता है, तो कभी छोटा। लेकिन संघर्ष के बाद ही हमें सफलता मिलती है, इसलिए जीवन के इस बदलते परिवेश में खुद को ढालना चाहिए और जीवन के हर एक पल को जीना चाहिए। यह समझना चाहिए कि हार के बाद ही जीत है।
मंगलवार, 16 जून 2020
सोमवार, 15 जून 2020
रक्तदान की जरूरत
इस साल के जून के 14 जून को रविवार को पूरी दुनिया ने रक्तदान दिवस मनाया। मगर रक्तदान का दिन तो हर रोज है, क्योंकि हर पल, किसी न किसी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जरूरतमंद को रक्त मिल जाए, तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन आज की सच्चाई यह भी है कि रक्तदान करने से कई पढ़े-लिखे लोग भी डरते हैं। इससे जुड़ी कई भ्रांतियां हमारे समाज में मौजूद हैं, जिनको दूर करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही ब्लड बैंक की उपलब्धता भी हर जगह होनी चाहिए। हर गांव-हर शहर में ब्लड बैंक का जाल होना आवश्यक है। अगर ऐसा होता है, तो रक्तदान करने लोग स्वयं आगे आ सकेंगे और आपात स्थितियों में किसी को भी खून की कमी से नहीं जूझना होगा। सिर्फ रक्तदान दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा, रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास भी सरकारों को करना होगा।
स्वास्थ्य सेवाओं में हो सुधार
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं काफी हद तक चरमरा गई हैं। यहां सीएचसी व पीएचसी संसाधनविहीन हैं। यहां मरीजों के इलाज के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। गांवों में लोगों को न तो बेहतर इलाज मिल पा रहा है और ना ही दवाएं। यहां चिकित्सकों की मनमानी जारी रहती है। धड़ल्ले से मरीजों को बाहर की दवाएं लिखने के साथ ही कई तरह से शोषण किया जाता है। ऐसे में विवश लोगों को जिला अस्पताल का ही रूख करना पड़ रहा है। इस पर जिलाधिकारी को ध्यान देने की आवश्यकता है।
लापरवाह तंत्र
कोरोना से संक्रमित लोगों की सारी उम्मीदें अस्पताल और डॉक्टरों द्वारा हो रहे इलाज पर टिकी हैं। लेकिन यह अफसोस की बात है कि अस्पतालों में मरीजों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वे उन्हें नहीं मिल रही हैं। वहां मरीजों की संख्या के हिसाब से बेड कम हैं और साफ-सफाई पर भी कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या अस्पतालों की इस कुव्यवस्था को दूर करने के लिए सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी? डॉक्टर, नर्सें और पैरा मेडिकल स्टाफ, जो दिन-रात कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं, उनकी सेहत और सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है।
जरुरी है लॉकडाउन का अनुपालन
कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से आज पूरा विश्व जूझ रहा है। ऐसे में हमें अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन करते हुए स्वयं सुरक्षित रहना चाहिए। लॉकडाउन में भले ही ढील होने से लोगों का आवागमन भी शुरू हो गया है। लेकिन इस समय भी खतरा ज्यों का त्यों बरकरार है। ऐसे में बहुत जरूरी होने पर ही हमें अपने घरों से बाहर निकलना चाहिए। बार-बार साबुन से हाथ धुलना व सैनिटाइजर का प्रयोग करना चाहिए। हर समय मास्क लगाकर ही कहीं जाएं। इसके अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। हमें अपने कीमती समय का सदुपयोग अपने बच्चों के साथ करना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम बच्चों की सुरक्षा के लिए उन्हें कत्तई घरों से बाहर न निकलने दें। ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा का भरपूर लाभ बच्चों को प्रदान करें। याद रखें कि हमारी जरा सी असावधानी और नियमों की अनदेखी हमारे और हमारे परिवार को खतरे में डाल सकती है। इसलिए लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन हमें हर हाल में करना चाहिए।
बॉलीवुड पर ग्रहण
इस साल लगता है, बॉलीवुड को ग्रहण लग गया है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत दुनिया को अलविदा कह गए। अभी कुछ दिनों पहले ही इरफान खान और ऋषि कपूर ने भी हमसे विदाई ली थी। साफ है, कोरोना काल में न जाने कितनी विपदाएं आई हैं और न जाने कितना कुछ देखना बाकी है। बहरहाल, सुशांत सिंह की मौत का रहस्य शायद ही सामने आ पाए, लेकिन इससे पता चलता है कि बॉलीवुड में हंसते-मुस्कराते चेहरे के पीछे भी कई गहरे राज छिपे होते हैं। जिंदगी में सब कुछ मिलने के बाद भी कोई कलाकार जीवन से नाखुश हो सकता है। इतना सुलझा, शांत और सादगी भरा जीवन जीने वाला इंसान इतना अकेला कैसे हो गया, और दुनिया को इसका पता भी नहीं चल सका, ताकि उसका हाथ थामकर उसे तनाव से बाहर निकाल लिया जाता? ग्लैमर की दुनिया का शायद अलग ही दस्तूर है, जो आम आदमी कतई नहीं समझ सकता।
शिक्षण कार्य जरूरी
कोरोना संक्रमण काल के दौरान जहां एक तरफ पूरी दुनिया की रफ्तार थम गई है, वहीं शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से बेपटरी हो गई है। इसको लेकर सरकार व प्रशासन को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे एक बार फिर बंद पढ़े स्कूलों में शिक्षण कार्य शुरू हो सके। वजह कि गत सत्र में छात्रों को बिना परीक्षा दिए ही अगली कक्षा में पहुंचा दिया गया है। ऐसे में भले ही बच्चों की सुरक्षा हुई है लेकिन उनकी शिक्षण क्षमता प्रभावित हुई है। ऐसे में इस पर विशेष ध्यान देकर व्यवस्था में बदलाव करनी चाहिए।
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