बुधवार, 17 जून 2020

चीन की चाल

सुपर पावर बनने की चीन की चाहत ने आज दुनिया के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पहले उसने कोरोना रूपी संकट दुनिया के सामने खड़ा किया और अब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारतीय सीमा में दखल दे रहा है। इस स्थिति में भारत की विदेश नीति कमजोर पड़ती दिख रही है। स्थिति यह है कि चीन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए नेपाल को भी हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है, जबकि अब तक काठमांडू हमारा सबसे विश्वसनीय मित्र रहा है। प्रधानमंत्री को बाकी सभी देशों के साथ मिलकर चीन से आ रही चुनौती से निपटना चाहिए। उन्हें चीन के खिलाफ डटकर खड़ा होना चाहिए।

कृषि और स्वरोजगार की शिक्षा दें

देश को विभिन्न समस्याओं से मुक्त करने में पढ़े-लिखे नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब वे किताबी पढ़ाई-लिखाई के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक भी पढ़ें। स्कूलों से आत्मनिर्भरता की राह तभी निकल सकती है, जब विद्याÍथयों को देशसेवा, जनसेवा का भी सबक पढ़ाया जाए। यही नहीं हमारे देश की आत्मनिर्भरता की राह में जनसंख्या भी एक बहुत बड़ी बाधा है। स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थाओं से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा पढ़ाई-लिखाई कर रोजगार तलाशने की ओर अग्रसर होते हैं। इनमें बहुत से दफ्तरी रोजगार पाने की लालसा रखते हैं। अगर इन्हें शिक्षा संस्थानों में कृषि और अन्य स्वरोजगार के बारे में भी पढ़ाया-समझाया जाए तो यह इनके बेहतर भविष्य के लिए उचित होगा। इससे देश में बेरोजगारी की समस्या से भी निपटने में काफी मदद मिलेगी। स्वरोजगार से देश में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।

जवाब देने का वक्त

चीन से जिस तरह का अंदेशा था, आखिर उसने वही विश्वासघात किया। भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश शोकाकुल है। भारत इसका बदला जरूर लेगा, लेकिन पीठ पीछे वार करके नहीं। इस हमले में चीन की कायरता ही नजर आई। इसलिए अब हमें अपनी चीन-नीति बदल लेनी चाहिए। हमें अब मान लेना चाहिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई' कभी नहीं हो सकते। अब चीन से सभी तरह के राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय और सैन्य समीकरण बदल जाने चाहिए। चीन को अलग-थलग करने की लड़ाई अब प्रमुखता से लड़ने की जरूरत है। भारत के लिए यह माकूल समय है, जब लगभग आधी दुनिया चीन के खिलाफ है। अब भारत सन 1962 वाला नहीं रहा। चीन को मजबूत जवाब दिया जाना चाहिए।

खान-पान पर भी बरतें सावधानियां

कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए हर व्यक्ति को खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बाहर की वस्तु का सेवन कदापि न करें और बच्चों को भी दुकानों के खुले सामान आइसक्रीम, कोल्डिंक्स इत्यादि का सेवन कतई न करने दें। घर में भी फ्रिज का बहुत ठंडा पानी व अधिक मसाला का सेवन न करें। कोरोना वायरस के साथ ही भीषण गर्मी का प्रभाव भी व्यक्ति के ऊपर पड़ता है, जिससे तरह-तरह की बीमारियां पांव पसारने लगती हैं। बाहरी सामानों के सेवन से संक्रमण का खतरा हर पल बना रहता है। इस नाते संकट के इस दौर में भरसक प्रयास करें कि बाहर के सामानों का सेवन न करना पड़े, जिससे संक्रमण को रोका जा सके। 

अनलॉक में खुद पर नियंत्रण जरूरी

जनपद में तेजी से कोरोना संक्रमित लोगों का तादात बढ़ रहा है। बाहर से असुरक्षित तरीके से यात्र कर आए श्रमिकों से संक्रमण बढ़ गया है। अभी भी बड़ी संख्या में प्रवासी लोग अपने-अपने घरों में छिपे पड़े हैं। उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए खुद ही अपने को क्वारंटीन होना चाहिए। अपने परिजनों की भलाई के लिए सभी आगंतुक प्रवासी लोगों को प्रशासनिक और चिकित्सीय सलाह को मानते हुए स्वयं शारीरिक दूरी बनाकर सुरक्षित रहना चाहिए। जरा भी खांसी, बुखार व कोई कोरोना का लक्षण दिखे तुरंत डॉक्टर को फोन कर बुलाये। अनलॉक का मतलब कोरोना का समाप्ति नहीं है अभी और ज्यादा सावधानी पूर्वक रहने की जरूरत है। घर के बच्चों और बुजुर्गों सहित बीमार लोगों का विशेष ख्याल रखना बहुत जरूरी है। 

बढ़ती परेशानियां

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने देश में नई बहस छेड़ दी है। यह बताता है कि देश में तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में नौजवान तुलनात्मक रूप से अधिक दिख रहे हैं, जो देश और समाज के लिए गंभीर संकेत है। आज अवसाद और तनाव की समस्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि शायद ही कोई इससे अछूता है। सेलिब्रिटी इससे ज्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि उन पर पूरे देश और समाज की नजर होती है। परेशानी की बड़ी बात यह है कि लोग इस समस्या पर अपनों से भी खुलकर बातें नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आज भी हमारे देश में शिक्षा की कमी है। घर, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कहीं पर भी अवसाद या हताशा पर चर्चा नहीं होती, इसे अनसुना कर दिया जाता है। इसी के कारण पीड़ित अपनी समस्या पर बात नहीं कर पाता औरवह अंदर-अंदर घुटता रहता है, और अंत में आत्महत्या की राह चुन लेता है। इस समस्या पर वक्त रहते ध्यान देना होगा।

पीठ पर वार

किसी मुल्क का क्षेत्रफल उसके साहस का परिचायक नहीं होता। अगर होता तो चीन जैसा देश पेट्रोलिंग पर भारतीय सेना द्वारा लौटाए जाने पर यूं छुपकर रॉड–पत्थर व कंटीले तारों से पीठ पर वार नहीं करता। चीन हमेशा से हमारी पीठ पर खंजर घोपता आया है। चाहे वो १९६२ का युद्ध ही क्यों न हो। डोकलाम में भारत ने उसे जिस कूटनीति से हराया था शायद वो उसे दोबारा दोहरा कर खुद को विश्व पटल पर किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं दिखना चाहता है। इसीलिए बातचीत के बीच भी वो इस तरह की झड़प कर भारत को डराना चाहता है। आज हर भारतीय को ५६ इंच के साथ अपनी सेना के साथ खड़ा होना है। 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...