शुक्रवार, 29 मई 2015

विचार - 29 मई, 2015

अजीब सी कशमकश है जिंदगी में,
जितना दौडता हु, 
मंजिल और दूर चली जाती है,
शायद.....................................
संघर्ष जिंदगी के साथ ही ख़त्म होता है

देर से ही सही पर आ गया स्वदेशी पेमेंट गेटवे

देर से ही सही पर आ गया स्वदेशी पेमेंट गेटवे

वीसा और मास्टर कार्ड की तरह काम करने वाला रुपे कार्ड पहला देसी कार्ड है. इस व्यवस्था की शुरुआत के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास खुद का पेमेंट गेटवे है. क्या इसको वह बुलंदी मिल पायेगी जो वीसा और मास्टर कार्ड को प्राप्त है. स्वदेशी पेमेंट गेटवे होने से रुपये की लागत इंटरनेशनल कार्ड की तुलना में काफी कम है. इस कार्ड से होने वाले लेन-देन पर बैंकों को इंटरनेशनल कार्ड के मुकाबले 40 फीसदी कम अदायगी करनी होती है. और उपभोक्ता को भी कम शुल्क देना पड़ेगा.

भारत में भूखों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा


भारत में भूखों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा

भूखे लोगों की तादाद भारत में विश्व में सबसे ज़्यादा है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था के अनुसार भारत में 19.40 करोड़ भूखे लोग हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़, 1990 में भारत में भूखों की संख्या 21 करोड़ 10 लाख थी. रिपोर्ट में कहा गया है, “पूरी आबादी के मुक़ाबले भूखे लोगों की तादाद में कमी लाने की दिशा में भारत ने बहुत अच्छा काम किया है. उम्मीद की जाती है कि भारत में चल रहे सामाजिक कार्यक्रम ग़रीबी और भूख के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी रखेंगे.”

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

नफरत

कभी ख्वाबो में तुम्हे तराशा, 
तो कभी ख्यालो में सज़दा किया,
तुम्हारा रूप कभी चांदनी बनकर बिखरा,
तो कभी शबनम  बनकर,
इस दिल में तुम्हारी अदाए ही क्या कम थी,
जो क़यामत ढ़ाने के लिए तुमने मुझे छुकर कहा 
कि तुम मुझसे नफरत करती हो 
-शक्ति आनंद 

बेचैन

" बिखरे हुए चंद लम्हे, 
कुछ सिमटे हुए ख्वाब, 
खुशियो  के चंद  मंज़र, 
मुहब्बत के कुछ एहसास,
शायर मन हो तो कभी शेर बनते है, 
कभी ग़ज़ल, कभी गीत तो
कभी कविता या फिर सिर्फ लफ्ज़।
 जिंदगी  मशरूफियत ने कभी इन्हे समेटने का मौका ही नहीं दिया, 
आज जिंदगी ने कुछ फुर्सत दी तो
शायरी और लफ्ज़ो  के समुन्दर को समेटने का मौका मिला"

-शक्ति आनंद

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां 

गुलशन में नहीं लगता।
शेहरा में नहीं सजता। 
ले जाँउ कहाँ तुझको। 
दिल तुही बता मुझको। 

(एक तोहफ़ा ज़ज्बात का)
-शक्ति आनंद 

रविवार, 22 सितंबर 2013

।। माँ।।

माँ शब्द ही अपने आप मे महान है, चाहे पषु हो या पछी या मनुश्य बिन माँ के अस्तित्व विहीन है। माँ गर्भ मे जिस प्रकार बच्चे को नौ महीने रख कर उसकी देख-रेख एवं सिंचित करती है और नौ महीने बाद जब पुत्र की प्राप्ति पर खुषी से झूम उठती है, एंव उसे करीब दस वर्शो तक हर बूरी चिजो से बचा जवान होता देख तन ही मन निष्चिन्त हो जाती है, कि बच्चा अब अपनी देख भाल स्वयं कर सकता है। हे मानव ठीक उसी तरह धरती माँ भी अपने इन बच्चो को हरा भरा देख कर खुषी से झूम उठती है, धरती माँ के झूमने पर हमंे सर्द हवाओ एवं बारीष की बूंदो से जिस प्रसन्नता का एहसास होता है,उससे तमाम उपजे भिन्न-भिन्न पौधे एवं जीव-जन्तु को देखने के पष्चात पकृति का बदला सा चेहरा देखने को मिलता है। धरती माँ के पुत्र ’वृक्ष’ के विनाष का कारड हम मनुश्य क्यो बने। माँ जिस प्रकार तुलसी की पूजा जल देकर करती है, ठीक उसी प्रकार दूसरे वृक्षों को भी तज देकर उनकी प्यास क्यो नही बुझाई जाती है। दूसरे वृक्षो के साथ सौतेला व्यवहार क्यो? इन्हे भी जल देकर सिंचित किया जाये एंसी प्रेरणा अब बडे एंव बच्चो को देने की जरुरत है। आज नौकरी का कार्य काल खत्म होने के पष्चात लोग बुढ़ापे की हीनता से ग्रसित स्वयं को महसूस करते है, सोचते है बुढ़पे मे कोई काम-धाम नही है। आप अपने को जवानो से कम ना समझें इस वृक्ष को माध्यम बना कर एक बार युवा वर्ग को सन्देष दें अभी भी युवाओं से ज्यादा जोष है। आप एक वृक्ष को इस धरा पर लगा कर साल भर भी सिंच कर तैयार करते है तो साल भर बाद उस वृक्ष को देखने के पष्चात आप स्वयं महसूस करेंगे कि आप की उम्र एक वर्श बढ़ गई है। इसी तरह आप अगर दस वृक्ष तैयार करते है तो आपको उन विकलांगो, अन्धे व लाचार लोग वृक्ष लगाने मे जो असमर्थ है, उनके आर्षिवाद से आपकी उम्र दस वर्शो की बढ़त स्वयं महसूस होगी। बच्चो आप भी पीछे ना रहे नये-नये दोस्त बनाने का सुनहरा अवसर आपके पास है मान लीजिए आपका पहला दोस्त ’तुलसी’ क्या लडकी है, अच्छा दूसरा दोस्त नीम, पीपल, बरगद, गुल्लर, पकडी जैसे तमाम वृक्षों से आप दोस्ती कर सकते है। इसके अलावा दूसरे दोस्तों का चयन करना है तो आप अपने पापा या चाचा की मदद ले सकते है। 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...