मजबूरी एक ऐसा ‘षब्द’ जिससे केाइ व्यक्ति अछूता नही है। इस षब्द का हर पुरूश एवं महिला बच्चे बुजुर्ग सभी के जिवन मे कैसंर की तरह गहरा सम्बन्ध है। इस षब्द ने मानव जीवन को किस कद्वर धिनौने कार्य के लिए विवस कर रखा है। सोचने मात्र से रूह कांप जाती है। रूपया कि आवष्यकता ही विषेश कर इस षब्द ने मनुश्य पर अपना मकान बना रखा है। मजा इन्सान भी इस बूरी साये को अपने से दूर रखने मे असमर्थ है।
मजबूर ने मजबूरी को इतना मजबूर कर रखा है ।
मजबूरी भी चाह कर मजबूर को अपने से दूर न रख सकी ।।
जब मजबूर ही मजबूरी मे है ऐसे मजबूर से दूरी ही सही ।
क्या एक अच्छा शासक भी इस मजबूरी से मजबूर है ?
गरीबी: तन ढकने को कपडे की मजबूरी ।
अमीरी: कपडे हैे, तन न ढकने की मजबूरी ।।
पेट के लिए तन के सौदे की मजबूरी ।
पेट के लिए खाने के बाद जूठन छोडने की मजबूरी । ।
पैसे के अभाव मे दम तोडती जिन्दगी की मजबूरी।
पैसा है इलाज के बाद भी जिन्दगी न बचने की मजबूरी । ।
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