बुधवार, 27 मई 2020

ऐसा हो लोकतंत्र

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसी सरकार की अपेक्षा होती है, जो सशक्त होकर राष्ट्रहित में कठोर निर्णय ले सके। इसके साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी होना चाहिए, जो सत्तारूढ़ दल के अच्छे कार्यों का समर्थन और उसके जन-विरोधी कामों का विरोध करके सरकार की निरंकुशता को रोक सके। लिहाजा अपने देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां नेता प्रतिपक्ष का पद इसलिए खाली है, क्योंकि कोई विपक्षी दल इतनी सीटेें नहीं जीत सका कि इस पद पर अपने नेता को बैठा सके। इसलिए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सभी विपक्षी दलों को चाहिए कि वे एकजुट होकर खुद को एक राष्ट्रीय दल के रूप में विकसित करें और देशहित में अपनी पृथक अस्मिता समाप्त करके एक नए युग की शुरुआत करें।

नई भूमिका में राहुल

भले ही राजनीति में राहुल गांधी कम अनुभवी माने जाते हों और आए दिन अन्य राजनीतिक दल उनके बयान का अनर्थ निकालकर उनका मजाक उड़ाते हों, मगर कोरोना के खतरे को लेकर उनका कहना काफी हद तक सही साबित हुआ है। जब देश में महामारी के मामले बढ़ रहे थे, तभी राहुल गांधी ने प्रतिदिन जांच का दायरा एक लाख किए जाने की बात कही थी, जबकि उस समय चालीस हजार के आसपास जांच हो रही थी। इसके अलावा, उन्होंने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए व्यवस्था किए जाने का भी सुझाव दिया, लेकिन राजनीतिक दांव-पेच के चलते उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया गया। मगर आज सरकार खुद मजदूरों को गंतव्य तक पहुंचाने का काम कर रही है। यह देखकर लगता है कि यदि उनकी बातों पर गौर किया जाता, तो परिस्थितियां आज कुछ और होतीं।

सोमवार, 25 मई 2020

लोक डाउन की मजदूरों की मैराथन

देश के करोड़ों गरीब मजदूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया अगली बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली  आर्थिक राशि इन लॉकडाउन के समय पर यात्रा करके अपने घर पहुंचे मजदूरों को ही मिलना चाहिए और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का सख्त निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि इन मजदूरों की आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

बुधवार, 20 मई 2020

लॉकडाउन के पर यात्रा

Shakti Anand Kanaujiya
Shakti Anand Kanaujiya
देश के करोड़ों ग़रीब मज़दूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया चौथी बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली आर्थिक राशि इन लॉक डाउन के पर यात्रा करके घर पहुंचे मज़दूरों को ही मिलना चाहिए। और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

मंगलवार, 12 मई 2020

अगली पीढ़ी के लिए

कोरोना वायरस जब मनुष्य का जीवन निगल रहा है, तब पर्यावरण को एक नया जीवन मिल रहा है। पर्यावरण को सुधारने में हम दशकों से लगे हुए हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी सफलता हमें अब तक नहीं मिल पाई थी। मगर अब एक महामारी ने पूरी तस्वीर बदल दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 70 लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं, वायरस भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से खराब पर्यावरण की ही देन हैं। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प है कि हम कब तक पर्यावरण को इस तरह साफ रख पाते हैं? अब यह एक एक इंसान के आगे साफ हो गया है कि जीवित रहने के लिए हमें स्वच्छ पर्यावरण की ही जरूरत है। अपनी नहीं, तो कम से कम अगली पीढ़ी के बारे में हमें सोचना ही चाहिए।

नीति क्यों

विगत 20 अप्रैल को बिहार के सिर्फ पांच जिले कोरोना-संक्रमित थे, लेकिन आज कमोबेश पूरा बिहार इससे संक्रमित हो चुका है। कुछ यही स्थिति पूरे देश की है। माना कि आज टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं, मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि जो जहां है, वह वहीं रहे। ऐसे में, आखिर क्या वजह है कि अब लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाकर संक्रमण बढ़ाने का जोखिम लिया जा रहा है। क्या भारत से कोरोना खत्म हो गया है? जब देशवासी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए इतने दिनों से कष्ट उठा रहे थे, तो इन लोगों को कुछ दिन और रोकने में दिक्कत क्या थी? मजदूरों की घर वापसी कई अन्य तरह की समस्याओं को जन्म देगी। जिन राज्यों में ये लौट रहे हैं, वहां इन्हें काम मिलना कठिन है, क्योंकि रोजगार की तलाश में ही तो वे प्रवासी बने थे। और फिर, जहां से वे लौट रहे हैं, वहां पर भी मानव संसाधन की कमी हो जाने से उद्योग-धंधों पर बुरा असर पडे़गा। साफ है, कोरोना नियंत्रण के लिए जांच के साथ-साथ राहत के उपाय को भी तेज करने की जरूरत है। सरकारों को मिलकर इस पर काम करना होगा।

इम्तिहान लेता वक्त

लॉकडाउन खुलने के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम दैहिक दूरी को बनाए रखना है। जब हर तरह की सेवाएं शुरू हो जाएंगी, रेल-बसें आदि चलने लगेंगी, मॉल-सिनेमा घर खुल जाएंगे, कंपनी-फैक्टरियों में काम होने लगेगा, तो लोगों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखना आसान काम नहीं होगा। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए। हालांकि लोगों को भी संयम, धैर्य, जागरूकता और समझदारी का परिचय देना होगा। वर्ष 2020 के अंत तक इस महामारी के उन्मूलन की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में, यह पूरा ही वर्ष हमारा इम्तिहान लेने वाला है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...