बुधवार, 27 मई 2020

एक मुश्किल डगर

कहने और सुनने में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता बहुत अच्छे शब्द लगते हैं, मगर इनकी डगर बहुत कठिन है। वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में तो यह शायद ही संभव है। यह सही है कि स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल से ही आत्मनिर्भर बना जा सकता है, क्योंकि ये एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। सर्वप्रथम जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास करना होगा। उसके बाद प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण की व्यवस्था करनी होगी। निजीकरण को भी समाप्त करना होगा। जाहिर है, इसके लिए जरूरी नीयत और नीति का अपने यहां अभाव है। जनवादी नीतियां और ठोस प्रोग्राम न होने से ही सरकार शानदार काम करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेचने पर आमादा है। ऐसे में, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता कतई नहीं आ सकतीं।

विद्यार्थियों की दुविधा

कोरोना संकट काल में जहां एक ओर देश भर में डिजिटल शिक्षा का चलन बढ़ा है, तो वहीं दूसरी ओर सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे उन विद्यार्थियों के लिए दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है, जिनके पास तकनीकी साधनों का अभाव है। भले ही सरकारी विद्यालयों में भी अब ऑनलाइन शिक्षा शुरू हो गई है, लेकिन यहां ऐसे विद्यार्थी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं, जिनके परिजन अभी दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। इसीलिए कुछ विद्यार्थी अपने गांव की ओर लौट चुके हैं। जाहिर है, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हर बच्चे के पास स्मार्टफोन और नियमित डाटा पैक का होना व्यावहारिक सोच नहीं है। इस कारण वे पढ़ाई से दूर हो रहे हैं, जिससे उनके मानसिक विकास में रुकावट पैदा हो रही है। इससे बच्चे गैर-उत्पादक कामों में भी शामिल हो रहे हैं, जो उन्हें भटकाव और दिशाहीनता की ओर ले जाएगा। इन बच्चों के लिए जल्द से जल्द जरूरी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।

ऐसा हो लोकतंत्र

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसी सरकार की अपेक्षा होती है, जो सशक्त होकर राष्ट्रहित में कठोर निर्णय ले सके। इसके साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी होना चाहिए, जो सत्तारूढ़ दल के अच्छे कार्यों का समर्थन और उसके जन-विरोधी कामों का विरोध करके सरकार की निरंकुशता को रोक सके। लिहाजा अपने देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां नेता प्रतिपक्ष का पद इसलिए खाली है, क्योंकि कोई विपक्षी दल इतनी सीटेें नहीं जीत सका कि इस पद पर अपने नेता को बैठा सके। इसलिए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सभी विपक्षी दलों को चाहिए कि वे एकजुट होकर खुद को एक राष्ट्रीय दल के रूप में विकसित करें और देशहित में अपनी पृथक अस्मिता समाप्त करके एक नए युग की शुरुआत करें।

नई भूमिका में राहुल

भले ही राजनीति में राहुल गांधी कम अनुभवी माने जाते हों और आए दिन अन्य राजनीतिक दल उनके बयान का अनर्थ निकालकर उनका मजाक उड़ाते हों, मगर कोरोना के खतरे को लेकर उनका कहना काफी हद तक सही साबित हुआ है। जब देश में महामारी के मामले बढ़ रहे थे, तभी राहुल गांधी ने प्रतिदिन जांच का दायरा एक लाख किए जाने की बात कही थी, जबकि उस समय चालीस हजार के आसपास जांच हो रही थी। इसके अलावा, उन्होंने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए व्यवस्था किए जाने का भी सुझाव दिया, लेकिन राजनीतिक दांव-पेच के चलते उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया गया। मगर आज सरकार खुद मजदूरों को गंतव्य तक पहुंचाने का काम कर रही है। यह देखकर लगता है कि यदि उनकी बातों पर गौर किया जाता, तो परिस्थितियां आज कुछ और होतीं।

सोमवार, 25 मई 2020

लोक डाउन की मजदूरों की मैराथन

देश के करोड़ों गरीब मजदूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया अगली बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली  आर्थिक राशि इन लॉकडाउन के समय पर यात्रा करके अपने घर पहुंचे मजदूरों को ही मिलना चाहिए और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का सख्त निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि इन मजदूरों की आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

बुधवार, 20 मई 2020

लॉकडाउन के पर यात्रा

Shakti Anand Kanaujiya
Shakti Anand Kanaujiya
देश के करोड़ों ग़रीब मज़दूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया चौथी बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली आर्थिक राशि इन लॉक डाउन के पर यात्रा करके घर पहुंचे मज़दूरों को ही मिलना चाहिए। और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

मंगलवार, 12 मई 2020

अगली पीढ़ी के लिए

कोरोना वायरस जब मनुष्य का जीवन निगल रहा है, तब पर्यावरण को एक नया जीवन मिल रहा है। पर्यावरण को सुधारने में हम दशकों से लगे हुए हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी सफलता हमें अब तक नहीं मिल पाई थी। मगर अब एक महामारी ने पूरी तस्वीर बदल दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 70 लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं, वायरस भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से खराब पर्यावरण की ही देन हैं। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प है कि हम कब तक पर्यावरण को इस तरह साफ रख पाते हैं? अब यह एक एक इंसान के आगे साफ हो गया है कि जीवित रहने के लिए हमें स्वच्छ पर्यावरण की ही जरूरत है। अपनी नहीं, तो कम से कम अगली पीढ़ी के बारे में हमें सोचना ही चाहिए।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...