रविवार, 31 मई 2020

जनता का साथ जरूरी

कोरोना वायरस महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है। इसलिए लॉकडाउन की प्रक्रिया बढ़ाई जा रही है। शनिवार को केंद्र सरकार ने ३० जून तक देश में लॉकडाउन लगाने का निर्णय लिया है। इस बार लॉकडाउन को तीन चरणों में बांटा गया है। जिंदगी अब पटरी पर लौटने लगी है‚ लेकिन कोरोन का खतरा टला नहीं है। अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए ये रिययतें दी जा रही है। सवाल यह है कि जब कोरोना वायरस तेजी से अपने पैर पसार रहा है तो क्या ऐसे में लॉकडाउन में छूट उचित हैॽ सरकार के सामने ये बड़ी चुनौती है कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी को आगे बढ़ाने के साथ–साथ इस महामारी को कैसे हराया जाएॽ लोगों को भी अपने स्वास्थ के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। क्योंकि सरकार अकेले इस युद्ध के सामना नहीं कर सकती 

जब तक जनता के साथ न मिले

ख्वाजा का काम बेमिसाल॥ भारतीय सिनेमा‚ साहित्य व पत्रकारिता की बेमिसाल शख्सियत ख्वाजा अहमद अब्बास की आज पुण्यतिथि है। फिल्मों और साहित्य में उनके योगदान का हर कोई कायल है। अब्बास भारतीय सिनेमा‚ साहित्य व पत्रकारिता की सम्मानित शख्सियत हैं। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व हम सबके लिए प्रेरणादायी है। अब्बास ने सातवीं तक की शिक्षा अपने शहर पानीपत में ही प्राप्त की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से १९३३ में बीए और १९३५ में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। वे १ जून १९८७ को मृत्यु से पहले भी अपनी फिल्म–एक आदमी की डबिंग में लगे हुए थे। उनका काम हम सबके लिए एक बेमिसाल और अनमोल विरासत है

फरिश्ता बने सूद

मजदूरों के लिए लॉकडाउन शहरों से अपने गांवों–कस्बों की तरफ पलायन सबसे बड़ी समस्या है। मजदूरों की समस्या का हल निकालने के लिए कुछ जानी–मानी हस्तियां सामने आई उनमें से एक सोनू सूद हैं। मजदूरों को शहर से उनके गांवों–कस्बों तक सही सलामत भेज रहे हैं और मजदूरों के लिए फरिश्ते बन गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या सोनू सूद की इस कोशिश से बाकी जानी–मानी हस्तियां लोगों की मदद के लिए आगे आएंगीॽ चाहे नेता हो या अभिनेता सबको इस संकट की घड़ी में अपने–अपने स्तर पर योगदान देना चाहिए

शुक्रवार, 29 मई 2020

हाईटेक किसान

पहले गेहंू और अब लीची व आम ई-बाजार में बिकने लगे हैं। लॉकडाउन की वजह से परंपरागत बाजार और मंडियों के बंद होने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस वर्ष किसान भयंकर आर्थिक तंगी से गुजरने वाले हैं। मगर, ई-कॉमर्स की ओर रुख करते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल' के सपने को पूरा करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। चाहे उन्नाव हो या भागलपुर, किसानों ने यह साबित किया है कि समय के साथ सही दिशा में बदलाव करने से न सिर्फ मुनाफा बढ़ता है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं। किसानों के इस कदम से उन्हें उपज का सही दाम मिलेगा। सरकार को किसानों के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें ई-कॉमर्स के नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ सकें।

तंग होते हाथ

आज पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा है, लेकिन आम जनता की परेशानी यह है कि पैसों की कमी कैसे दूर की जाए? सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गईं, पर उसका लाभ कितने लाभार्थियों को मिल रहा है, यह जगजाहिर है। ऐसे में, आर्थिक तंगी ने सबको हिलाकर रख दिया है। सरकारी नौकरी कर रहे लोगों का भी मानो यही हाल है कि किसी तरह गुजारा हो रहा है। आखिर कब तक यह तकलीफ आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनी रहेगी? आलम यह है कि कुछ लोग अपना पेट पालने के लिए सब्जी, फल या दुग्ध विक्रेता बन गए हैं। हालांकि, सड़कों पर रोज काम मांगने वाला तबका यह भी नहीं कर सकता। माना जाता है कि देश में करीब 30 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है। लॉकडाउन से उनकी हालत तो और भी खराब हो गई है। कोरोना से उनकी जान जाए या न जाए, भूख से जरूर जा रही है। आखिर आम आदमी अपनी इन तकलीफों को किससे साझा करे? उम्मीद की किरण कहीं से नजर नहीं आ रही।

चीन की चाल

चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से विश्व के लिए संकट की वजह रही है। अब जो नया विवाद चीन ने वास्तविक नियंत्रण-रेखा (एलएसी) पर अपने सैनिकों की गतिविधियां बढ़ाकर पैदा किया है, उससे तो ऐसा लगता है कि बीजिंग को अपने अजेय होने का घमंड है। अपनी कुत्सित मानसिकता के कारण चीन हमेशा से ही भारत एवं समस्त विश्व के लिए मुश्किलें पैदा करता रहता है। यदि चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को भी चीन के साथ ‘जैसे को तैसा' की नीति अपनानी चाहिए।

बेरोजगारी भत्ता मिले

कोरोना संकट का यह काल केवल जान की हानि तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक संकट के साथ-साथ कई उद्योग-धंधों और रोजगार का अस्तित्व भी फिलहाल खत्म होता दिख रहा है। नतीजतन, उनमें काम करने वाले मजदूर, कर्मचारी-अधिकारी, सभी एकाएक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में, उन्हें दूसरी राह तलाशनी पड़ रही है, जिसे खोजना मौजूदा वक्त में काफी मुश्किल भरा काम है। इस बढ़ती बेरोजगारी दर से निपटने के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है। अभी इसे हकीकत बनने में कुछ वक्त लगेगा, लिहाजा बीपीएल जैसे कार्डधारकों को कुछ न कुछ सरकारी मदद तो मिल ही जाएगी। जिनको कोई राहत नहीं मिलेगी, वे हैं गैर-कार्डधारक। आज जब कई देश अपने बेरोजगार नौजवानों को भत्ता दे रहे हैं, तब हमारे देश में भी बिना भेदभाव और आरक्षण के यह बांटा जाना चाहिए। नौकरी गंवा चुके लोगों को बचाने का इससे बेहतर शायद ही कोई दूसरा उपाय है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...