बुधवार, 10 जून 2020

सराहनीय कदम

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए देश भर के स्कूल और कॉलेजों को 15 अगस्त के बाद खोलने का उचित फैसला किया है। वाकई, जब तक कोरोना वायरस पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल नहीं हो जाता, तब तक स्कूल और कॉलेजों को खोलना उचित नहीं होगा, क्योंकि शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच दो गज की दूरी कायम रखना बहुत मुश्किल काम होगा। इतना ही नहीं, छोटे बच्चे तो हर समय मास्क पहनने में भी असुविधा महसूस करते हैं। उनके लिए लगातार हाथ धोना और सैनिटाइजर का उपयोग करना भी मुश्किल है। इसीलिए बहुत सारे अभिभावक सरकार की ओर नजरें टिकाए हुए थे, क्योंकि बच्चों की सुरक्षा सवापरि है। सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। इस फैसले से सभी की चिंताएं दूर हुई होंगी।

सेहत सबका अधिकार

दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों के इलाज का आप सरकार का फैसला उप-राज्यपाल द्वारा पलट दिया जाना निश्चय ही सराहनीय कदम है। एनसीआर के लोग बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के कारण अक्सर दिल्ली इलाज करवाने जाते हैं। यह उनका बुनियादी अधिकार भी है, जिसका हवाला उप-राज्यपाल ने दिया। असल में, प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि वह देश के किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करवाए। हां, सभी राज्यों को अपने-अपने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं आधुनिक और विकसित जरूर बनानी चाहिए, ताकि मरीजों को इलाज के लिए किसी दूसरे राज्य में न जाना पड़े।

डराते आंकड़े

एक तरफ दुनिया कोरोना के कहर से त्राहि-त्राहि कर रही है, तो दूसरी तरफ संक्रमण और मौत के भयावह होते आंकड़े लोगों की नींद उड़ा रहे हैं। भारत में भी लगातार संक्रमण बढ़ रहा है। मगर दिल्ली की खराब होती हालत को सुधारने की बजाय उसे बेपरदा किया जा रहा है, जो अब भारी पड़ता दिख रहा है। दिल्ली अब कोरोना का हॉटस्पॉट है। खुद उप-मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अगर यूं ही संक्रमण बढ़ता रहा, तो 31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या साढे़ पांच लाख हो सकती है। ऐसा हुआ, तो यह सरकार की नाकामी ही कही जाएगी। बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए दिल्ली सरकार को चौतरफा कठोर कदम उठाने चाहिए। दिल्ली की तस्वीरें देखें, तो लगता है कि उसे भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है और सरकार व्यर्थ की बयानबाजी में उलझी है।

मंगलवार, 9 जून 2020

कलाकार का सम्मान करें

आधुनिक परिवेश में सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने का यदि कोई कार्य कर रहा है तो वह कलाकार ही हैं। मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाली शिक्षा‚ जिसमें त्याग‚ बलिदान और अनुशासन के आदर्श निहित हैं‚ यदि कहीं संरक्षित है तो वह मात्र लोक कलाओं में ही है‚ लेकिन कोरोना महामारी के कारण देश भर में कला क्षेत्र के लोग रोजी–रोटी के लिए तरस गए हैं‚ इसके पीछे बड़ा कारण है कि दुनिया भर के लोगों को अपनी कलाओं से जगरूक करने वाले लोग अपने अधिकारों के लिए आगे नहीं आए। सरकारों ने जिस तरह से घर लौटे लोगों को रोजगार देने की मुहिम छेड़ी है‚ उसी तर्ज पर लोक कलाकारों के लिए विशेष नीति बनाकर उन्हें कुछ आÌथक सहायता उपलब्ध करवाकर उनके तनाव को कम करने की जरूरत है। 

सोशल डि़स्टेंसिंग जरूरी

महज ४ महीने पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा की यह अश्य वायरस माहामारी का रूप ले सकता है। एक ऐसी माहामारी‚ जिसका कोई इलाज नहीं है‚ सिवाय आपसी दूरी के। अभी तक के आंकड़े देखे तो संक्रमण के बाद भी दुनिया भर में लाखों मरीज ठीक हो चुके हैं‚ जबकि ८० फीसद मरीज घर में आइसोलेशन में रहकर खुद ही ठीक हो जाते हैं। हर रोज मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं कर रहे हैं‚ अभी से ही कुछ शहरों में लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया है‚ जाहिर सी बात है संक्रमण तो फैलेगा ही। अगर हम सब एकजुट होकर सोशल डिस्टेंस का पालन करें तो जल्द ही कोरोना जैसी महामारी से भी मुक्ति पा सकते हैं।

अनलॉक का पालन करें

सरकार ने आम जनता की परेशानियों को समझते हुए देश के कई राज्यों को नियम तथा कानून के साथ अनलॉक किया‚ लेकिन अभी भी कुछ राज्य लॉकडाउन में हैं। लोगों को यह समझना होगा कि अनलॉक करने का यह मतलब नहीं कि कोरोना का खतरा कम हो गया है। बल्कि संक्रमितों की संख्या दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है‚ जहां कोरोना से संक्रमितों की संख्या अधिक है। सोशल डिस्टेंशिग को अनदेखा ना करें। अनलॉक में बनाए गए सभी नियमों का पालन करना चाहिए। खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें।

सबकी जिम्मेदारी बढ़

लॉकड़ाउन के बाद अब भारत ने अनलॉक होने का फैसला कर लिया है। राज्य की सीमाओं‚ दफ्तरों‚ दुकानों के बाद सरकार ने मंदिरों‚ चर्चों‚ मस्जिदों को खोला है। लोगों का उत्साह देखने लायक था‚ लेकिन अब कुछ भी पहले जैसा नहीं है। अब मंदिरों में घंटियों और मूÌतयों को छूने पर रोक है‚ तिलक लगाने पर भी परहेज है। वहीं मस्जिदों और चर्च में बिना कोरोना जांच के अंदर जाने पर निषेध है। भले धर्म अलग–अलग हो‚ लेकिन अब सबका मिशन एक ही है। कोरॉना से जंग देश के अनलॉक होने के बाद हम सबकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...