वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर अचानक हमला करके चीन ने अक्षम्य अपराध किया है। इस विश्वासघाती हमले के बाद भारत और चीन के बीच रहा-सहा विश्वास भी दरक गया है। अब चीन को कड़ा सबक सिखाना ही चाहिए। इसके लिए सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक उपायों के साथ-साथ जबर्दस्त आर्थिक नाकेबंदी भी हमें करनी होगी, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को चोट लगे। वहां से होने वाले आयात में हरसंभव कटौती का प्रयास केंद्र सरकार को करना चाहिए। ऐसी खबरें आई हैं कि हमारे यहां कई प्रोजेक्ट में चीन की कंपनियों को ठेके दिए गए हैं। उन ठेकों को रद्द करते हुए नए टेंडर जारी किए जाने चाहिए और उसमें चीनी कंपनियों के शामिल होने पर रोक लगा देनी चाहिए। हमारे देश में ही करोड़ों प्रशिक्षित लोग बेरोजगार हैं। हम उनके श्रम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर हम ‘मेक इन इंडिया' को बुलंद कर सके, तो आत्मनिर्भर आसानी से बन सकेंगे। चीन की हर तरह से आर्थिक कमर तोड़ने के अलावा भारत के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
शुक्रवार, 19 जून 2020
योग शिक्षकों की अनदेखी
यह सच है कि सरकार ने योग को देश की प्राचीन पद्धति के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। आज हम सभी स्वस्थ जीवन जीने के लिए योग-क्रिया करते हैं। यह बात भी साबित हो चुकी है कि नियमित योग करने से स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जीने में काफी मदद मिलती है। परंतु यह भी एक दुखद सत्य है कि सरकार योग शिक्षकों को लगातार उपेक्षित कर रही है। नियमित योग शिक्षकों को बहाल करने की बजाय अनुबंध पर कुछ स्कूलों में शिक्षकों को बहाल करके उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। राज्य सरकार योग दिवस पर आयोजन करके अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों की बहाली निश्चय ही अच्छी बात है, लेकिन जिन विद्यार्थियों ने योग में पीजी डिप्लोमा और एमए किया है, उनके बारे में केंद्र या राज्य सरकारों का न सोचना काफी दुखद है। स्थाई रोजगार से ही हम विद्यार्थियों में विश्वास पैदा होगा, तभी स्वस्थ तन और मन का भी विकास हो सकेगा।
बुधवार, 17 जून 2020
चीनी सामानों का करें बहिष्कार
जिस प्रकार बॉर्डर पर चीन ने वार्ता की आड़ में भारत के पीठ में छुरा घोप कर हमारे 20 सैनिकों की जान ली है, उससे सिद्ध होता है कि वह सभ्यता की भाषा नहीं जानता। उसके साथ भी शठे शाठ्यम समाचरेत वाला व्यवहार करना होगा। देश भी अब 1962 वाला देश नहीं है। हम उससे लड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं। हम सभी चीनी सामानों का सौ फीसदी बहिष्कार करें। यही देशभक्ति है। भारत के सैनिक भी उन्हें भरपूर जवाब दे रहे हैं और यह होना चाहिए। यदि वह शांति की भाषा नहीं समझता है तो यह आत्म सम्मान के लिए जरूरी है।
किसानों की बुनियादी समस्या हो दूर
भारत में कृषि कार्य मानसून का जुआ माना जाता था। स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाएं बनीं, हरित क्रांति की बातें की गईं। तत्कालीन सरकारों के पास इच्छाशक्ति की कमी होने से किसानों की बुनियादी समस्याओं को ठीक से समझा नहीं गया। नतीजतन, किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में जीता है, और कर्ज के चलते असमय जीवन गंवा देता है। कुछ संपन्न और बड़ी जोत के किसानों को छोड़ दें तो आज भी हालात ज्यों के त्यों हैं। उपज का उचित दाम न मिलने, प्राकृतिक आपदा और बिचौलियों के शोषण से अन्नदाता बमुश्किल अपना जीवन गुजार पा रहे हैं। यही कारण है कि कृषि के प्रति किसानों का उत्साह कम होता जा रहा है। कृषि कार्य से विमुख होकर किसान दूसरे काम, धंधों की ओर उन्मुख हो रहे हैं।
चीन की चाल
सुपर पावर बनने की चीन की चाहत ने आज दुनिया के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पहले उसने कोरोना रूपी संकट दुनिया के सामने खड़ा किया और अब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारतीय सीमा में दखल दे रहा है। इस स्थिति में भारत की विदेश नीति कमजोर पड़ती दिख रही है। स्थिति यह है कि चीन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए नेपाल को भी हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है, जबकि अब तक काठमांडू हमारा सबसे विश्वसनीय मित्र रहा है। प्रधानमंत्री को बाकी सभी देशों के साथ मिलकर चीन से आ रही चुनौती से निपटना चाहिए। उन्हें चीन के खिलाफ डटकर खड़ा होना चाहिए।
कृषि और स्वरोजगार की शिक्षा दें
देश को विभिन्न समस्याओं से मुक्त करने में पढ़े-लिखे नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब वे किताबी पढ़ाई-लिखाई के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक भी पढ़ें। स्कूलों से आत्मनिर्भरता की राह तभी निकल सकती है, जब विद्याÍथयों को देशसेवा, जनसेवा का भी सबक पढ़ाया जाए। यही नहीं हमारे देश की आत्मनिर्भरता की राह में जनसंख्या भी एक बहुत बड़ी बाधा है। स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थाओं से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा पढ़ाई-लिखाई कर रोजगार तलाशने की ओर अग्रसर होते हैं। इनमें बहुत से दफ्तरी रोजगार पाने की लालसा रखते हैं। अगर इन्हें शिक्षा संस्थानों में कृषि और अन्य स्वरोजगार के बारे में भी पढ़ाया-समझाया जाए तो यह इनके बेहतर भविष्य के लिए उचित होगा। इससे देश में बेरोजगारी की समस्या से भी निपटने में काफी मदद मिलेगी। स्वरोजगार से देश में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
जवाब देने का वक्त
चीन से जिस तरह का अंदेशा था, आखिर उसने वही विश्वासघात किया। भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश शोकाकुल है। भारत इसका बदला जरूर लेगा, लेकिन पीठ पीछे वार करके नहीं। इस हमले में चीन की कायरता ही नजर आई। इसलिए अब हमें अपनी चीन-नीति बदल लेनी चाहिए। हमें अब मान लेना चाहिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई' कभी नहीं हो सकते। अब चीन से सभी तरह के राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय और सैन्य समीकरण बदल जाने चाहिए। चीन को अलग-थलग करने की लड़ाई अब प्रमुखता से लड़ने की जरूरत है। भारत के लिए यह माकूल समय है, जब लगभग आधी दुनिया चीन के खिलाफ है। अब भारत सन 1962 वाला नहीं रहा। चीन को मजबूत जवाब दिया जाना चाहिए।
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