देश की आजादी के कुछ ही वर्षो बाद चीन ने अपनी हरकतों से बता दिया कि उसके साथ संबंध तो रहेंगे लेकिन विश्वास नहीं। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया के विशाल दो देशों के बीच मधुर संबंध विकसित करने की योजना बनाई थी। इसके लिए नारा भी दिया। चीन ने बहुत जल्द 1962 में झटका दिया। उसके बाद से तो स्थितियां बदल ही गईं। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर देश की नीतियां बहुत ज्यादा ढुलमुल रही हैं। आज देश में चीन के सामानों का जबर्दस्त फैलाव है। इसके चलते देसी उत्पादन प्रभावित हुआ। कई कंपनियां खत्म हो गईं। उत्पादन खर्च कम करके वस्तुओं के दामों में कमी करने के फामरूले के साथ चीनी उत्पाद ने भारतीयों के बीच अपनी पैठ बनाई। अब इसे तोड़ने का समय आ गया है।
शुक्रवार, 19 जून 2020
चीन की दादागिरी
चीन सीमा पर स्थित गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन भी मित्र नहीं अपितु पीठ पीछे छूरा घोंपने वाला कायर देश ही है। अब वक्त बदल चुका है और सहन करने की सीमा भी पार हो चुकी है। सरकार को भी चीन नीति बदलनी होगी, जिसके तहत हंदूी-चीनी, भाई-भाई का नारा बुलंद किया जाता रहा है। हमारा देश काफी समय से चीनी उत्पादों का आयात कर चीनी अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करता रहा है। इसको भी बिल्कुल ही बंद करना होगा। आर्थिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर चीन के खिलाफ हमला ही हमारे वीर जवानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सस्ता उत्पाद बनाएं कंपनियां
चीन के साथ विवाद के चलते लोगों में उसके प्रति गुस्सा और चाइनीज सामान के प्रति नफरत छाई है। चारों ओर से चाइनीज सामान के बहिष्कार की आवाज उठ रही है। सस्ता और सर्वसुलभ के कारण आज हर हाथ में चाइनीज सामान है। इन सामान के बहिष्कार से पहले हमें अपने दैनिक उपयोग के सामान का सस्ता उत्पादन करना होगा। भारतीय कंपनियों को सभी प्रकार के उत्पाद काफी कम लागत पर बनाकर देश के आंतरिक इलाकों तक पहुंचाना होगा। भारतीय कंपनियां अपने महंगे प्रचार खर्च और मुनाफा में कटौती कर सभी जरूरी चीजों के दामों पर नियंत्रण रखकर लोगों तक पहुंचाए, लोग खुद ब खुद विदेशी छोड़ स्वदेशी अपनाने लगेंगे।
स्थगित हो परीक्षाएं
कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य के बीच संघर्ष जारी है। असल में, अगले महीने सीबीएसई 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करना चाह रहा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की कई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन भी अगले माह होना है। मगर कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई अभिभावकों ने इन परीक्षाओं के आयोजन को लेकर चिंता जताई है, जो वाजिब भी है। इन परीक्षाओं में लाखों परीक्षार्थी शामिल होते हैं। ऐसे में, इनका आयोजन बच्चों व किशोरों के स्वास्थ्य के मद्देनजर होना चाहिए। किसी भी प्रकार की हड़बड़ी या लापरवाही लाखों प्रतियोगियों की सेहत को खतरे में डाल सकती है। लिहाजा स्वास्थ्य और शिक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
तेल के बढ़ते दाम
कोरोना संकट और चीन-सीमा विवाद के बीच पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग पांच रुपये प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम हुई कीमतों का कोई लाभ शायद ही भारतीयों को मिल पाया। कारण स्पष्ट है कि जन-हितकारी सरकार आम आदमी को होने वाले लाभ को अपनी कमाई में जोड़कर अपना गणित सुधारने में जुटी रही। आम आदमी के बिगड़े हुए गणित से जैसे उसे कोई सरोकार न हो। पेट्रोलियम पदार्थों पर मनमानी नीतियां लागू करके सरकार जनमानस को क्या संदेश देना चाहती है, यह तो वही जाने, पर आम आदमी के लिए ऐसी नीतियां कष्टकारी सिद्ध हो रही हैं, जिसका एहसास सरकार को होना ही चाहिए।
विश्वासघाती चीन
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर अचानक हमला करके चीन ने अक्षम्य अपराध किया है। इस विश्वासघाती हमले के बाद भारत और चीन के बीच रहा-सहा विश्वास भी दरक गया है। अब चीन को कड़ा सबक सिखाना ही चाहिए। इसके लिए सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक उपायों के साथ-साथ जबर्दस्त आर्थिक नाकेबंदी भी हमें करनी होगी, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को चोट लगे। वहां से होने वाले आयात में हरसंभव कटौती का प्रयास केंद्र सरकार को करना चाहिए। ऐसी खबरें आई हैं कि हमारे यहां कई प्रोजेक्ट में चीन की कंपनियों को ठेके दिए गए हैं। उन ठेकों को रद्द करते हुए नए टेंडर जारी किए जाने चाहिए और उसमें चीनी कंपनियों के शामिल होने पर रोक लगा देनी चाहिए। हमारे देश में ही करोड़ों प्रशिक्षित लोग बेरोजगार हैं। हम उनके श्रम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर हम ‘मेक इन इंडिया' को बुलंद कर सके, तो आत्मनिर्भर आसानी से बन सकेंगे। चीन की हर तरह से आर्थिक कमर तोड़ने के अलावा भारत के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
योग शिक्षकों की अनदेखी
यह सच है कि सरकार ने योग को देश की प्राचीन पद्धति के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। आज हम सभी स्वस्थ जीवन जीने के लिए योग-क्रिया करते हैं। यह बात भी साबित हो चुकी है कि नियमित योग करने से स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जीने में काफी मदद मिलती है। परंतु यह भी एक दुखद सत्य है कि सरकार योग शिक्षकों को लगातार उपेक्षित कर रही है। नियमित योग शिक्षकों को बहाल करने की बजाय अनुबंध पर कुछ स्कूलों में शिक्षकों को बहाल करके उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। राज्य सरकार योग दिवस पर आयोजन करके अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों की बहाली निश्चय ही अच्छी बात है, लेकिन जिन विद्यार्थियों ने योग में पीजी डिप्लोमा और एमए किया है, उनके बारे में केंद्र या राज्य सरकारों का न सोचना काफी दुखद है। स्थाई रोजगार से ही हम विद्यार्थियों में विश्वास पैदा होगा, तभी स्वस्थ तन और मन का भी विकास हो सकेगा।
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