मंगलवार, 23 जून 2020

विक्रम और वीरता राष्ट्रीय चरित्र

चीनी सेना ने लद्दाख की गलवन घाटी में धोखे से भारतीय सैनिकों को जिस तरह निशाना बनाया उसके बाद चीन से रिश्ते सामान्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं। ऐसा शायद चीनियों ने इसलिए किया कि आर्थिक व व्यापारिक मामलों में भारत को दबाव में लेने के साथ ही दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस से उपजी महामारी से हटा सके। इस छल पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने का समय आ गया है। उसने भारत ही नहीं अमेरिका जैसे देशों को भी अपना शत्रु बना लिया है।

दुर्दशा पर आंसू बहा रहा क्षतिग्रस्त मार्ग

सरकारी संस्थाओं को भले ही हाईटेक संसाधनों से जोड़कर पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा हो लेकिन, उनकी कार्यशैली में जमीनी तौर पर कितना बदलाव हुआ है इसका उदाहरण जिले की सबसे महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग की तरफ से 40 किमी. लंबे राबट्र्सगंज-खलियारी संपर्क मार्ग को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दुर्दशा को लगातार फोकस करने के बाद भी प्रशासन की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सड़क की हाल यह हो गई कि बड़े-बड़े गड्ढ़े बन जाने से बारिश के बाद उसमें पानी भर जाने से लोग अक्सर दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। इसको लेकर लोग संबंधित विभाग के खिलाफ मोर्चा भी खोलने लगे हैं। बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की जा रही है।

कैसे हो सुधार

कोरोना संक्रमण काल में विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्थाओं को कैसे संचालित किया जाए, इसको लेकर सोचने की जरूरत है। जुलाई आने वाला है। ऐसे में सरकार द्वारा शिक्षा के नए सत्र की शुरुआत की जाती है लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इस पर नीति नियंताओं को सोचने की जरूरत है। जिससे बचाव भी हो और शिक्षण कार्य भी न प्रभावित हो सके। शिक्षा बाधित होने से छात्रों की पढ़ाई में रूचि भी कम हो जाती है। संक्रमण को देखते हुए शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जरूरत है।

सार्थक भूमिका निभाए विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा

कोरोना काल हो या मौजूदा भारत-चीन संकट, उसमें कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं ने बचकाने प्रश्न पूछकर बार-बार अपने अपरिपक्व रवैये का ही प्रदर्शन किया है। संभव है कि उन्हें यह संकटकाल राजनीतिक बढ़त का अवसर दिख रहा हो, लेकिन उन्हें इससे पहले राष्ट्रीय हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में कांग्रेस अन्य दलों से सबक ले सकती है जिनमें से कई सरकार के बेहद तल्ख विरोधी हैं, लेकिन इस संकट में सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी गतिशील लोकतंत्र को एक सशक्त विपक्ष की भी उतनी ही दरकार होती है जितनी मजबूत सत्ता प्रतिष्ठान की। इसके लिए आवश्यक होगा कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अर्थपूर्ण सवाल उठाए। इससे न केवल वह अपनी भूमिका का सही से निर्वहन कर सकेगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अफसोस की बात यही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा जिसकी बानगी सर्वदलीय बैठक में देखने को मिली। वहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि वामदल इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं लेना चाहते। वे भी आग में घी डालने से पीछे नहीं रहे और 1962 वाला उनका चीनी प्रेम आखिर जगजाहिर हो ही गया। उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि संकट के समय में ऐसी राजनीतिक विषमताएं शत्रु देश को संजीवनी देने का ही कार्य करती हैं।अमित दुबे, छिबरामऊ(कन्नौज)कार्बाइड का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातकप्रशासन के मनाही के बाद भी कई फलों को पकाने के लिए आज भी कार्बाइड का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। खासतौर पर इस समय आम पकाने के लिए तो इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में बिकने वाले लगभग आम कार्बाइड से ही पकाए गए हैं। कार्बाइड एक खतरनाक केमिकल और इसका उपयोग शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद भी फलों को पकाने में किए जा रहे इसे प्रयोग पर रोक नहीं लग पा रहा है। इस तरह की स्थिति में लगभग सभी लोग मीठा जहर के रूप में इसे शरीर के अंदर ले रहे हैं। कोरोना वायरस के समय यह और घातक हो जाता है।माया यादव, रामपुर महावल, बलिया।अब कस्बों और गांवों की ओर कोरोनामहानगरों से बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी के बाद छोटे-छोटे नगरों व कस्बों में भी तेजी से कोराना वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है। लाकडाउन खुलने के बाद लोग वापस पुराने र्ढे की जीवनशैली पर तेजी से लौटने लगे हैं, जिसके साइड इफेक्ट भी कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई देने लगा है। कई माह के कारोबार की बंदी और बेरोजगारी से भी सबक लेने को लोग तैयार नहीं हैं। छोटे शहरों के लोगों को भी अब बेहद सतर्क और चौकन्ना रहना होगा। पुष्पा त्रिपाठी, हिकमा कोपागंज, मऊ।पेड़ों की रुके कटाईपर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जंगलों को संरक्षित रखने की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए जाने से वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी 

शनिवार, 20 जून 2020

राजनीतिक खून का असर

अमूमन यही देखा गया है कि बॉलीवुड से पॉलीवुड यानी सियासी पगडंडियों का सफर शुरू करने वाले राजनीति में अपनी मंजिल तक कम ही पहुंच पाते हैं। अपनी सीमित राजनीतिक सोच और कुशलता के अभाव में उनकी सियासी पारी अक्सर छोटी रह जाती है। केंद्र की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने जब सिने वर्ल्ड छोड़कर संसद में प्रवेश किया तो यही माना गया कि यह तो पिता की राजनीतिक कमाई का फल है। हालांकि सही वक्त पर अपने पिता को भाजपा के साथ लाने, फिर सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी बरकरार रखने, बिहार चुनाव से पहले ‘युवा बिहारी’ के टाइटल के साथ पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर सरकार को ही घेरने और विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीनने की जो रणनीति उन्होंने अपनाई, उसने दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को भी आकर्षित किया है। कहा जा रहा है यह राजनीतिक खून का असर है। अब इंतजार है आगामी बिहार चुनाव का। शायद यहीं से यह तय होगा कि चिराग अपने पिता की राजनीतिक विरासत को कितना विस्तार दे पाएंगे।


मजबूत मन को पलीता

भले ही कोरोना का कहर अभी थमने का नाम नहीं ले रहा, पर धीरे-धीरे लोग इस महामारी को लेकर अपना कलेजा मजबूत करने में जुट गए हैं। कोरोना का डर भगाने के लिए शायद मन को दृढ़ करने की यह सोच ही है कि सत्ता और नौकरशाही के शीर्ष गलियारों ने इससे मुकाबले का नया तरीका इजाद किया है। यह तरीका है कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर भी इसकी चर्चा बाहर न जाने पाए। सत्ता गलियारों में कुछ एक मंत्रियों और उनके स्टाफ तो किसी मंत्रलय में बड़े अफसरों के कोविड पॉजिटिव होने की कानाफूसी खूब है। ये सभी अस्पताल जाने के बजाय अपने घर में डॉक्टरों की देखरेख और सलाह के तहत सेहत लाभ कर रहे हैं। वहीं केंद्रीय गृह मंत्रलय के राजधानी दिल्ली में होम क्वारंटाइन की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने के आदेश पर कशमकश ने चुपचाप कोविड को मात देने की सत्ता के रसूखदारों की इस रणनीति को पलीता लगाने का पूरा इंतजाम कर दिया। सरकार का यह आदेश जाहिर तौर पर ऐसे मजबूत मन वालों के छिपे हुए रहस्य को उजागर कर सकता है।

वचरुअल सुनवाई

कोरोना काल में एकबारगी तेजी से फैले वचरुअल प्लेटफॉर्म ने बहुत कुछ आसान तो बना दिया, लेकिन कई बार असहज स्थिति भी पैदा होने लगी। सुप्रीम कोर्ट की वचरुअल सुनवाई के दौरान देश के जाने-माने वकील मुकुल रोहतगी बहस कर रहे थे। कैमरे पर दिखे तो उनके पीछे लगी बड़ी मूर्तियों को देखकर न्यायाधीश ने पूछ लिया- क्या आप म्यूजियम में हैं। वकील ने ङोंपते हुए कहा, ‘नहीं, माईलार्ड मै अपने फार्म हाउस में हूं। आजकल यहीं शिफ्ट हो गया हूं ताकि दोनों समय स्वीमिंग कर सकूं। दो दिन बाद फिर वही वकील साहब एक अन्य केस में पेश हुए। इस बार वह जहां बैठे थे उनके पीछे पेंटिंग लगीं थीं। संयोग से वही न्यायाधीश सुनवाई कर रहे थे और उन्होंने फिर पूछा कि क्या आप आर्ट गैलरी में हैं? वकील साहब ने कहा, ‘नहीं, माई लार्ड यह मेरा घर है। मै अपने घर आ गया हूं।’

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...