बुधवार, 24 जून 2020

AGHORI KILA

राबर्टसगंज से 25 कि0 मी0 दक्षिण चोपन से 7 कि0 मी0 पश्चिम स्थित यह किला तीन नदियों रेणु विजूल तथा सोन के बीच स्थित है । इस किले में कहावत के अनुसार बहुत सम्पदा है एवं यह भी तिलस्मी किला है । मोलागत राजा से लोरिक का युध्द यंही पर हुआ था । इस किले में देवी दुर्गा की कलात्मक मूर्ति आंगन के द्वार पर है । यंहा पर एक कुंआ है जो बहुत गहरा है सोन नदी से इसका सन्बंध बताया जाता है । आगे राजा की कचहरी है फिर परकोटा है जंहा से दरवाजा है । नीचे एक बड़ा हाल है जंहा हजारो लोग निवास कर सकते हैं । यंहा भी दुर्गा जी की एक कलात्मक मूर्ति स्थापित है । यंहा पर देवी की पूजा करने लोग दूर दूर से आतें हैं । दुर्ग को चारो ओर से नाले तथा खाई से सुरक्षित किया गया है । इस दुर्ग पर खरवारों का अधिपत्य था जिसे बाद में चंदेलों ने अपने अधीन कर लिया था । दुर्ग से निकलने पर एक गेरूआ पहाड़ दिखता है लोग कहते हैं कि इस पहाड़ पर लाखों वीरों की तलवार की धार उतारी गई थी । सोननदी की धारा में एक हाथी की शक्ल का पत्थर है इसे लोग मोलागत राजा का कर्मामेल हाथी बताते है जो लोरिक द्वारा मारा गया था। इस दुर्ग तक चोपन से नाव द्वारा पहुंचा जा सकता है।

VIJAYGARH KILA

यह किला राबर्टसगंज से लगभग 28 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में सोन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से 15 कि0 मी0 पूर्व दक्षिण चतरा गांव से एक सड़क धनरौल बांध तक जाती है जंहा से मऊ गांव तक जो चतरा से करीब 10 15 कि0 मी0 होगा जीप द्वारा कभी भी जाया जा सकता है बरसात के बाद किले तक पहुंचने के लिये जंगल विभाग द्वारा कच्ची सड़क का निर्माण हो जाता है । इस दुर्ग का निर्माण पॉंचवी शताब्दी में कोल राजाओं द्वारा कराया गया था । इस किले में लगभग 12 बड़े बड़े कक्ष और चार तालाब ऐसे हैं जिनका जल कभी समाप्त नहीं होता है । इस दुर्ग के शिलालेख गुहाचित्र एवं कलात्मक मूर्तियां अत्यन्त दर्शनीय हैं । गंगा की तलहटी से करीब 400 फीट ऊंचाई पर बना यह किला काशी नरेश राजा चेत सिंह के अधिपत्य में अंग्रजो के आने के समय तक रहा है । यह किला चरो तरफ से दीवार से घिरा हुआ है जिस पर तोपची निशान लगाये बैठे रहते होंगे ।किले के मुख्यद्वार को सीढ़ियों से नीचे से जोड़ा गया था जो अब टूट चुकी है । कहते हैं कि यह तिलस्मी किला है तथा इसके नीचे भी एक किला छिपा है ऐसा देखने से प्रतीत होता है । मुख्य द्वार से आगे बढ़ने पर रानी का महल है । रानी के महल में पत्थर की कलात्मक कलाकारी की गयी है । अन्दर कमरे तथा बरामदे बने हुये हैं जो अब गिर रहे हैं । इस किले पर अप्रेल के महीनें में हर वर्ष एक उर्स का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं । यह उर्स सुप्रसिद्व सैयद हजरत मीरान शाह बाबा की मजार पर आयोजित होता है । मजार के चारो ओर अब दीवार बनाई जा रही है जिसमें चुने दो पत्थरो को देखने से पता चल्ता है कि वंहा एक शिला पर कुछ लिखा हुआ है जो हिन्दु परम्परा तथा धर्म से सम्बंधित है । इस मकबरे के पास एक बड़ा तालाब है जिसका पानी साफ है । आगे चलकर रामसागर तालाब है । इसके साथ ही राजा का महल है । खिड़की का दरवाजा बन्द कर दिया गया था जिसे फिर खोल कर उधर से चढ़ने उतरने का रास्ता बनाया गया है रास्ते में एक गणेश की दाहिने सूड़ की प्रतिमा है।

HANTHI NALA

यह राबर्टसगंज से करीब 60 कि0 मी0 पर दक्षिण पूर्व में दुध्दी के मार्ग पर अंग्रजो के द्वारा निर्मित कृत्रिम प्रपात है । यंहा पर ठहरने के लिये हट भी निर्मित है जिसका उपयोग पर्यटको के लिये किया जा सकता है । इससे करीब 35 कि0 मी0 पर म्योरपुर के पास नदी में भी एक प्रपात है जो देखने योग्य है।

MUKKHA DARI

जनपद में सबसे सुन्दर जल प्रपात मुखा दरी है जो शिवद्वार से करीब 8 कि0 मी0 पश्चिम में बेलन नदी पर स्थित है । बीच रास्ते पर कड़िया ताल है जिसे विकसित कर झील का रूप दिया जा रहा है जंहा नौका विहार एवं होटल पर्यटक दृष्टि से प्रभावी होगा । मुखा दरी की गुफाओं में बहुत से शैलाश्रित गुहा चित्र हैं जो प्राचीनतम एवं बहुमूल्य हैं । यंही देवी की प्रतिमा तथा मन्दिर है।

GARAGJAWA

राबर्ट्सगंज पिपरी मार्ग पर सलखन नामक स्थान पर मुख्य मार्ग से 1 कि0 मी0 पश्चिम गरगजवा पहाड़ी है । यंहा पर पेड़ के कटे तनो की आकृति की चट्टाने अभी हाल में पायी गयी हैं । इसके विषय में कहा जाता है कि यह पेड़ के कटे तने लगभग डेड़ अरब वर्ष पुराने हैं जो कालांतर परत दर परत चढ़ने पर पत्थ की आकृति में परिवर्तित हो गये।

OBRA GUPHA

ओबरा में पानी हेतु टंकी तथा पाईप लाइन बिछाने का कार्य चलते समय ये गुफायें मिली । वैसे तो तीन गुफायें स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु प्रमुख गुफा करीब 20 फिट गहरी 10 फिट ऊंची तथा 20 फिट चौड़ी है ।

KANDAKOT

राबर्टसगंज से दक्षिण पश्चिम कोण पर लगभग 12 कि0 मी0 की दूरी पर यह दुर्ग स्थित है । इसके प्राचीर अब ध्वंसाावशेष हैं । यंहा पर कण्डेश्वर महादेव का मन्दिर तथा कई गुफायें हैं जंहा पर शैलाश्रित गुहाचित्र देखे जा सकतें हैं । दुर्ग के चारो ओर खाई तथा हरे जंगल हैत्त्। शिवरात्रि एवं बसंत पर यंहा मेला लगता है । यंहा से 2 कि0 मी0 पर कुंडारी देवै का मन्दिर एवं गुफायें हैं ।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...