गुरुवार, 9 जुलाई 2020

सीबीआई जांच हो

कानपुर के जघन्य हत्याकांड़ में उप्र सरकार कार्रवाई में विफल साबित हुई। अलर्ट के बावजूद विकास का उज्जैन तक पहुंचना‚ सुरक्षा के दावों की पोल खोलता है और मिलीभगत की ओर इशारा करता है। तीन महीने पुराने पत्र पर ‘नो एक्शन' और कुख्यात अपराधियों की सूची में ‘विकास' का नाम न होना बताता है कि इस मामले के तार दूर तक जुड़़े हैं। मामले की सीबीआई जांच करा सभी तथ्यों और संरक्षण देने से जुड़़े संबंधों को जगज़ाहिर करना चाहिए।

मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो

खबर आ रही है कि ‘कानपुर–कांड़' का मुख्य अपराधी पुलिस की हिरासत में है। अगर यह सच है तो सरकार साफ करे कि यह आत्मसमर्पण है या गिरफ्तारी। साथ ही उसके मोबाइल के सीड़ीआर (कॉल डि़टेल रिकॉर्ड़) सार्वजनिक करें‚ जिससे असली मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो सके। 

राजनीतिक संरक्षकों को सजा मिले

कानपुर–कांड़ का दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे को काफी लम्बी जद्दोजहद के बाद अन्ततः मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद अब इसके तमाम आपराधिक साठगांठ व माफियागिरी आदि का पर्दाफाश होने का उत्तर प्रदेश और देश की जनता को काफी इन्तजार है। इतना ही नहीं‚ जनता को इस बात की भी प्रतीक्षा है कि विकास दुबे के साथ–साथ उसके जघन्य अपराधों से जुड़़े एवं संबंधित सभी सरकारी और राजनीतिक संरक्षकों एवं षड़्यंत्रकारियों को भी उत्तर प्रदेश सरकार जल्द से जल्द सख्त सजा जरूर दिलाए। 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

बहिष्कार की होड़

इन दिनों देश में चीनी माल के बहिष्कार का माहौल है। सरकार के अंदर भी अलग-अलग मंत्रलयों की ओर से चीनी उपकरणों का उपयोग न करने को लेकर लगातार फैसले हो रहे हैं। अब तक केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और बिजली मंत्री आरके सिंह की ओर से घोषणाएं हो चुकी हैं। बताया जा रहा है कि दूसरे मंत्रियों ने भी अपने-अपने विभागों में अधिकारियों को इसकी पड़ताल में लगा दिया है कि वे पता करें कि उनके अधीन आने वाले किसी भी मामले में चीनी माल आता है या नहीं। उन्हें हिदायत है कि वे यह फटाफट मालूम करें ताकि इसके उपयोग न करने की घोषणा की जा सके। कुछ लोगों ने तो यह तक तलाशना शुरू कर दिया है कि उनके घर पर कौन-कौन से चीनी सामान हैं।

विकल्प नहीं तो करें क्या

चीन के साथ जारी तनातनी और चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर व्यापारी एक-दूसरे को कोसने से नहीं चूक रहे हैं। हाल ही में कई जगहों पर चीन के सामान की होली जलाई गई, लेकिन कई व्यापारी अपने ही व्यापारी दोस्तों से यह कहते देखे गए कि उन्हीं चीनी सामान की होली जलाई जा रही है जो बेकार हो गए हैं। व्यापारी यह भी कहते सुने गए कि जिस फोन से चीनी सामान के होली जलाने की तस्वीर खींच रहे थे, वे भी चीन के हैं। लेकिन किसी व्यापारी ने फोन को तो नहीं जलाया। इनकेमतभेद इसलिए भी हैं कि चीनी सामानों पर रोक की स्थिति में दिल्ली के थोक बाजार के आधे कारोबार बंद हो जाएंगे। देश का सबसे बड़ा इलेक्टिक बाजार भगीरथ पैलेस में तो 60 फीसद माल चीन से आता है। ऐसे में यहां के कारोबारी साफ बोल रहे हैं कि चीन का सामान बेचने के अलावा उनके पास अभी विकल्प ही क्या है?

एप की याद

सरकार ने टिकटॉक समेत चीन के 59 एप को बैन तो कर दिया है, लेकिन इस कारण सरकारी कर्मचारियों का टाइम पास नहीं हो रहा है। असल में ये कर्मचारी इन दिनों काम के दौरान अपने खाली समय में टाइम पास के लिए चीनी एप का खूब इस्तेमाल कर रहे थे। अब इन कर्मचारियों ने सरकारी दायित्व समझते हुए अपने-अपने मोबाइल फोन से टिकटॉक और हेलो जैसे चीनी एप को हटा तो दिया है, लेकिन इनके दिल में इस बात की कसक जरूर रह गई है कि अब उन्हें टिकटॉक का मजा नहीं मिल पाएगा। चीनी एप की जगह कई भारतीय एप आ तो गए हैं, लेकिन पिछले कई सालों से चीनी एप के अभ्यस्त इन कर्मचारियों को शायद उनके देसी अवतारों की कोई जानकारी नहीं। उनकी जानकारी के बाद शायद उनका गम कुछ कम हो सके।

सियासी बंगला

मौजूदा दौर में सियासतदां ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालकर एक दूसरे की सफेदी को गंदा करने का मौका नहीं चूकते। मगर इस दौर में भी कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनका जिक्र आते ही ऐसी सियासत थम जाती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बंगले का आवंटन रद करने के सरकार के फैसले पर छिड़ी सियासी जंग के बीच ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। इसे गांधी परिवार के खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने अपने आधिकारिक बयान में भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बंगले पर सवाल उठाने की तैयारी कर ली। मगर बताया जाता है कि बयान के इस मजमून में आडवाणी का नाम देखकर कांग्रेस नेतृत्व ने इसे आधिकारिक बयान में शामिल करने की इजाजत नहीं दी। दरअसल वैचारिक दूरी के बावजूद बीते कुछ वर्षो में सोनिया गांधी और आडवाणी के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। अपनी आत्मकथा सोनिया को भेंट करने के लिए कुछ साल पूर्व आडवाणी दस जनपथ भी गए थे। राजनीतिक गलियारों और संसद में रूबरू होने के दौरान राहुल गांधी भी आडवाणी को पूरा सम्मान देते हैं। इसीलिए बंगले की सियासत में हाइकमान ने ही आडवाणी का नाम नहीं लेने की ताकीद कर दी। फिर स्वाभाविक रूप से जोशी का जिक्र भी नहीं किया गया। इसलिए यह कहना गैरमुनासिब नहीं कि कुछ चेहरों के आगे सियासत भी लिहाज करती है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...