शनिवार, 18 मई 2013

।। मजबूरी ।।


मजबूरी एक ऐसा ‘षब्द’ जिससे केाइ व्यक्ति अछूता नही है। इस षब्द का हर पुरूश एवं महिला बच्चे बुजुर्ग सभी के जिवन मे कैसंर की तरह गहरा सम्बन्ध है। इस षब्द ने मानव जीवन को किस कद्वर धिनौने कार्य के लिए विवस कर रखा है। सोचने मात्र से रूह कांप जाती है। रूपया कि आवष्यकता ही विषेश कर इस षब्द ने मनुश्य पर अपना मकान बना रखा है। मजा इन्सान भी इस बूरी साये को अपने से दूर रखने मे असमर्थ है। 

मजबूर ने मजबूरी को इतना मजबूर कर रखा है ।
मजबूरी भी चाह कर मजबूर को अपने से दूर न रख सकी ।।  

जब  मजबूर ही मजबूरी मे है ऐसे मजबूर से दूरी ही सही ।
क्या एक अच्छा शासक भी इस मजबूरी से मजबूर है ?

गरीबी: तन ढकने को कपडे की मजबूरी । 
अमीरी: कपडे हैे, तन न ढकने की मजबूरी ।। 

पेट के लिए तन के सौदे की मजबूरी । 
पेट के लिए खाने के बाद जूठन छोडने की मजबूरी । । 

पैसे के अभाव मे दम तोडती जिन्दगी की मजबूरी। 
पैसा है इलाज के बाद भी जिन्दगी न बचने की मजबूरी । । 

गुरुवार, 10 मई 2012

मैंने देखा उन आँखों को बुढ़ापे के दर्द से रोते हुए

वो आंखे तक़रीबन सत्तर साल पुरानी होंगी, वो अपने जीवन के शायद सत्तर बसंत देख चुकी होंगी, उन आँखों ने बहुत से दुःख और सुख को देखा होगा, उन्होंने कई बचपन को जवानी में बदलते देखा होगा, उन आँखों शायद कितने ही आंसू की बुँदे गीराई होंगी, सुख में भी दुख में भी, उन आँखों ने कभी अपनों के प्यार को देखा होगा तो कभी गेरो की नफरत को, कभी सम्मान देखा होगा तो कभी अपमान को, कभी हरियाली को देखा होगा तो कभी पतझड़ को और जिंदगी के कितने रूपों को ढलते-बदलते देखा होगा, अपने बचपन और जवानी को देखा होगा और अब वो आंखे उम्र के इस पड़ाव पर अपने बुढ़ापे को देख रही है, अपने शरीर में हो रही को कमजोरियों को देख रही है, आईने में अपने माथे की झुर्रिय देख रही है और अब ये आंखे अपने बुदापे में बस एक और जीवन की अहम् मंजर को देखना चाहती है वो है दया, तरस, मर्म और किसी और की आँखों में अपने लिए सहारे की भावना देखना चाहती है ये आंखे, लेकिन शायद ही इन बुढ़ापे की आँखों पर कोई तरस खाए, अपने लिए थोड़ी सी दया के लिए इन आँखों से पानी अब भी सुख-सुख कर चेहरे पर गिरती है लेकिन कोई इन आँखों में झांक कर समझने की कोशिश नहीं करता की आखिर इन आँखों भला इस उम्र में होटल के झूठे बर्तन क्यूँ मांजने  उए अपनी आँखों से देखना पद रहा है और कभी-कभी तो पानी के  पानी के साथ  भी  आंसू की बुँदे भी बर्तनों को धुल देती है, उनपर गिरकर शायद उन आँखों को इन्तजार है किसी की आँखों से दया के आंसुओ के गिरने की.

" मैंने देखा उन आँखों को बुढ़ापे के दर्द से रोते हुए " 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...