मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

बेचैन

" बिखरे हुए चंद लम्हे, 
कुछ सिमटे हुए ख्वाब, 
खुशियो  के चंद  मंज़र, 
मुहब्बत के कुछ एहसास,
शायर मन हो तो कभी शेर बनते है, 
कभी ग़ज़ल, कभी गीत तो
कभी कविता या फिर सिर्फ लफ्ज़।
 जिंदगी  मशरूफियत ने कभी इन्हे समेटने का मौका ही नहीं दिया, 
आज जिंदगी ने कुछ फुर्सत दी तो
शायरी और लफ्ज़ो  के समुन्दर को समेटने का मौका मिला"

-शक्ति आनंद

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां

मेरे लफ्ज़ो की दास्तां 

गुलशन में नहीं लगता।
शेहरा में नहीं सजता। 
ले जाँउ कहाँ तुझको। 
दिल तुही बता मुझको। 

(एक तोहफ़ा ज़ज्बात का)
-शक्ति आनंद 

रविवार, 22 सितंबर 2013

।। माँ।।

माँ शब्द ही अपने आप मे महान है, चाहे पषु हो या पछी या मनुश्य बिन माँ के अस्तित्व विहीन है। माँ गर्भ मे जिस प्रकार बच्चे को नौ महीने रख कर उसकी देख-रेख एवं सिंचित करती है और नौ महीने बाद जब पुत्र की प्राप्ति पर खुषी से झूम उठती है, एंव उसे करीब दस वर्शो तक हर बूरी चिजो से बचा जवान होता देख तन ही मन निष्चिन्त हो जाती है, कि बच्चा अब अपनी देख भाल स्वयं कर सकता है। हे मानव ठीक उसी तरह धरती माँ भी अपने इन बच्चो को हरा भरा देख कर खुषी से झूम उठती है, धरती माँ के झूमने पर हमंे सर्द हवाओ एवं बारीष की बूंदो से जिस प्रसन्नता का एहसास होता है,उससे तमाम उपजे भिन्न-भिन्न पौधे एवं जीव-जन्तु को देखने के पष्चात पकृति का बदला सा चेहरा देखने को मिलता है। धरती माँ के पुत्र ’वृक्ष’ के विनाष का कारड हम मनुश्य क्यो बने। माँ जिस प्रकार तुलसी की पूजा जल देकर करती है, ठीक उसी प्रकार दूसरे वृक्षों को भी तज देकर उनकी प्यास क्यो नही बुझाई जाती है। दूसरे वृक्षो के साथ सौतेला व्यवहार क्यो? इन्हे भी जल देकर सिंचित किया जाये एंसी प्रेरणा अब बडे एंव बच्चो को देने की जरुरत है। आज नौकरी का कार्य काल खत्म होने के पष्चात लोग बुढ़ापे की हीनता से ग्रसित स्वयं को महसूस करते है, सोचते है बुढ़पे मे कोई काम-धाम नही है। आप अपने को जवानो से कम ना समझें इस वृक्ष को माध्यम बना कर एक बार युवा वर्ग को सन्देष दें अभी भी युवाओं से ज्यादा जोष है। आप एक वृक्ष को इस धरा पर लगा कर साल भर भी सिंच कर तैयार करते है तो साल भर बाद उस वृक्ष को देखने के पष्चात आप स्वयं महसूस करेंगे कि आप की उम्र एक वर्श बढ़ गई है। इसी तरह आप अगर दस वृक्ष तैयार करते है तो आपको उन विकलांगो, अन्धे व लाचार लोग वृक्ष लगाने मे जो असमर्थ है, उनके आर्षिवाद से आपकी उम्र दस वर्शो की बढ़त स्वयं महसूस होगी। बच्चो आप भी पीछे ना रहे नये-नये दोस्त बनाने का सुनहरा अवसर आपके पास है मान लीजिए आपका पहला दोस्त ’तुलसी’ क्या लडकी है, अच्छा दूसरा दोस्त नीम, पीपल, बरगद, गुल्लर, पकडी जैसे तमाम वृक्षों से आप दोस्ती कर सकते है। इसके अलावा दूसरे दोस्तों का चयन करना है तो आप अपने पापा या चाचा की मदद ले सकते है। 

।। वृक्ष सत्याग्रह ।।

" वृक्ष धरा के भूशण है। जो पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने मे मदद करते है। वृक्ष के संरक्षण के लिए हमे लोगो में जागरुकता पैदा करने की जरुरत है। धरती इकलौता ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन सम्भव है। यदि हम चाहते है कि धरती का यह रुतबा बरकरार रहे तो प्रयास ही आखिरी विकल्प है। हमारे पूर्वजो के समय से ही चले आ रहे वृक्षो के षोशण को रोकना अति आवष्यक हो गया है, नही तो आने वाली पीढ़ी को हम सिर्फ विनाषकारी धरा ही धरोहर मे छोड जायेंगे। जिसकी कमी को न जमीन जायदाद पूरा कर पायेंगे ना ही सोना, चांदी या पैसा। आज कहीं भी जीवाष्म मिलता है तो लोग बडी उत्सुकता से बताते है, कि सत्रहवी सताब्दी का जीवाष्म मिला है। ठिक इसी तरह भविश्य मे बचे हुए जीव जन्तु आपस मे बात करते मिलेंगे कि, इक्किसवी सताब्दी के मानव का जीवाष्म इस धरा के किसी धरे पर मिला है। अपनी इस धरा की धरोहर को समय रहते बचाने का सिर्फ एक ही विकल्प, वृक्ष है। संकल्प लेने का समय इसी मानसून सत्र के साथ अतिआवष्यक है। कम से कम एक व्यक्ति एक वृक्ष लगाता है, तो आबादी के हिसाब से काफी हद तक हम इस सृश्टि के संरक्षण मे कामयाबी पा सकते है। "

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!

संसार को यथावत देखना है तो पृथ्वी को बचाना होगा !!!
समय बीत जाये ? इससे पहले ही पृथ्वी को बचा लें !!!
पृथ्वी का तापमान स्थिर बनाये रखने मे मदद करें !!!
विचारो मे हरा पन हो और हरियाली मे जीवन !!!
जल संचय से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है !!!
अच्छी प्रकृति ही जीवन के लिए अच्छा कल है !!!
सामानो को कार्य के बाद फेके ना पुनः उपयोग मे लाये !!!
पृथ्वी की रक्षा ही सुरक्षीत जीवन की रक्षा है !!!
संसार को आत्म मंथन कर अच्छा बनाये !!!

जळ संचय करे, किसान हित मे विद्युत बचायें !!!
हरे वृक्ष की कटान पर रोक लगायें !!!
ईधन की र्बबादी पर अकुंस लगाये !!!

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!

संसार को यथावत देखना है तो पृथ्वी को बचाना होगा !!!
समय बीत जाये ? इससे पहले ही पृथ्वी को बचा लें  !!!
पृथ्वी का तापमान स्थिर बनाये रखने मे मदद करें !!!
विचारो मे हरा पन हो और हरियाली मे जीवन !!!
जल संचय से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है !!!
अच्छी प्रकृति ही जीवन के लिए अच्छा कल है !!!
सामानो को कार्य के बाद फेके ना पुनः उपयोग मे लाये !!!
पृथ्वी की रक्षा ही सुरक्षीत जीवन की रक्षा है !!!
संसार को आत्म मंथन कर अच्छा बनाये !!!

जळ संचय करे, किसान हित मे विद्युत बचायें !!!
हरे वृक्ष की कटान पर रोक ळगायें !!!
ईधन की र्बबादी पर अकुंस लगाये !!!

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!

संसार को यथावत देखना है तो पृथ्वी को बचाना होगा !!!
समय बीत जाये ? इससे पहले ही पृथ्वी को बचा लें !!!
पृथ्वी का तापमान स्थिर बनाये रखने मे मदद करें !!!
विचारो मे हरा पन हो और हरियाली मे जीवन !!!
जल संचय से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है !!!
अच्छी प्रकृति ही जीवन के लिए अच्छा कल है !!!
सामानो को कार्य के बाद फेके ना पुनः उपयोग मे लाये !!!
पृथ्वी की रक्षा ही सुरक्षीत जीवन की रक्षा है !!!
संसार को आत्म मंथन कर अच्छा बनाये !!!

जळ संचय करे, किसान हित मे विद्युत बचायें !!!
हरे वृक्ष की कटान पर रोक ळगायें !!!
ईधन की र्बबादी पर अकुंस लगाये !!!

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!

संसार को यथावत देखना है तो पृथ्वी को बचाना होगा !!!
समय बीत जाये ? इससे पहले ही पृथ्वी को बचा लें  !!!
पृथ्वी का तापमान स्थिर बनाये रखने मे मदद करें !!!
विचारो मे हरा पन हो और हरियाली मे जीवन !!!
जल संचय से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है !!!
अच्छी प्रकृति ही जीवन के लिए अच्छा कल है !!!
सामानो को कार्य के बाद फेके ना पुनः उपयोग मे लाये !!!
पृथ्वी की रक्षा ही सुरक्षीत जीवन की रक्षा है !!!
संसार को आत्म मंथन कर अच्छा बनाये !!!

जळ संचय करे, किसान हित मे विद्युत बचायें !!!
हरे वृक्ष की कटान पर रोक ळगायें !!!
ईधन की र्बबादी पर अकुंस लगाये !!!

अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!

संसार को यथावत देखना है तो पृथ्वी को बचाना होगा !!!
समय बीत जाये ? इससे पहले ही पृथ्वी को बचा लें  !!!
पृथ्वी का तापमान स्थिर बनाये रखने मे मदद करें !!!
विचारो मे हरा पन हो और हरियाली मे जीवन !!!
जल संचय से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है !!!
अच्छी प्रकृति ही जीवन के लिए अच्छा कल है !!!
सामानो को कार्य के बाद फेके ना पुनः उपयोग मे लाये !!!
पृथ्वी की रक्षा ही सुरक्षीत जीवन की रक्षा है !!!

जळ संचय करे, किसान हित मे विद्युत बचायें !!!
अभाव मे जीना सीखे, पृथ्वी से ही सच्चा प्रेम करे !!!
- (राजेश सिंह)

शनिवार, 18 मई 2013

।। मजबूरी ।।


मजबूरी एक ऐसा ‘षब्द’ जिससे केाइ व्यक्ति अछूता नही है। इस षब्द का हर पुरूश एवं महिला बच्चे बुजुर्ग सभी के जिवन मे कैसंर की तरह गहरा सम्बन्ध है। इस षब्द ने मानव जीवन को किस कद्वर धिनौने कार्य के लिए विवस कर रखा है। सोचने मात्र से रूह कांप जाती है। रूपया कि आवष्यकता ही विषेश कर इस षब्द ने मनुश्य पर अपना मकान बना रखा है। मजा इन्सान भी इस बूरी साये को अपने से दूर रखने मे असमर्थ है। 

मजबूर ने मजबूरी को इतना मजबूर कर रखा है ।
मजबूरी भी चाह कर मजबूर को अपने से दूर न रख सकी ।।  

जब  मजबूर ही मजबूरी मे है ऐसे मजबूर से दूरी ही सही ।
क्या एक अच्छा शासक भी इस मजबूरी से मजबूर है ?

गरीबी: तन ढकने को कपडे की मजबूरी । 
अमीरी: कपडे हैे, तन न ढकने की मजबूरी ।। 

पेट के लिए तन के सौदे की मजबूरी । 
पेट के लिए खाने के बाद जूठन छोडने की मजबूरी । । 

पैसे के अभाव मे दम तोडती जिन्दगी की मजबूरी। 
पैसा है इलाज के बाद भी जिन्दगी न बचने की मजबूरी । । 

गुरुवार, 10 मई 2012

मैंने देखा उन आँखों को बुढ़ापे के दर्द से रोते हुए

वो आंखे तक़रीबन सत्तर साल पुरानी होंगी, वो अपने जीवन के शायद सत्तर बसंत देख चुकी होंगी, उन आँखों ने बहुत से दुःख और सुख को देखा होगा, उन्होंने कई बचपन को जवानी में बदलते देखा होगा, उन आँखों शायद कितने ही आंसू की बुँदे गीराई होंगी, सुख में भी दुख में भी, उन आँखों ने कभी अपनों के प्यार को देखा होगा तो कभी गेरो की नफरत को, कभी सम्मान देखा होगा तो कभी अपमान को, कभी हरियाली को देखा होगा तो कभी पतझड़ को और जिंदगी के कितने रूपों को ढलते-बदलते देखा होगा, अपने बचपन और जवानी को देखा होगा और अब वो आंखे उम्र के इस पड़ाव पर अपने बुढ़ापे को देख रही है, अपने शरीर में हो रही को कमजोरियों को देख रही है, आईने में अपने माथे की झुर्रिय देख रही है और अब ये आंखे अपने बुदापे में बस एक और जीवन की अहम् मंजर को देखना चाहती है वो है दया, तरस, मर्म और किसी और की आँखों में अपने लिए सहारे की भावना देखना चाहती है ये आंखे, लेकिन शायद ही इन बुढ़ापे की आँखों पर कोई तरस खाए, अपने लिए थोड़ी सी दया के लिए इन आँखों से पानी अब भी सुख-सुख कर चेहरे पर गिरती है लेकिन कोई इन आँखों में झांक कर समझने की कोशिश नहीं करता की आखिर इन आँखों भला इस उम्र में होटल के झूठे बर्तन क्यूँ मांजने  उए अपनी आँखों से देखना पद रहा है और कभी-कभी तो पानी के  पानी के साथ  भी  आंसू की बुँदे भी बर्तनों को धुल देती है, उनपर गिरकर शायद उन आँखों को इन्तजार है किसी की आँखों से दया के आंसुओ के गिरने की.

" मैंने देखा उन आँखों को बुढ़ापे के दर्द से रोते हुए " 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...