जिला अस्पताल में पहली बार आये नये मरीजों के परिजनों को काफी सांसत का सामना करना पड़ता है पहले तो उन्हें यह कोई बताने वाला नही होता है कि मरीज को दिखाने के लिए पर्चा कहां कटेगा, कैसे मरीज भर्ती होगा इस तरह की तमाम जानकारियां परिजन को देने वाला कोई नही होता है। उल्टे परिजन जब यह जानकारियां लेने के लिए कर्मचारियों से पूछते है तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। जिला अस्पताल में रात में आये नये मरीजों के परिजनों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रात में सभी भर्ती मरीजों के परिजन भी अस्पताल परिसर में इधर-उधर सो जाते है और कर्मचारी ड्यूटी बजाते इधर- उधर ही रहते है ड्यूटी रुम में कोई अप्रशिक्षित नर्स बैठी होती है चिकित्सक अपने रुम में विश्राम करती है। ऐसा अक्सर होता है अस्पताल परिसर में जो गार्ड तैनात रहते है उनको भी इतना नही मालूम रहता है कि वह परिजन को कुछ ज्यादा बता सके और अन्दर जाकर पूछने की सलाह देते है। ऐसे में यदि रात में कोई सिरियस मरीज लाया गया तो वह अस्पताल के चक्कर ही लगाते रह जायेंगे और किसी भी अप्रिय घटना के शिकार हो जायेंगे। ऐसा कई बार हुआ भी है लेकिन सरकारी रिकार्डों में इसका जिक्र नही है क्योंकि मरीज की जान जाने के बाद उसको अस्पताल परिसर से भगा दिया जाता है। यदि कोई मरीज ठीक-ठाक स्थिति में लाया गया और वह ड्यूटी रुम में किसी तरह पहुंच जाता है और मरीज की स्थिति बता कर मरीज को भर्ती करने के लिए कहता है तो अप्रशिक्षित नर्स या वहां बैठा कोई कर्मचारी वहां से हिलने का प्रयास नही करता है यदि शोर शराबा शुरु हो जाता है तो कर्मचारी कहता है कि हमें क्यों परेशान कर रहे हो चिकित्सक साहब इतनी रात में नही आयेगी उन्होंने जगाने से मना कर रखा है और मरीज को एक दो सुईं लगाकर सुबह तक इंतजार करने के लिए कह दिया जाता है।
मंगलवार, 25 अगस्त 2015
गुरुवार, 20 अगस्त 2015
थानों पर नहीं दर्ज होते हैं मुकदमें
जिले के अधिकांश थानों पर मुकदमें ही नहीं दर्ज होते हैं। पीड़ितों को भगा दिया जाता है। बदमाशों, अपराधियों को छोड़ दिया जाता हैं। ऐसे में क्राइम कंट्रोल कैसे होगा। पुलिस की कार्यप्रणाली किसी से छुपी नहीं है। रोजाना कोई न कोई मामला प्रकाश में आता हैं कि पीड़ित की रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। अगले दिन कोई न कोई वारदात पीड़ित के साथ हो जाता हैं। इसके बाद ही पुलिस जागती है। बताया जाता हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं जिसमें पुलिस उच्चाधिकारियों का यह फरमान भी हैं कि कम से कम मुकदमें दर्ज किये जाए जिससे अपराध कम दिखाये जा सके। बाहुबली या धनबली के खिलाफ मुकदमें नही दर्ज किये जाते हैं क्योंकि उनकी ऊंची पहुंच और जुगाड़ पुलिस के नाक में दम किये रहते है। ऐसे में दिनोदिन अपराध बढ़ ही रहे है। अपराध को कम करने के पुलिस उच्चाधिकारियों के सारे प्रयास धरे के धरे रह जा रहे हैं क्योंकि पुलिसियां कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं हो रहा हैं।
अपराधी मस्त, जनता त्रस्त, पुलिस पस्त
जिले में अपराध का ग्राफ दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। हत्या, लूट की घटनाएं आम हो गयी है। लगातार हालात बिगड़ते जा रहे है। पुलिस हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। प्रदेश सरकार क्राइम कंटोल के लिए पुलिस अधिकारियों को लगातार हिदायत दे रही है कि बदमाश, अपराधी सलाखों के पीछे होने चाहिए वरना खैर नही है। प्रदेश सरकार क्राइम कंटोल करने के लिए मीटिंग पर माटिंग ले रही है लेकिन अभी तक नतीजा सिफर है। कागजों में क्राइम काफी कम है लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत ही दास्तान बयां कर रही है। अपराधी क्राइम कर फरार हो जा रहे है और पुलिस महकमा कुछ नही कर पा रही है। खाकी का खौफ खत्म होता जा रहा है। सफेदपोश अपने आप को सुरक्षित समझने लगे है। अपराधियों का हौसला बुलंद होता जा रहा है। यदि पुलिस अभी भी नही चेती तो बाद में कहीं बहुत देर न हो जाय।
तो क्या ऐसे करेगी पुलिस गुडवर्क
अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गये। निजाम में कई सरकारें आई गई, लेकिन आज भी पुलिस विभाग वहीं के वहीं रुका रह गया। आज भी लगभग कई वर्ष पीछे का इतिहास आधुनिक युग में अलापा जा रहा हैं। इस आधुनिक युग में अपराधी अत्याधुनिक युक्त गाड़ियां लेकर सड़क पर फर्राटे भर रहे हैं लेकिन सरकार निजाम की पुलिस को महज साधारण और सस्ती किराये की वाहन से इन्हें पछाड़ना चाहती है, आखिर कैसे निजाम की पुलिस गुडवर्क कर पायेगी।
दलाली का चोखा धंधा हावी है
जिले में दलाली का चोखा धंधा चल रहा हैं। तहसील, थाना में मिडिया कवरेज के बहाने पैसा ऐठती हैं। तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना मिडिया की फिदरत हैं। जिले के अफसरों के ईद-गिर्द घूमकर दलाली कर मोटी कमायी हो रही हैं।
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
कागजों में बन रही गुणवत्तायुक्त सड़कें
सोनभद्र जिले में शासन के निर्देशों का किस तरह से क्रियान्वयन हो रहा हैं यह अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी जान रहे हैं। शासन को भेजी जाने वाली रिपोर्टों की जांच करा दी जाय तो विभाग के आंकड़ों की पोल खुल जायेगी। विभागीय सूत्र बताते हैं कि यह सभी जानते हैं कि किसका कितना कमीशन हैं और इसे दिये बिना फाइल खिसकती नहीं हैं। फिर भी शासन के डंडे से बचने के लिए ऐसी रिपोर्ट बनायी जाती हैं जिसमें न के बराबर गड़बड़ी होती हैं। इससे दो फायदा होता हैं एक तो ठेकेदारों से फायदा होता हैं और दूसरी तरफ शासन के दिशा निर्देशों का पालन हो जाता हैं। लेकिन सवाल यह उठता हैं क्या लोगों को टूटी फूटी सड़कों से गुजरना ही पड़ेगा। इसका जवाब फिलहाल विभाग का कोई भी अफसर देने को तैयार नहीं हैं।
सोमवार, 3 अगस्त 2015
देश के गरीबी बनाम सरकार का नैतिक दिवालियापन
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भारत में 2011 से 2012 के बीच में 8.49 करोड़ लोग गरीब नहीं रहे. वे उस रेखा के ऊपर आ गए हैं जिसमे लोग उलझे रहते हैं पर वह सरकारों को दिखाई नहीं देती. अब तक यह कहा जाता रहा है कि देश की बड़ी आबादी निरक्षर है, परन्तु भारत का योजना आयोग मानता है कि देश की आबादी गंवार और बेवक़ूफ़ है. इसे गुलामी की आदत है, इसलिए इस पर शासन किया जाना चाहिए. वह मानता है कि गरीबी को वास्तविक रूप में कम करने की जरूरत नहीं है, कुछ अर्थ शास्त्रियों ने आंकड़ों को बाज़ार की भट्टी में गला कर एक नया हथियार बनाया है, जिसे वे गरीबी का आंकलन (ESTIMATION OF POVERTY) कहते हैं. उन्होंने यह तय किया है कि सच में तो लोग गरीबी से बाहर नहीं निकलना चाहिए परन्तु दिखना चाहिए कि गरीबी कम हो रही है. तो वे बस एक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले खर्चे को इतना तंग करते चले जा रहे हैं कि भारतीय नागरिक का गला दबता जाए.
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