सोमवार, 11 मई 2020

बदहाल अन्नदाता

जहां भारत में रोजाना कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारी अर्थव्यवस्था के आधार किसानों की हालत भी लगातार दयनीय होती जा रही है। पहले ही महामारी और पूर्ण बंदी ने सारा काम बिगाड़ रखा है, और अब बेवक्त की आंधी और बारिश ने बची कसर पूरी कर दी। पूर्ण बंदी की वजह से किसान अपनी फसल नहीं काट पा रहे, जबकि आंधी-पानी से फसल खेत में ही खराब हो रही है। पता नहीं, हमारे अन्नदाताओं की मुश्किलों का अंत कब होगा?

महाराष्ट्र की जंग

जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी कुरसी बचाने के लिए धमकी देनी पडे़, तो ऐसे मुख्यमंत्री को मजबूत कतई नहीं कहा जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के लिए महा विकास आघाडी में शामिल पार्टियों में घमासान मचा हुआ है, उससे तो यही लगता है कि उनमें समन्वय का घोर अभाव है। वैसे शिवसेना की धमकी के बाद उद्धव ठाकरे का राज्य विधान परिषद में जाना तय है, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस ने शिवसेना को परेशान कर दिया, उससे तो यही जाहिर होता है कि उनमें अच्छा तालमेल अब तक नहीं बन सका है।

जागरूकता है जरूरी

आज अमीर-गरीब, मजदूर-किसान, युवा-वृद्ध, सब कोरोना का दंश हर रोज झेल रहे हैं। इन्हें जीवन के लक्ष्य की नहीं, बस जीवन की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने की चिंता इन दिनों लगी रहती है। मानो जीवन नीरस और उत्साहहीन हो गया है। मगर विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या लॉकडाउन का पालन करके और दैहिक दूरी बनाए रखकर ही इस महामारी को जीता जा सकता है? हमारी संस्कृति, जो युगों से ‘वसुधैव कुटुंबकम' का संदेश देती आ रही है, क्या इस महामारी के साथ उनका विलय हो जाएगा? हमारे त्योहार और उत्सव, जो जीवन में ऊर्जा का संचार करते हैं, उनके प्रति हमारा रवैया क्या इसी प्रकार उदासीन होता रहेगा? इन सभी सवालों के ऊपर विचार करने पर केवल एक समाधान नजर आता है कि हम सब एक-दूसरे का सहयोग करके सामाजिक सद्भाव और संवेदनाओं का आदर करते हुए जागरूक बनने के प्रयास करें, तभी इस महामारी को दूर भगाया जा सकता है।

रविवार, 10 मई 2020

इस साल तो अप्रेल महीने से ही नियमित अंतराल पर आंधी आ रही है और बरसात हो जा रही है। तापक्रम 38 डिग्री से ऊपर चढ़ ही नहीं रहा। उपर से कोरौनवा का भी भय व्याप्त है। अजब गजब समय है।


जान गंवाते मजदूर

#जान_गंवाते_मजदूर
शुक्रवार की सुबह रेल की पटरी पर सो गए प्रवासी #मजदूरों पर एक मालगाड़ी के गुजर जाने से कई मजदूरों की मौत हो गई। यह घटना बेहद दर्दनाक है। असल में, ये मजदूर #लॉकडाउन के कारण साधन के अभाव में रेल पटरियों से स्टेशन जा रहे थे। जैसा तय था, रेलवे ने संवेदना जताकर मामला खत्म कर दिया और सरकार ने शोक व्यक्त करके अपनी जिम्मेदारी निभा ली। मगर सवाल यह है कि जिन मजदूरों से देश के बडे़-बडे़ कारखाने चलते हैं, लॉकडाउन की इस विकट स्थिति में उनकी दशा इतनी खराब क्यों हो गई है? उनकी इस कदर #अनदेखी क्या उचित है?

मजदूरों से मजाक

खबर है कि रेलगाड़ी से आते प्रवासी मजदूरों से किराया वसूला गया। करीब डेढ़ महीने की जटिल वेदनाओं को सहने के बाद उन भूखे-प्यासे, दर-दर की ठोकर खाए मजदूरों की दशा बिल्कुल खराब हो चुकी होगी। जो थोड़े बहुत पैसे उनकी जेबों में रहे होंगे, वे भी इस बंदी में खत्म हो गए होंगे। मगर उनसे टिकट का किराया तो वसूला ही गया, पानी और भोजन का रुपया भी अलग से लिया गया। जब पूरे देश में जगह-जगह खाने के पैकेट विभिन्न सामाजिक लोगों या संगठनों द्वारा बांटे जा सकते हैं, तो क्या सरकार रेलगाड़ी में बैठे मजदूरों को खाना-पानी नहीं दे सकती थी? जिन मजदूरों के कठिन परिश्रम से देश को मजबूती मिलती है, जब उनके साथ ऐसा होगा, तो किसानों, छात्रों जैसे निम्न आय वर्गों का क्या होगा? सरकार ने दूसरे देशों से अपने नागरिक बुलाए, तो शायद ही उनसे किराया लिया, तो फिर मजदूरों के साथ ऐसा क्रूर मजाक क्यों?

बुधवार, 6 मई 2020

सोनभद्र के सभी प्राइवेट स्कूल तीन महीने की छात्रों की फीस माफ करे


विश्व महामारी कोरोना के चपेट से देश व प्रदेश संकट के दौर से गुजर रहा है. लोग लॉकडाउन का पालन कर अपना व देश की सुरक्षा करने में डटे हुए हैं सोनभद्र  जिले में एक भी कोरोना पीड़ित ना मिलने जिले में राहत की सांस ली है. ऐसे आपदा में एक दूसरे को सहयोग करके ही आगे बढ़ा जा सकता है लॉकडाउन के कारण पूरी तरह व्यापार में लगे लोग चाहे फुटकर विक्रेता, थोक विक्रेताओं, मध्यमवर्गीय उद्योग, कुटीर उधोग, सब्जी वाले, ठेले वाले, ऑटो, हेयर सैलून, अन्य छोटे कारखानों के श्रमिकों की हालत बद से बदतर हो रही है ऐसे में परिजनों के सामने प्राइवेट स्कूल का फ़ीस देना भी एक बड़ी समस्या है. लोगों के पास रोजगार ना होने के कारण आमदनी पूरी तरह शून्य हो गई है. ऐसे में सोनभद्र जिले के प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधक व संचालकों से देशहित-लोकहित की भावना से अपने स्कूल के छात्रो का तीन महीनों की फीस मानवीय दृष्टि से माफ करने की कृपा करें. क्योंकि लोगों के सामने आर्थिक संकट है और ऐसे में स्वयं का जीवन-यापन करना भी एक मुश्किल कार्य बनता जा रहा है. ऐसे में प्राइवेट स्कूल संचालक तीन महीने की फीस माफ कर अभिवावकों को एक बड़ा सहयोग होगा. ऐसे विषम परिस्थिति में स्कूल की फीस माफ कराने में जिलाधिकारी सोनभद्र द्वारा जिले में स्थापित कंपनियों जैसे एनसीएल, एनटीपीसी, हिंडालको, जयप्रकाश सीमेंट फक्ट्री, खनन एवं अन्य कंपनियों से सामाजिक दायित्व के तहत मदद लेकर स्कूल के बच्चों की फीस माफ कराने में अपना सहयोग प्रदान कर जनहित में सहयोगी होगा.

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...