मंगलवार, 12 मई 2020

गंदी राजनीति से बचें

‘एकता में शक्ति' हम बचपन से पढ़ते आए हैं, और यह सत्य भी है। वर्तमान में भारत की स्थिति जैसी हो गई है, उसमें हम भारतवासियों को इसी कथन पर आगे बढ़ना चाहिए। इस बात की खुशी है कि सभी धर्मों के लोग एकजुट होकर प्रधानमंत्री के साथ मिलकर देश को कोरोना-मुक्त बनाने में जुटे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो गंदी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्र सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी राज्य सरकारों के साथ है, लेकिन कुछ राजनेता इस महामारी को राजनीतिक वेश-भूषा पहनाने में जुटे हुए हैं। केंद्र सरकार अगर राज्य सरकारों को विशेष सहायता देने के प्रयास कर रही है, तो संबंधित राज्य को राजनीति छोड़कर उसे स्वीकार करना चाहिए। वास्तविकता में यही भारतीयता का प्रतीक है। इसे हम जब तक अपने जीवन में नहीं उतार लेंगे, तब तक कोरोना के खिलाफ हमारे देश की लड़ाई आसान न होगी।
शुक्र मनाइए कि आप भारत जैसे देश में हैं. जहां संघर्ष भी भावनाओं के दम पर जीते जाते हैं. हर कोई एक-दूसरे को विश्वास दिलाता है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. हम उस जमी पर हैं जहां उम्मीदों की जमीं और आशाओं का आकाश है. 

क्या मज़दूर अब ग़ुलाम हो जाएंगे?

कई राज्यों ने मजदूरों से संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिए हैं और मौजूदा कानूनों को कुछ महीनों से लेकर तीन-तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिए गया है. क्या मजदूरों को भी कानून की सुरक्षा से बेदख़ल किया जा रहा है. एक ऐसे वक्त में जब उनके पास रोजगार नहीं है, पैसा नहीं है, अनाज नहीं है, और वो हजारों मील दूर पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं, क्या ऐसा किया जाना बेहद जरूरी था? मीडिया जब भी मजदूरों के कानूनों का कमजोर किया जाता है तो उसे सुधार कहता है. लेबर रिफॉर्म कहता है. इस मीडिया का बस चलता तो श्रम कल्याण मंत्रालय का नाम ही उद्योग कल्याण मंत्रालय रख देता. और देश में श्रम मंत्री की जरूरत को ही खत्म कर देता.

सोमवार, 11 मई 2020

सामूहिक प्रयास हों

केंद्र और राज्य सरकारों के सामने परीक्षा की यह वह घड़ी है, जब कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने के प्रयास करने हैं। यह करीब-करीब स्पष्ट है कि कारोबारी गतिविधियों को गति देने के कुछ उपाय अब किए जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र और राज्य ज्यादा से ज्यादा फैसले मिलकर करें और उन पर अमल केंद्र सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप हो।

बेपरवाह व्यवस्था

महाराष्ट्र के औरंगाबाद की रेल पटरियों पर पीड़ादायक हादसे के बाद भी कोढ़ में खाज यह है कि बेजान और पत्थर दिल होती व्यवस्था अब भी कोई सबक नहीं सीख रही। केवल घड़ियाली आंसू बहाकर मातमपुर्सी की जा रही है। इस हादसे के बाद भी दिहाड़ी मजदूर सड़कों और रेलवे पटरियों के किनारे उठते-बैठते, भूखे-प्यासे, धक्के खाते आ-जा रहे हैं। संवेदनशून्य होती हमारी व्यवस्था की मानवीय संवेदनाएं आखिर कब जागेंगी? ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लेना अब व्यवस्था का खेल होता जा रहा है, क्योंकि उसकी नजरों में आम आदमी की कोई हैसियत ही नहीं है।

बदहाल अन्नदाता

जहां भारत में रोजाना कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारी अर्थव्यवस्था के आधार किसानों की हालत भी लगातार दयनीय होती जा रही है। पहले ही महामारी और पूर्ण बंदी ने सारा काम बिगाड़ रखा है, और अब बेवक्त की आंधी और बारिश ने बची कसर पूरी कर दी। पूर्ण बंदी की वजह से किसान अपनी फसल नहीं काट पा रहे, जबकि आंधी-पानी से फसल खेत में ही खराब हो रही है। पता नहीं, हमारे अन्नदाताओं की मुश्किलों का अंत कब होगा?

महाराष्ट्र की जंग

जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी कुरसी बचाने के लिए धमकी देनी पडे़, तो ऐसे मुख्यमंत्री को मजबूत कतई नहीं कहा जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के लिए महा विकास आघाडी में शामिल पार्टियों में घमासान मचा हुआ है, उससे तो यही लगता है कि उनमें समन्वय का घोर अभाव है। वैसे शिवसेना की धमकी के बाद उद्धव ठाकरे का राज्य विधान परिषद में जाना तय है, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस ने शिवसेना को परेशान कर दिया, उससे तो यही जाहिर होता है कि उनमें अच्छा तालमेल अब तक नहीं बन सका है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...