मंगलवार, 12 मई 2020

नीति क्यों

विगत 20 अप्रैल को बिहार के सिर्फ पांच जिले कोरोना-संक्रमित थे, लेकिन आज कमोबेश पूरा बिहार इससे संक्रमित हो चुका है। कुछ यही स्थिति पूरे देश की है। माना कि आज टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं, मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि जो जहां है, वह वहीं रहे। ऐसे में, आखिर क्या वजह है कि अब लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाकर संक्रमण बढ़ाने का जोखिम लिया जा रहा है। क्या भारत से कोरोना खत्म हो गया है? जब देशवासी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए इतने दिनों से कष्ट उठा रहे थे, तो इन लोगों को कुछ दिन और रोकने में दिक्कत क्या थी? मजदूरों की घर वापसी कई अन्य तरह की समस्याओं को जन्म देगी। जिन राज्यों में ये लौट रहे हैं, वहां इन्हें काम मिलना कठिन है, क्योंकि रोजगार की तलाश में ही तो वे प्रवासी बने थे। और फिर, जहां से वे लौट रहे हैं, वहां पर भी मानव संसाधन की कमी हो जाने से उद्योग-धंधों पर बुरा असर पडे़गा। साफ है, कोरोना नियंत्रण के लिए जांच के साथ-साथ राहत के उपाय को भी तेज करने की जरूरत है। सरकारों को मिलकर इस पर काम करना होगा।

इम्तिहान लेता वक्त

लॉकडाउन खुलने के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम दैहिक दूरी को बनाए रखना है। जब हर तरह की सेवाएं शुरू हो जाएंगी, रेल-बसें आदि चलने लगेंगी, मॉल-सिनेमा घर खुल जाएंगे, कंपनी-फैक्टरियों में काम होने लगेगा, तो लोगों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखना आसान काम नहीं होगा। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए। हालांकि लोगों को भी संयम, धैर्य, जागरूकता और समझदारी का परिचय देना होगा। वर्ष 2020 के अंत तक इस महामारी के उन्मूलन की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में, यह पूरा ही वर्ष हमारा इम्तिहान लेने वाला है।

गंदी राजनीति से बचें

‘एकता में शक्ति' हम बचपन से पढ़ते आए हैं, और यह सत्य भी है। वर्तमान में भारत की स्थिति जैसी हो गई है, उसमें हम भारतवासियों को इसी कथन पर आगे बढ़ना चाहिए। इस बात की खुशी है कि सभी धर्मों के लोग एकजुट होकर प्रधानमंत्री के साथ मिलकर देश को कोरोना-मुक्त बनाने में जुटे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो गंदी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्र सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी राज्य सरकारों के साथ है, लेकिन कुछ राजनेता इस महामारी को राजनीतिक वेश-भूषा पहनाने में जुटे हुए हैं। केंद्र सरकार अगर राज्य सरकारों को विशेष सहायता देने के प्रयास कर रही है, तो संबंधित राज्य को राजनीति छोड़कर उसे स्वीकार करना चाहिए। वास्तविकता में यही भारतीयता का प्रतीक है। इसे हम जब तक अपने जीवन में नहीं उतार लेंगे, तब तक कोरोना के खिलाफ हमारे देश की लड़ाई आसान न होगी।
शुक्र मनाइए कि आप भारत जैसे देश में हैं. जहां संघर्ष भी भावनाओं के दम पर जीते जाते हैं. हर कोई एक-दूसरे को विश्वास दिलाता है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. हम उस जमी पर हैं जहां उम्मीदों की जमीं और आशाओं का आकाश है. 

क्या मज़दूर अब ग़ुलाम हो जाएंगे?

कई राज्यों ने मजदूरों से संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिए हैं और मौजूदा कानूनों को कुछ महीनों से लेकर तीन-तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिए गया है. क्या मजदूरों को भी कानून की सुरक्षा से बेदख़ल किया जा रहा है. एक ऐसे वक्त में जब उनके पास रोजगार नहीं है, पैसा नहीं है, अनाज नहीं है, और वो हजारों मील दूर पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं, क्या ऐसा किया जाना बेहद जरूरी था? मीडिया जब भी मजदूरों के कानूनों का कमजोर किया जाता है तो उसे सुधार कहता है. लेबर रिफॉर्म कहता है. इस मीडिया का बस चलता तो श्रम कल्याण मंत्रालय का नाम ही उद्योग कल्याण मंत्रालय रख देता. और देश में श्रम मंत्री की जरूरत को ही खत्म कर देता.

सोमवार, 11 मई 2020

सामूहिक प्रयास हों

केंद्र और राज्य सरकारों के सामने परीक्षा की यह वह घड़ी है, जब कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने के प्रयास करने हैं। यह करीब-करीब स्पष्ट है कि कारोबारी गतिविधियों को गति देने के कुछ उपाय अब किए जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र और राज्य ज्यादा से ज्यादा फैसले मिलकर करें और उन पर अमल केंद्र सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप हो।

बेपरवाह व्यवस्था

महाराष्ट्र के औरंगाबाद की रेल पटरियों पर पीड़ादायक हादसे के बाद भी कोढ़ में खाज यह है कि बेजान और पत्थर दिल होती व्यवस्था अब भी कोई सबक नहीं सीख रही। केवल घड़ियाली आंसू बहाकर मातमपुर्सी की जा रही है। इस हादसे के बाद भी दिहाड़ी मजदूर सड़कों और रेलवे पटरियों के किनारे उठते-बैठते, भूखे-प्यासे, धक्के खाते आ-जा रहे हैं। संवेदनशून्य होती हमारी व्यवस्था की मानवीय संवेदनाएं आखिर कब जागेंगी? ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लेना अब व्यवस्था का खेल होता जा रहा है, क्योंकि उसकी नजरों में आम आदमी की कोई हैसियत ही नहीं है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...