शुक्रवार, 29 मई 2020

हाईटेक किसान

पहले गेहंू और अब लीची व आम ई-बाजार में बिकने लगे हैं। लॉकडाउन की वजह से परंपरागत बाजार और मंडियों के बंद होने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस वर्ष किसान भयंकर आर्थिक तंगी से गुजरने वाले हैं। मगर, ई-कॉमर्स की ओर रुख करते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल' के सपने को पूरा करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। चाहे उन्नाव हो या भागलपुर, किसानों ने यह साबित किया है कि समय के साथ सही दिशा में बदलाव करने से न सिर्फ मुनाफा बढ़ता है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं। किसानों के इस कदम से उन्हें उपज का सही दाम मिलेगा। सरकार को किसानों के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें ई-कॉमर्स के नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ सकें।

तंग होते हाथ

आज पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा है, लेकिन आम जनता की परेशानी यह है कि पैसों की कमी कैसे दूर की जाए? सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गईं, पर उसका लाभ कितने लाभार्थियों को मिल रहा है, यह जगजाहिर है। ऐसे में, आर्थिक तंगी ने सबको हिलाकर रख दिया है। सरकारी नौकरी कर रहे लोगों का भी मानो यही हाल है कि किसी तरह गुजारा हो रहा है। आखिर कब तक यह तकलीफ आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनी रहेगी? आलम यह है कि कुछ लोग अपना पेट पालने के लिए सब्जी, फल या दुग्ध विक्रेता बन गए हैं। हालांकि, सड़कों पर रोज काम मांगने वाला तबका यह भी नहीं कर सकता। माना जाता है कि देश में करीब 30 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है। लॉकडाउन से उनकी हालत तो और भी खराब हो गई है। कोरोना से उनकी जान जाए या न जाए, भूख से जरूर जा रही है। आखिर आम आदमी अपनी इन तकलीफों को किससे साझा करे? उम्मीद की किरण कहीं से नजर नहीं आ रही।

चीन की चाल

चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से विश्व के लिए संकट की वजह रही है। अब जो नया विवाद चीन ने वास्तविक नियंत्रण-रेखा (एलएसी) पर अपने सैनिकों की गतिविधियां बढ़ाकर पैदा किया है, उससे तो ऐसा लगता है कि बीजिंग को अपने अजेय होने का घमंड है। अपनी कुत्सित मानसिकता के कारण चीन हमेशा से ही भारत एवं समस्त विश्व के लिए मुश्किलें पैदा करता रहता है। यदि चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को भी चीन के साथ ‘जैसे को तैसा' की नीति अपनानी चाहिए।

बेरोजगारी भत्ता मिले

कोरोना संकट का यह काल केवल जान की हानि तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक संकट के साथ-साथ कई उद्योग-धंधों और रोजगार का अस्तित्व भी फिलहाल खत्म होता दिख रहा है। नतीजतन, उनमें काम करने वाले मजदूर, कर्मचारी-अधिकारी, सभी एकाएक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में, उन्हें दूसरी राह तलाशनी पड़ रही है, जिसे खोजना मौजूदा वक्त में काफी मुश्किल भरा काम है। इस बढ़ती बेरोजगारी दर से निपटने के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है। अभी इसे हकीकत बनने में कुछ वक्त लगेगा, लिहाजा बीपीएल जैसे कार्डधारकों को कुछ न कुछ सरकारी मदद तो मिल ही जाएगी। जिनको कोई राहत नहीं मिलेगी, वे हैं गैर-कार्डधारक। आज जब कई देश अपने बेरोजगार नौजवानों को भत्ता दे रहे हैं, तब हमारे देश में भी बिना भेदभाव और आरक्षण के यह बांटा जाना चाहिए। नौकरी गंवा चुके लोगों को बचाने का इससे बेहतर शायद ही कोई दूसरा उपाय है।

बुधवार, 27 मई 2020

स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े

वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें। 

अव्यवस्था भरी यात्रा

रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्री गण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉक डाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?

बनाना होगा दबाव

पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...