मंगलवार, 9 जून 2020

साजिश या मजाक

पिछले कुछ दिनों में बेजुबान जानवरों को बारूद खिलाने के दो मामलों सामने आए। इन्होंने सभ्य कहे जाने वाले मानव-समाज को शर्मसार किया है। एक घटना केरल की है, तो दूसरी हिमाचल प्रदेश की। इस तरह के कृत्यों से जहां हर शांतिप्रिय लोगों में रोष है, तो दूसरी तरफ किसी साजिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है। बिल्कुल एक ही तरीके से जानवरों को बारूद खिलाकर उनको चोटिल करने के पीछे कोई साजिश या प्रयोग तो नहीं? पूरा विश्व अभी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन पशुओं के प्रति ऐसे क्रूर रवैये देखने को मिल रहे हैं। ये मानव समाज के लिए नए खतरे की शुरुआत हो सकते हैं। इसकी जांच गंभीरता से करने की जरूरत है। दोषी कोई भी हो, उसे सख्त सजा मिलनी चाहिए।

दुर्भाग्यपूर्ण फैसला

दिल्ली सरकार ने फैसला किया है कि जब तक कोरोना महामारी है, तब तक दिल्ली सरकार के अस्पताल सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज करेंगे। दिल्ली सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। देश इस समय बड़े संकट में है। हमें अभी एक देश होकर सोचना चाहिए, न कि एक राज्य होकर। दिल्ली सरकार के इस फैसले से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलेगा, जो हमारे देश की अखंडता के लिए घातक हो सकता है। क्या डॉक्टर सिर्फ इसलिए रोगी का इलाज न करें, क्योंकि वह किसी और राज्य का है? यह उनके भगवान रूपी पेशे को क्या शोभा देता है? यह आदेश हमारे देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का भी हनन है। यदि सभी राज्य ऐसे ही करने लगे, तो भारत राज्यों का संघ नहीं, सिर्फ राज्य बनकर रह जाएगा। दिल्ली सरकार को अपने इस राजनीतिक फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए, क्योंकि दिल्ली सिर्फ राज्य की ही नहीं, देश की राजधानी है।

एनसीआर शामिल करें

अब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा, जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया, यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री जानें, लेकिन जिस तरह से दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसे देखकर केजरीवाल का यह फैसला कुछ हद तक सही जान पड़ता है, क्योंकि दिल्ली में आबादी के मुताबिक स्वास्थ्य-केंद्रों और डॉक्टरों की कमी हो सकती है। बेशक केंद्र सरकार के अस्पतालों को इस फैसले से बाहर रखा गया है, लेकिन मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह दिल्ली से कुछ किलोमीटर सटे क्षेत्र के लोगों को, जो दूसरे राज्य के नागरिक हैं, दिल्ली में कोरोना इलाज की इजाजत दें, ताकि कोई भी उनके इस फैसले पर राजनीति करने को कोशिश न कर सके। क्या मुख्यमंत्री ऐसा करेंगे?

अल्पसंख्यकों का ख्याल

अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत नागरिक की मौत के बाद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही, लेकिन सच यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अश्वेतों के प्रति रवैया सहानुभूतिपूर्ण नहीं रहा है। इसी कारण जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का आक्रोश समूचे अमेरिका में देखा जा रहा है। आज अमेरिका नस्लवाद और कोरोना के चलते दोहरी मार झेलने को विवश है। न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया को इस घटना से सबक सीखना चाहिए कि बहुसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना भी निहायत जरूरी है। यदि लोकतांत्रिक देश का एक भी नागरिक भय और असंतोषपूर्ण जीवन जी रहा है, तो उसका असंतोष कभी भी फट सकता है। अगर हम भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो पिछले कुछ वषार्ें से यहां भी अल्पसंख्यकों के प्रति माहौल ठीक नहीं रहा है। अमेरिका की घटना से हम भी सबक ले सकते हैं।

सोमवार, 8 जून 2020

मानसिकता बदलें लोग

एक श्वेत पुलिसकर्मी डेरेक शोविन द्वारा अपने घुटने से कुचल कर एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद शुरू हुए नस्लभेद का विवाद इतना विकराल रूप ले लिया कि दुनिया का सर्वशक्तिमान नेता कहे जाने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी भय की वजह से व्हाइट हाउस में बने सबसे सुरक्षित बंकर में कुछ समय के लिए छुपना पड़ा। यहां गलत नीतियों के विरु द्ध लोग एकजुट होकर सत्ता से सवाल कर रहे हैं और संविधान को बचाने की बात कर रहे हैं। इसी तरह से भारत में भी जनतंत्र को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हमें संविधान को बचाने की बात करनी होगी‚ सत्ता से हमेशा सवाल करना चाहिए।

सही या गलतॽ

दिल्ली सरकार ने कहा कि यहां के स्वास्थ्य केंद्रों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा‚ जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया‚ यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंंद केजरीवाल ही जानें। इस फैसले पर सबकी अपनी राय भी होगी और कुछ तो इस फैसले को राजनीति के चश्मे से भी देखेंगे‚ लेकिन जिस तरह दिल्ली में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा बढ़ रहा है और आबादी भी जितनी ज्यादा है‚ उससे एकबार तो लगता है उनका फैसला सही है।

नियमों का पालन जरूरी

देश में लाक डाउन संबंधित नियम तो बहुत बना दिए गए हैं‚ परन्तु उन पर अमल कितना होता है यह देखने वाली बात है। पहले की ही तरह कानून आम दिनों में जैसे तोड़े जाते रहे हैं‚ वैसे ही इस दौर में भी टूट रहे हैं। सड़क किनारे मौजूद कानून के रखवाले भी नियम टूटने पर मूकदर्शक बने खड़े रहते हैं। दुकानों पर तय दूरी को ताक पर रख दिया जाता है। जनप्रतिनिधि भी इससे अछूते नहीं हैं। कहीं चुनाव की तैयारियों को लेकर एकत्रित हो रहे हैं तो कोई नाई से बाल कटवा रहा है। जबकि कोरोना महामारी के शुरुûआती समय में ही सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जनता से यह अपील की थी कि मास्क हर किसी को पहनना होगा। साथ ही सोशल डि़स्टेंसिंग का पालन अनिवार्य है। मगर कई लोगों ने इस निर्देश पर अमल नहीं किया और अब वो सारे लोग कोरोना की चपेट में हैं॥

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...