शुक्रवार, 19 जून 2020

व्यावहारिक नहीं है विरोध

आवेश में आकर चीनी उत्पादों का दहन। उसके झंडे जलाना। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले और तस्वीरों में आग लगाना। चीनी उत्पादों के बहिष्कार के नारे लगाना। उनको न खरीदने की कसमें खाना। ये सब क्षणिक मानसिक गुस्से का स्वाभाविक इजहार है। मगर चीन पर हमारी निर्भरता इतनी है कि एकबारगी अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। दवा उत्पादों में लगने वाले कच्चे माल से लेकर ऑटोमोबाइल के कल-पुर्जे और इलेक्ट्रॉनिक सामान तक हम आमतौर पर चीन से ही मंगवाते हैं। चीन के उत्पादों की लोकप्रियता का बड़ा कारण यही है कि वे सस्ते होते हैं, जो भारत जैसे गरीब देश की जनता के लिए काफी मायने रखते हैं। इसलिए एक झटके में हम चीन से अपना कारोबारी रिश्ता खत्म नहीं कर सकते। दीर्घ अवधि की कोई योजना ही इसमें कारगर हो सकती है।


गरीबों के नाम पर

अपने देश में केंद्र और राज्य सरकारें गरीबों को सहायता पहुंचाने के लिए तमाम कोशिशें करती रहती हैं। कोरोना के बुरे दिनों में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकारें प्रयासरत हैं, लेकिन यह खबर शर्मनाक और निंदनीय है कि कुछ समृद्ध लोग राजनेताओं और सरकारी बाबुओं से मिलीभगत करके फर्जी गरीब बनकर लाभार्थियों की राहत सामग्री हड़प रहे हैं। इससे सरकारी खजाने को भी भारी चूना लग रहा है। अगर हमारे देश में फर्जी गरीब बनकर फर्जीवाड़ा यूं ही चलता रहा, तो आने वाले समय में देश की आर्थिक सेहत और बिगड़ जाएगी। इसका नुकसान हरेक तबके को होगा। इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए गंभीरता दिखाएं।


नहीं मिल रहा मजदूरों को लाभ

मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर पहुंची तो जरूर लेकिन उसका वास्तविक लाभ मजदूरों को नहीं मिल पा रहा है। कारण गंवई राजनीति के चलते जॉब कार्ड अपात्रों का जारी कर दिया गया है। मजदूरों को जहां तहां जारी भी किया गया है तो गंवई राजनीति हावी होने के चलते मनरेगा का कार्य नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते उन्हें परेशानी हो रही है। कोरोना संक्रमण के दौर से गुजर रहे मजदूर शहरों से पलायन कर गांव पहुंचे पर उन्हें मजदूरी नहीं मिल पा रही है। यह स्थिति कई गांवों में है। शिकायत के बावजूद अधिकारी कुछ नहीं कर रहे हैं। इसकी जांच कराने पर मामला स्पष्ट हो जाएगा।

रखें शारीरिक दूरी का ख्याल

कोरोना संक्रमण की चेन रोकने के लिए शारीरिक दूरी का खयाल रखना बहुत जरूरी है। कहीं भी रहें आपस में शारीरिक दूरी कायम रखें। हर हाल में किसी भी एक दूसरे के सीधे संपर्क में न आएं इससे कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर देखा जा रहा है कि लोग शारीरिक दूरी के प्रति सजग नहीं दिख रहें हैं। भीड़ लगाकर दुकानों पर खरीदारी कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति अगर भीड़ में शामिल है तो अन्य लोगों में संक्रमण की संभावना अधिक है और स्थिति भयावह हो सकती है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि कोरोना संक्रमण को लेकर शारीरिक दूरी का खयाल रखकर सदैव सजग रहें।

अब संभलने की जरूरत

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में हर कोई इससे चिंतित व भयजदा है। लगातार बढ़ते मामलों को लेकर अब और ज्यादा संभलने की जरूरत है, जिससे कोरोना संक्रमण से निजात मिल सके। चिकित्सकों का मानना है कि जून के अंत तक संक्रमित मरीजों का आंकड़ा और बढ़ जाएगा। इसलिए लोगों को संभलने की जरूरत है। दिल्ली समेत अन्य राज्य अपने यहां चिकित्सालयों में पर्याप्त बेड की व्यवस्था कर रहे हैं। इसको देखते हुए लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।

चीन को सबक सीखाने का समय

चुनौतियां आती ही हैं परीक्षा लेने के लिए। क्षमता का आकलन करने के लिए। कौन कितने पानी में है इसकी थाह के लिए। अब वो समय आ गया है जब भारत को अपनी ताकत का अहसास कराना होगा। विश्व पटल पर अपनी छाप दिखाने के लिए चीन को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। 20 के बदले 20 को जब तक मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा जबतक जवानों के बलिदान के साथ न्याय नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों को भी तरजीह देने की जरूरत है। एक ऐसी रणनीति तैयार करने की जरूरत है जिसमें चीन सैन्य स्तर से तो झुके ही राजनयिक स्तर पर भी उसे यह लगना चाहिए कि अब भारत से मुकाबला आसान नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश को जवाब देना मुश्किल होगा। सत्ता पक्ष की असली घड़ी का समय है। हां, एक बात और है। स्थितियां जितनी विपरीत होंगी मुकाबला उतना ही रोचक होगा। देश का बच्चा-बच्चा प्रधानमंत्री के साथ है।

बहिष्कार और आक्रामकता दोनों की जरूरत

वर्तमान स्थितियों में भारत-चीन सीमा पर जैसे हालात बन रहे हैं, उसके मद्देनजर अब चीन के साथ दुश्मन देश जैसा व्यवहार करना जरूरी है। इसके लिए जहां एक ओर जबरदस्त सैन्य आक्रामकता की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर चीन निíमत वस्तुओं का देशव्यापी बहिष्कार भी आवश्यक है। संघ का आनुषांगिक संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ तो बहुत पहले से ही चीन निíमत वस्तुओं के बहिष्कार की अलख जगा रहा है। लेकिन सस्ते के चक्कर में फंसा हुआ भारतीय उपभोक्ता चीनी उत्पाद से अपना मोह भंग नहीं कर पा रहा था। लेकिन आज जब चीन खुलकर भारत से दुश्मनी निभाने पर उतारू है तो सभी देशभक्त भारतवासियों का यह फर्ज बनता है कि वे चीन निíमत वस्तुओं का बहिष्कार करें, भले ही वह वस्तु कितनी सस्ती और उपयोगी क्यों न हो। भारतीय जन-मानस का यह चीन विरोधी रुख उसकी आíथक कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए जिस जन जागरूकता की जरूरत है, उसका अभाव परिलक्षित हो रहा है। कोरोना के साथ साथ दुराग्रही विपक्ष की आलोचना और असहयोग से जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब यह जरूरी है कि वह चीन के उस दुष्प्रचार का कि यदि भारत चीन पर आक्रामक हुआ तो उसे पाकिस्तान और नेपाली सेनाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जबाव देते हुए सीमा पर चीन के समक्ष अपनी सैन्य आक्रामकता को बनाए रखे। चूंकि भारतीय सैनिकों ने पहली झड़प में ही चीनी सेना को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, इसलिए अब चीन के समक्ष भारत का रक्षात्मक मुद्रा में रहना कतई उचित नहीं होगा। भारत को चीन के हर दुस्साहस का कड़ाई से प्रतिकार करना चाहिए।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...