मंगलवार, 23 जून 2020

गांव में ही रोजगार का सही कदम

लॉकडाउन के कारण पलायन करने वाले प्रवासी श्रमिकों को सरकार ने गांव में ही रोजगार देने का फैसला किया है, जो स्वागतयोग्य है। ऐसे कदमों से ही देश विकेंद्रीकरण की शानदार नीति से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सकता है। असल में गांव ही तो देश की प्रमुख इकाई है। आज देश में जनशक्ति और काम की कोई कमी नहीं है। कमी तो नीति और नीयत की ही है जिसे सही तरीके से सर्वहित में बनाने और लागू करने की जरूरत है।

चीन की नीयत में खोट

दो देशों के बीच में समझौते तभी सफल होते हैं जब दोनों उसका पालन करें। अगर एक भी देश इसका पालन नहीं करता है तो संधि का मकसद बेकार हो जाता है। यही समस्या भारत-चीन की सीमा पर है। एक दूसरे पर हथियार से हमला नहीं करने व सीमित संख्या में ही सैन्य बल तैनात करने की संधि के बावजूद चीन इसका उल्लंघन कर रहा है। इसका नतीजा खूनी संघर्ष के रूप में सामने आया। चीन अभी भी भारत की गलवन घाटी में तनाव पैदा करने में लगा हुआ है और अपनी गलती को नहीं मान रहा है। उसकी नीयत में खोट है। वह कभी भरोसे का देश नहीं रहा है। उसके साथ किसी भी तरह की वार्ता में बहुत सावधानी की जरूरत है।


चीन को आर्थिक नुकसान का झटका दें

जब-जब भी हमारे देश का चीन के साथ तनाव बढ़ता है, तब-तब इसके सामान के बहिष्कार का जुनून भी देश में बढ़ता है, लेकिन यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि हमारे देश की सरकार चीन से आर्थिक लड़ाई खुलकर नहीं लड़ सकती और न ही चीनी सामान पर पूर्ण प्रतिबंध आसानी से लगा सकती। ऐसा इसलिए, क्योंकि विदेशी व्यापार, आयात-निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समझौते हुए होते हैं, जिनकी अवहेलना देश के लिए भारी पड़ सकती है। ऐसे में चीन से आर्थिक लड़ाई लड़ने में हमारे देश के नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए नागरिकों को चीनी सामान पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। अगर हमारा देश अनावश्यक चीनी सामान का प्रयोग करना भी छोड़ दे तो भी चीन को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। इनमें मुख्यत: बच्चों के खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक सामान, चीनी मोबाइल एप्लीकेशन आदि तो ऐसे हैं जिन्हें आसानी से तिलांजलि दी जा सकती है। इस पर अवश्य विचार किया जाए।

विक्रम और वीरता राष्ट्रीय चरित्र

चीनी सेना ने लद्दाख की गलवन घाटी में धोखे से भारतीय सैनिकों को जिस तरह निशाना बनाया उसके बाद चीन से रिश्ते सामान्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं। ऐसा शायद चीनियों ने इसलिए किया कि आर्थिक व व्यापारिक मामलों में भारत को दबाव में लेने के साथ ही दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस से उपजी महामारी से हटा सके। इस छल पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने का समय आ गया है। उसने भारत ही नहीं अमेरिका जैसे देशों को भी अपना शत्रु बना लिया है।

दुर्दशा पर आंसू बहा रहा क्षतिग्रस्त मार्ग

सरकारी संस्थाओं को भले ही हाईटेक संसाधनों से जोड़कर पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा हो लेकिन, उनकी कार्यशैली में जमीनी तौर पर कितना बदलाव हुआ है इसका उदाहरण जिले की सबसे महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग की तरफ से 40 किमी. लंबे राबट्र्सगंज-खलियारी संपर्क मार्ग को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दुर्दशा को लगातार फोकस करने के बाद भी प्रशासन की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सड़क की हाल यह हो गई कि बड़े-बड़े गड्ढ़े बन जाने से बारिश के बाद उसमें पानी भर जाने से लोग अक्सर दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। इसको लेकर लोग संबंधित विभाग के खिलाफ मोर्चा भी खोलने लगे हैं। बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की जा रही है।

कैसे हो सुधार

कोरोना संक्रमण काल में विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्थाओं को कैसे संचालित किया जाए, इसको लेकर सोचने की जरूरत है। जुलाई आने वाला है। ऐसे में सरकार द्वारा शिक्षा के नए सत्र की शुरुआत की जाती है लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इस पर नीति नियंताओं को सोचने की जरूरत है। जिससे बचाव भी हो और शिक्षण कार्य भी न प्रभावित हो सके। शिक्षा बाधित होने से छात्रों की पढ़ाई में रूचि भी कम हो जाती है। संक्रमण को देखते हुए शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जरूरत है।

सार्थक भूमिका निभाए विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा

कोरोना काल हो या मौजूदा भारत-चीन संकट, उसमें कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं ने बचकाने प्रश्न पूछकर बार-बार अपने अपरिपक्व रवैये का ही प्रदर्शन किया है। संभव है कि उन्हें यह संकटकाल राजनीतिक बढ़त का अवसर दिख रहा हो, लेकिन उन्हें इससे पहले राष्ट्रीय हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में कांग्रेस अन्य दलों से सबक ले सकती है जिनमें से कई सरकार के बेहद तल्ख विरोधी हैं, लेकिन इस संकट में सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी गतिशील लोकतंत्र को एक सशक्त विपक्ष की भी उतनी ही दरकार होती है जितनी मजबूत सत्ता प्रतिष्ठान की। इसके लिए आवश्यक होगा कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अर्थपूर्ण सवाल उठाए। इससे न केवल वह अपनी भूमिका का सही से निर्वहन कर सकेगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अफसोस की बात यही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा जिसकी बानगी सर्वदलीय बैठक में देखने को मिली। वहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि वामदल इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं लेना चाहते। वे भी आग में घी डालने से पीछे नहीं रहे और 1962 वाला उनका चीनी प्रेम आखिर जगजाहिर हो ही गया। उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि संकट के समय में ऐसी राजनीतिक विषमताएं शत्रु देश को संजीवनी देने का ही कार्य करती हैं।अमित दुबे, छिबरामऊ(कन्नौज)कार्बाइड का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातकप्रशासन के मनाही के बाद भी कई फलों को पकाने के लिए आज भी कार्बाइड का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। खासतौर पर इस समय आम पकाने के लिए तो इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में बिकने वाले लगभग आम कार्बाइड से ही पकाए गए हैं। कार्बाइड एक खतरनाक केमिकल और इसका उपयोग शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद भी फलों को पकाने में किए जा रहे इसे प्रयोग पर रोक नहीं लग पा रहा है। इस तरह की स्थिति में लगभग सभी लोग मीठा जहर के रूप में इसे शरीर के अंदर ले रहे हैं। कोरोना वायरस के समय यह और घातक हो जाता है।माया यादव, रामपुर महावल, बलिया।अब कस्बों और गांवों की ओर कोरोनामहानगरों से बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी के बाद छोटे-छोटे नगरों व कस्बों में भी तेजी से कोराना वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है। लाकडाउन खुलने के बाद लोग वापस पुराने र्ढे की जीवनशैली पर तेजी से लौटने लगे हैं, जिसके साइड इफेक्ट भी कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई देने लगा है। कई माह के कारोबार की बंदी और बेरोजगारी से भी सबक लेने को लोग तैयार नहीं हैं। छोटे शहरों के लोगों को भी अब बेहद सतर्क और चौकन्ना रहना होगा। पुष्पा त्रिपाठी, हिकमा कोपागंज, मऊ।पेड़ों की रुके कटाईपर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जंगलों को संरक्षित रखने की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए जाने से वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी 

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...