बुधवार, 24 जून 2020

DUDHIYA NALA

एक प्राचीन मन्दिर मऊ गांव के आगे धनरौल बांध से करीब 4 कि0 मी0 पर स्थित है । इसका शिवलिंग करीब 15 से 2 फिट व्यास का 3 फिट ऊंचा है । इसी मन्दिर के साथ खुले में दो ओर शिवलिंग है जो एक ही मोटाई तथा ऊंचाई के हैं परन्तु एक पर सहस्त्रनाग प्रतिमायें बनी हैं । सहस्त्रनाग शिवलिंग का भग्नावशेष शिवद्वार में भी देखा गया है परन्तु वह करीब एक फिट का ही है । यंहा पर काले पत्थर की एक अष्टभुजी की प्रतिमा है।

SODHARIGARH DURG

यह दुर्ग बेलन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से लगभग 35 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में तथा घोरावल से इसकी दूरी लगभग 8 किलोमीटर है । इस दुर्ग की सुरक्षा हेतु चारो तरफ गहरीं खाईया आज भी देखी जा सकती हैं । इसके भग्नावशेषों की खुदाई से अत्यन्त कलात्मक मूर्तियां मिली हैं जिसमें से कुछ खण्डित है जो शयद मुगल काल में तोड़ दी गयी होंगी । यंहा गहड़ूवाल राजाओं का कभी राज्य था।

मंगलवार, 23 जून 2020

संतोष से ही मानसिक शांति संभव


आज बड़ी संख्या में लोग मानसिक तनाव के साथ जी रहे हैं। इसका एक कारण है कि मनुष्य ने धन को ही सवरेपरि मान लिया है। जो जितना असंतुष्ट है वह उतना ही आधुनिक समझा जाने लगा है। जीवन अपनों से दूर हो गया है। फलस्वरूप तनाव स्वाभाविक है। यह जीवन में मुसीबतें ही लेकर आता है। याद रखें कि केवल संतोष से ही मानसिक शांति और सुख मिल सकता है।

कितनी कारगर है दवा

ब्रिटेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें एक ऐसा प्रमाण मिला है जिससे कोविड-19 मरीजों को बचाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि डेक्सामेथासोन नामक स्टेराइड के इस्तेमाल से गंभीर रूप से बीमार कोविड मरीजों की मृत्यु दर में एक तिहाई तक की कमी आई है। इस दवा के काफी उत्साहजनक नतीजे अभी तक मिल रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि जल्द ही इस दवा को लेकर एक रिसर्च पेपर भी प्रकाशित किया जा सकता है। वैसे तो अध्ययन की इस उपलब्धि को सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, परंतु यह देखना अभी बाकी है कि यह अन्य लोगों पर यह कितनी कारगर साबित होगी।

गांव में ही रोजगार का सही कदम

लॉकडाउन के कारण पलायन करने वाले प्रवासी श्रमिकों को सरकार ने गांव में ही रोजगार देने का फैसला किया है, जो स्वागतयोग्य है। ऐसे कदमों से ही देश विकेंद्रीकरण की शानदार नीति से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सकता है। असल में गांव ही तो देश की प्रमुख इकाई है। आज देश में जनशक्ति और काम की कोई कमी नहीं है। कमी तो नीति और नीयत की ही है जिसे सही तरीके से सर्वहित में बनाने और लागू करने की जरूरत है।

चीन की नीयत में खोट

दो देशों के बीच में समझौते तभी सफल होते हैं जब दोनों उसका पालन करें। अगर एक भी देश इसका पालन नहीं करता है तो संधि का मकसद बेकार हो जाता है। यही समस्या भारत-चीन की सीमा पर है। एक दूसरे पर हथियार से हमला नहीं करने व सीमित संख्या में ही सैन्य बल तैनात करने की संधि के बावजूद चीन इसका उल्लंघन कर रहा है। इसका नतीजा खूनी संघर्ष के रूप में सामने आया। चीन अभी भी भारत की गलवन घाटी में तनाव पैदा करने में लगा हुआ है और अपनी गलती को नहीं मान रहा है। उसकी नीयत में खोट है। वह कभी भरोसे का देश नहीं रहा है। उसके साथ किसी भी तरह की वार्ता में बहुत सावधानी की जरूरत है।


चीन को आर्थिक नुकसान का झटका दें

जब-जब भी हमारे देश का चीन के साथ तनाव बढ़ता है, तब-तब इसके सामान के बहिष्कार का जुनून भी देश में बढ़ता है, लेकिन यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि हमारे देश की सरकार चीन से आर्थिक लड़ाई खुलकर नहीं लड़ सकती और न ही चीनी सामान पर पूर्ण प्रतिबंध आसानी से लगा सकती। ऐसा इसलिए, क्योंकि विदेशी व्यापार, आयात-निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समझौते हुए होते हैं, जिनकी अवहेलना देश के लिए भारी पड़ सकती है। ऐसे में चीन से आर्थिक लड़ाई लड़ने में हमारे देश के नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए नागरिकों को चीनी सामान पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। अगर हमारा देश अनावश्यक चीनी सामान का प्रयोग करना भी छोड़ दे तो भी चीन को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। इनमें मुख्यत: बच्चों के खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक सामान, चीनी मोबाइल एप्लीकेशन आदि तो ऐसे हैं जिन्हें आसानी से तिलांजलि दी जा सकती है। इस पर अवश्य विचार किया जाए।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...