शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

प्रकोप जारी है

कोविड़–१९ के प्रकोप का दौर अभी भी जारी ही रहेगा क्योंकि वायरस किसी भी ढंग से कम नहीं हो रहा है। समूचे विश्व में तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोना संक्रमितों के आकड़ों में कमी नहीं आ रही है। लेकिन यह जरूर है कि देश भर में मृत्यु दर में गिरावट आई है। परंतु इसे फिर भी इत्मिनान लायक नहीं माना जा सकता‚ बल्कि जान का जोखिम तो अभी भी बना हुआ ही है। हमें अभी और एहतियात बरतने की भी आवश्यकता है॥

मनरेगा मजदूरी कम

आधार के आने से मनरेगा भुगतान में फायदा देखने को मिला है लेकिन फिर भी कुछ समस्या है जो समझाने की जरूरत है। धीरे से मुआवजे का भुगतान करने से बचने के लिए प्रणाली विकसित हो क्योंकि मजदूरी के भुगतान में देरी जानबूझकर दबा दी जाती है। अठारह राज्यों में मनरेगा मजदूरी दरों से कम रखी गई है। काम की बढ़ती मांग के कारण योजना धन से बाहर चल रही है। कई राज्यों में सूखे और बाढ़ के कारण काम की मांग बढ़ गई है। राज्यों में मनरेगा मजदूरी में डाटा की असमानता है। मजदूरी इस समय लगभग सभी राज्यों में मनरेगा मजदूरी से अधिक है। मनरेगा को सरकार की अन्य योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए। जैसे कि ग्रीन इंडिया पहल‚ स्वच्छ भारत अभियान आदि।

चुनाव और वह भी चीन में!

आगामी ६ सितम्बर को हांगकांग की ७० सदस्यों वाली विधान परिषद् का चुनाव होना निश्चित है। मगर इस बार का मंजर बिल्कुल अलग होने वाला है। जैसा कि डर था वैसा ही हुआ। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अस्तित्व में आने के कारण अब चुनाव केवल नाम का रह जाएगा क्योंकि नामांकन के दौरान ही १२ संभावित प्रत्याशियों‚ जो लोकतंत्र के समर्थक थे‚ को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। पिछले साल जिला परिषद चुनावों में लोकतंत्र समर्थकों को जोरदार जीत हासिल हुई थी। लगता है कि वो सब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा क्योंकि साम्यवादी चीन में चुनाव नहीं‚ केवल चयन होता है॥

शिक्षा नीति को लेकर सवाल

मोदी सरकार ने देश की शिक्षा नीति में लगभग ३४ वर्ष बाद जो भारी और अच्छा बदलाव किया है‚ उस पर सभी के अपने–अपने विचार हो सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सवाÈगीण विकास हो सके। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस नीति से गरीब से गरीब लोगों के बच्चे भी डॉक्टर‚ इंजीनियर बन पाएंगेॽ क्योंकि इन विषयों की पढ़ाई के लिए लोगों को भारी खर्चा करना पड़ता है। क्या देश का हर गरीब बच्चा स्कूल जा पाएगा या फिर आधुनिक तकनीक से पढ़ाई कर पाएगाॽ क्या सरकारी स्कूलों में अध्यापकों और आधुनिक पढ़ाई के साधनों की जो कमी है‚ उसे समय पर पूरा किया जा सकेगाॽ क्या जातिगत आरक्षण इस नई शिक्षा के रास्ते में बाधा तो नहीं बनेगाॽ॥

सोमवार, 27 जुलाई 2020

कड़़ी कार्रवाई जरूरी

दिल्ली हमेशा ही चर्चा में रहती है। प्रत्येक वर्ष कुछ महीने के लिए दिल्ली में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इसी के कारण कूड़़ा जलाने पर भी प्रतिबंध है। इसके बावजूद खुलेआम नशीले पदार्थों की बिक्री होती है। १८ वर्ष से कम आयु के लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए मनाही है‚ लेकिन सिर्फ कागजों पर। जब भी प्रतिबंध लगाया जाता है तो कुछ दिनों तक सख्ती देखने को मिलती है। बाद में सब साधारण हो जाता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसे नियमों को लाने के बाद सख्ती से पालन भी कराएं और नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई भी हो‚ तभी इनसे निजात पाया जा सकता है।

जनता से संवाद

कल ‘मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस के प्रति देश की जनता को आगाह किया। उन्होंने कहा कि खतरा अभी भी टला नहीं है; इसलिए मास्क पहनना और दो गज की दूरी बनाए रखना जरूरी है। संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने मास्क पहनने से होने वाली परेशानियों का भी जिक्र किया। वहीं उन्होंने डॉक्टर और नर्स का उदाहरण देते हुए कहा वह हमारी सेवा करने के लिए घंटों मास्क पहने रहते हैं तो क्या आप मास्क नहीं पहन सकते हैंॽ सावधानी और सतर्कता अभी भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि पहले थी। संबोधन के दौरान मोदी ने कोरोना से रिकवरी रेट और कम मृत्यु दर का भी जिक्र किया।

भविष्य का सवाल है

कोरोना के बढ़ते रफ्तार को देखते हुए परीक्षा का विरोध व्यवहारिक एवं जायज भी है‚ लेकिन गंभीर मसला यह है कि परीक्षा न कराने की स्थिति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास विकल्प क्या हैॽ बड़े स्तर पर मास प्रमोशन भी छात्रों के हितों में नहीं है। अगर उनको प्रोन्नत कर दिया जाता है तो फिर कोरोना काल की समाप्ति के बाद उनकी डिग्री को संदेह की oष्टि से निजी कंपनियां देखेंगी। गांव–देहात में नेट कनेक्टिविटी के जर्जर हालात को देखते हुए ऑनलाइन परीक्षा कराने की बात सोचना भी न्यायसंगत नहीं है। ऐसे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को मिल–बैठकर बीच का कोई रास्ता निकालना चाहिए‚ जिससे छात्रों का भविष्य दांव पर न लगे। इस मसले पर तत्काल निर्णय लिया जाए॥

सतर्क रहना होगा

मेरठ में लव जिहाद की हालिया वारदात वाकई बेहद गंभीर है। आखिर क्यों हिंदू लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं। प्रिया की मौत कोई पहली मौत नहीं है। इस प्रकार की घटना मेरठ में पहले भी घटी थी। मेरठ में लोइया ग्राम निवासी शाकिब ने अपना धर्म छिपाकर एकता नाम की युवती को अपने प्रेम जाल में फंसाया और फिर सच्चाई खुलने पर एकता के शरीर के टुकड़े–दुकड़े कर दिए। लव जिहाद जैसी घटनाओं पर सरकार को तो सख्ती करनी ही चाहिए‚ इसके अतिरिक्त युवतियों को भी अपनी समझदारी का स्तर बढ़ना होगा। परिवार को भी ऐसे मामलों में सचेत रहने की जरूरत है॥

बुधवार, 22 जुलाई 2020

ऑनलाइन मतदान का विकल्प

वर्तमान समय में पूरी दुनिया के साथ बिहार में भी कोरोना का कहर जारी है। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के काल में ऐसा लग रहा है मानो सरकार चुनाव कराने के लिए कटिबद्ध हो लेकिन आज कोरोना का प्रकोप कहर ढा रहा है। लोगों को इलाज की जरूरत हैसरकार को चुनाव कराने की इतनी ही ज्यादा जल्दी है और लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए इतनी ही बेकरारी हैतो ऑनलाइन चुनाव करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। ऑनलाइन शॉपिंग की तरह ऑनलाइन मतदान की व्यवस्था करे। जिस तरह नेट बैंकिंग द्वारा पैसा ट्रांसफर हो जाता हैउसी तरह मतदान की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती। लोकतंत्र को जिंदा रखने के नाम पर लोक के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं किया जाए। विदेशों में कोरोनाकाल में चुनाव होने का तर्क देकर बिहार में भी चुनाव कराने का तर्क दिया जाता हैतो उन्हें विशाल मतदाता संख्या को भी देखने की जरूरत है।


विधायकों की पिंजड़़ाबंदी

जब तक उच्चतम न्यायालय से फैसला नहीं आ जाता है‚ तब तक राजस्थान की जनता को देखने वाला कोई नहीं है। विधायकों का यह आचरण लोकतंत्र की मर्यादा के विरुûद्ध है। उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान भी विधायकों को जनता के बीच रहना चाहिए। जिस तरीके से लोग जानवरों को पिंजड़े में कैद कर रखते हैं‚ उसी तरह अशोक गहलोत और सचिन पायलट अपने–अपने समर्थक विधायकों को पिंजड़े में कैद किए हुए हैं। क्या इन नेताओं को अपने विधायकों पर भरोसा नहीं है‚ या इनकी जान को खतरा हैॽ विधायकों की निष्ठा जनता के प्रति है या बड़े नेताओं के प्रतिॽ जनता को इन सभी सवालों का जवाब जानने का हक है। यह लोकतंत्र के पतन की पराकाष्ठा है। न्यायालय को जनता की खातिर जल्द से जल्द इस मामले में फैसला सुना देना चाहिए॥

न हो अनर्गल शब्दों का प्रयोग

विगत दिनों से राजस्थान में राजनीति के अंतर कलह और दांवपेच जग जाहिर हैं। राजनेताओं के आपसी मतभेदों की चरम सीमा यहां तक पहुंच गई कि निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्द उस माहौल में गूंज रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं के आक्रोश भरे मतभेद ओर अंतर कलह की इस प्रतियोगिता में राजनेताओं को यह भी भान नहीं होता कि हम आरोप–प्रत्यारोप में जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं‚ उनका जना धार पर और समाज पर क्या प्रभाव होगा.ॽ कम से कम अशोभनीय और अनर्गल शब्दों का तो ध्यान रखना चाहिए। निकम्मा‚ नाकारा जैसे शब्दों का अगर प्रयोग होगा तो राजनीति के मायने ही बदल जाएंगे॥


फिर लगाएं बंदिशें


सड़कों पर जो स्थिति दिख रही है‚ उससे कहीं नहीं लग रहा है कि हम कोरोना जैसी महामारी के बीच जिंदगी जी रहे हैं। लोग बड़े आराम से घर से बाहर बाजार और अन्य जगहों पर टहल रहे हैं। ऐसे में इस महामारी का प्रकोप बढ़ना निश्चित है। सरकार को चाहिए कि फिर से लंबे समय के लिए बंदिशें लागू कर दे‚ नहीं तो पिछले कुछ समय में की गई सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा॥

सोमवार, 13 जुलाई 2020

पाऊच लॉकड़ाउन में

लॉकड़ाउन जब दो महीने का होता था‚ तब उसे मेगा लॉकडाउन का लॉकडाउन का फैमिली पैक कह सकते थे‚ अब ५५ घंटों के लॉकडाउन‚ ४८ घंटों के लॉकडाउन‚ इन्हें लॉकडाउन का पाऊच वर्जन कहा जा सकता है। अब लॉकडाउन का फैमिली पैक खत्म हो लिया है‚ पाऊच वर्जन चल रहा है। बंगलूर में‚ यूपी में और भी बहुत जगह॥। कोरोना पर खबरें लिखने वाले और पढ़ने वाले दोनों ही बहुत परेशान हो गए हैं कोरोना से। डर का एक मनोविज्ञान यह भी है कि जब डर बहुत ज्यादा फैल जाता है‚ तो एक खास किस्म की निडरता को जन्म देता है–ठीक है‚ होगा जो भी देखा जाएगा। दरअसल‚ इसके सिवाय कोई विकल्प भी नहीं है। क्या कर लेंगे‚ कोरोना आ रहा है‚ कोरोना आ गया है‚ कोरोना आएगा। क्या किया जा सकता है। पाऊच लॉकडाउन को देखिए‚ मेगा लॉकडाउन देख चुके हैं। मैं तो रोज सरकारी बयानों को देखता हूं‚ जिनमें सब कुछ फिट दिखाई देता है। वैसे कोरोना भी सबके लिए एक सा ना होता। बड़ा आदमी कोरोना की गिरफ्त में आता है‚ तो खबरें ये आती हैं‚ फलां जी ने १२ बजे पानी पिया‚ १ बजे सेब खाया‚ २ बजे ये खाया.। आदमी फंसता है‚ तो खबर यह आती है कि सात अस्पतालों में गर्भवती पत्नी लेकर भटकते रहा भट्टालाल कहीं दाखिला ना मिला। ॥ कोरोना टाइप की बीमारियां बड़े आदमियों को ही होनी चाहिए‚ दरअसल वो ही अफोर्ड कर सकते हैं। लॉकडाउन में थ्रोबैक पुरानी फोटू डालते हैं–बीस साल पहले मैं ऐसा था–टाइप। आम आदमी की जिंदगी में बीस साल में फर्क इतना भर आ जाता है कि बीस साल पहले वह बच्चे के स्कूल एडमीशन की लाइन में खड़ा था‚ अब वह कंसेशन रेट पर कराए जा रहे कोरोना टेस्ट की लाइन में लगा हुआ। पुराना नया सब एक सा है‚ बदलता नहीं है। लाइन में हैं जी। लाइन मुक्त होकर फाइव स्टार जीवन के लिए इस मुल्क में या तो परम संपन्न होना पड़ेगा या विधायक‚ जाने कहां कहां के विधायक फाइव स्टार होटलों में जनता की सेवा कर रहे हैं। आप ना विधायक हैं ना संपन्न‚ तो भगवान ना करे कि आपकी ऐसी खबरें आएं–किसी अस्पताल में दाखिला ना मिला।

किस करवट बैठेगाॽ

मार्च महीने में मध्य प्रदेश में ज्योदिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच तनातनी में सरकार चली गई थी। अब ऐसा ही कुछ राजस्थान में हो रहा है। यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच टकराव चरम पर है। क्या कांग्रेस के लिए युवाओं का जज्बा मायने नहीं रखताॽ पायलट ने दावे के साथ कहा कि उनके साथ ३० से ज्यादा नेताओं के समर्थन है। वैसे राजनीतिक दलों में दल–बदल कोई नई बात नहीं है॥

सख्त बने कानून

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया का निर्माण होता है। जनसंख्या वृद्धि के कारण हमारे देश में तमाम विकास योजनाएं एवं संसाधन बोने सिद्ध हो रहे हैं। शिक्षा‚ स्वास्थ्य‚ आवास‚ रोजगार एवं जीवन स्तर से जुड़ा हर पहलू सीधे तौर पर जनसंख्या वृद्धि से प्रभावित होता है। जनसंख्या पर नियंत्रण के संबंध में हमारा समाज पहले से काफी जागरूक हुआ है। फिर भी अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। सरकार को ‘एक दंपति दो संतान' का कानून संसद से पारित करवाना चाहिए एवं इसे देश के सभी समुदायों पर सख्ती के साथ लागू करना चाहिए॥। 

भारतीय वायुसेना को अमेरिकी एयरोस्पेस कम्पनी ‘बोइंग' से खरीदे गए सभी २२ अपाचे हेलीकॉप्टर मिल गए हैं‚ जिसके साथ वायुसेना की ताकत काफी बढ़ गई है। ढई अरब डॉलर का यह रक्षा सौदा सितम्बर २०१५ में हुआ था। इन हेलीकॉप्टरों की पहली खेप गत वर्ष २७ जुलाई को गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर पहुंची थी‚ जिन्हें पठानकोट एयरबेस पर तैनात कर दिया गया था। बोइंग द्वारा निमत अपाचे दुनिया का सबसे आधुनिक और घातक हेलिकॉप्टर माना जाता है‚ जो ‘लादेन किलर' के नाम से भी विख्यात है। भारत दुनिया का १४वां ऐसा देश है‚ जिसने अपनी सेना के लिए इसका चयन किया है। वर्तमान में चीन के साथ विवाद के दौर में इसकी महkवपूर्ण भूमिका देखी भी गई है। 

सावन की छटा गायब

आज के इस इंटरनेट के युग में अब कोई यक्ष अपनी प्रेयसी यक्षिणी को मेघ के माध्यम से संदेशा भेजने का साहस नहीं दिखाता है। अब तो मेघों के माध्यम से संदेशा भेजना तो दूर की कौड़ी; चिट्ठियों के दौर को भी आधुनिकता ने निगल लिया है। अब तो सावन मोबाइल की सात इंच की स्क्रीन तक सिमट कर रह गया है। वन और वृक्षों का इस गति से सफाया होता गया कि सावन की हरियाली नदारद होती गई। भगवान शिव को भी जंगल की गुफाओं से लाकर अट्टालिकाओं के गृहगर्भ में शिफ्ट कर दिया गया। लगता है रूठ गया है सावन। इसलिए भी कि जिन अंग्रेजों की तपती जुल्म की गर्मी से राहत दिलवाकर शहीदों ने भारतवर्ष में सावन लाया था‚ उस सावन का तथाकथित जनसेवकों ने सत्यानाश कर दिया। अब भारतीय जनता के भाग्य में केवल तपना ही लिखा है॥

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

सीबीआई जांच हो

कानपुर के जघन्य हत्याकांड़ में उप्र सरकार कार्रवाई में विफल साबित हुई। अलर्ट के बावजूद विकास का उज्जैन तक पहुंचना‚ सुरक्षा के दावों की पोल खोलता है और मिलीभगत की ओर इशारा करता है। तीन महीने पुराने पत्र पर ‘नो एक्शन' और कुख्यात अपराधियों की सूची में ‘विकास' का नाम न होना बताता है कि इस मामले के तार दूर तक जुड़़े हैं। मामले की सीबीआई जांच करा सभी तथ्यों और संरक्षण देने से जुड़़े संबंधों को जगज़ाहिर करना चाहिए।

मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो

खबर आ रही है कि ‘कानपुर–कांड़' का मुख्य अपराधी पुलिस की हिरासत में है। अगर यह सच है तो सरकार साफ करे कि यह आत्मसमर्पण है या गिरफ्तारी। साथ ही उसके मोबाइल के सीड़ीआर (कॉल डि़टेल रिकॉर्ड़) सार्वजनिक करें‚ जिससे असली मिलीभगत का भंड़ाफोड़़ हो सके। 

राजनीतिक संरक्षकों को सजा मिले

कानपुर–कांड़ का दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे को काफी लम्बी जद्दोजहद के बाद अन्ततः मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद अब इसके तमाम आपराधिक साठगांठ व माफियागिरी आदि का पर्दाफाश होने का उत्तर प्रदेश और देश की जनता को काफी इन्तजार है। इतना ही नहीं‚ जनता को इस बात की भी प्रतीक्षा है कि विकास दुबे के साथ–साथ उसके जघन्य अपराधों से जुड़़े एवं संबंधित सभी सरकारी और राजनीतिक संरक्षकों एवं षड़्यंत्रकारियों को भी उत्तर प्रदेश सरकार जल्द से जल्द सख्त सजा जरूर दिलाए। 

शनिवार, 4 जुलाई 2020

बहिष्कार की होड़

इन दिनों देश में चीनी माल के बहिष्कार का माहौल है। सरकार के अंदर भी अलग-अलग मंत्रलयों की ओर से चीनी उपकरणों का उपयोग न करने को लेकर लगातार फैसले हो रहे हैं। अब तक केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और बिजली मंत्री आरके सिंह की ओर से घोषणाएं हो चुकी हैं। बताया जा रहा है कि दूसरे मंत्रियों ने भी अपने-अपने विभागों में अधिकारियों को इसकी पड़ताल में लगा दिया है कि वे पता करें कि उनके अधीन आने वाले किसी भी मामले में चीनी माल आता है या नहीं। उन्हें हिदायत है कि वे यह फटाफट मालूम करें ताकि इसके उपयोग न करने की घोषणा की जा सके। कुछ लोगों ने तो यह तक तलाशना शुरू कर दिया है कि उनके घर पर कौन-कौन से चीनी सामान हैं।

विकल्प नहीं तो करें क्या

चीन के साथ जारी तनातनी और चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर व्यापारी एक-दूसरे को कोसने से नहीं चूक रहे हैं। हाल ही में कई जगहों पर चीन के सामान की होली जलाई गई, लेकिन कई व्यापारी अपने ही व्यापारी दोस्तों से यह कहते देखे गए कि उन्हीं चीनी सामान की होली जलाई जा रही है जो बेकार हो गए हैं। व्यापारी यह भी कहते सुने गए कि जिस फोन से चीनी सामान के होली जलाने की तस्वीर खींच रहे थे, वे भी चीन के हैं। लेकिन किसी व्यापारी ने फोन को तो नहीं जलाया। इनकेमतभेद इसलिए भी हैं कि चीनी सामानों पर रोक की स्थिति में दिल्ली के थोक बाजार के आधे कारोबार बंद हो जाएंगे। देश का सबसे बड़ा इलेक्टिक बाजार भगीरथ पैलेस में तो 60 फीसद माल चीन से आता है। ऐसे में यहां के कारोबारी साफ बोल रहे हैं कि चीन का सामान बेचने के अलावा उनके पास अभी विकल्प ही क्या है?

एप की याद

सरकार ने टिकटॉक समेत चीन के 59 एप को बैन तो कर दिया है, लेकिन इस कारण सरकारी कर्मचारियों का टाइम पास नहीं हो रहा है। असल में ये कर्मचारी इन दिनों काम के दौरान अपने खाली समय में टाइम पास के लिए चीनी एप का खूब इस्तेमाल कर रहे थे। अब इन कर्मचारियों ने सरकारी दायित्व समझते हुए अपने-अपने मोबाइल फोन से टिकटॉक और हेलो जैसे चीनी एप को हटा तो दिया है, लेकिन इनके दिल में इस बात की कसक जरूर रह गई है कि अब उन्हें टिकटॉक का मजा नहीं मिल पाएगा। चीनी एप की जगह कई भारतीय एप आ तो गए हैं, लेकिन पिछले कई सालों से चीनी एप के अभ्यस्त इन कर्मचारियों को शायद उनके देसी अवतारों की कोई जानकारी नहीं। उनकी जानकारी के बाद शायद उनका गम कुछ कम हो सके।

सियासी बंगला

मौजूदा दौर में सियासतदां ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालकर एक दूसरे की सफेदी को गंदा करने का मौका नहीं चूकते। मगर इस दौर में भी कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनका जिक्र आते ही ऐसी सियासत थम जाती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के बंगले का आवंटन रद करने के सरकार के फैसले पर छिड़ी सियासी जंग के बीच ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। इसे गांधी परिवार के खिलाफ राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने अपने आधिकारिक बयान में भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बंगले पर सवाल उठाने की तैयारी कर ली। मगर बताया जाता है कि बयान के इस मजमून में आडवाणी का नाम देखकर कांग्रेस नेतृत्व ने इसे आधिकारिक बयान में शामिल करने की इजाजत नहीं दी। दरअसल वैचारिक दूरी के बावजूद बीते कुछ वर्षो में सोनिया गांधी और आडवाणी के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। अपनी आत्मकथा सोनिया को भेंट करने के लिए कुछ साल पूर्व आडवाणी दस जनपथ भी गए थे। राजनीतिक गलियारों और संसद में रूबरू होने के दौरान राहुल गांधी भी आडवाणी को पूरा सम्मान देते हैं। इसीलिए बंगले की सियासत में हाइकमान ने ही आडवाणी का नाम नहीं लेने की ताकीद कर दी। फिर स्वाभाविक रूप से जोशी का जिक्र भी नहीं किया गया। इसलिए यह कहना गैरमुनासिब नहीं कि कुछ चेहरों के आगे सियासत भी लिहाज करती है।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...