विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रकाशित अनिल प्रकाश जोशी का लेख ‘यह दुनिया सिर्फ इंसानों की नहीं' पढ़ा। वाकई, इस दुनिया पर जितना हमारा अधिकार है, उतना ही उन लाखों जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का भी है, जिनको प्रकृति ने हमारे साथ जीवन दिया है। चूंकि इंसान सबसे बुद्धिमान प्राणी है, इसलिए उसे पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। लेकिन दुखद यह है कि हम पर्यावरण को बचाने के लिए समय-समय पर बातें तो खूब करते हैं, लेकिन जिस तरह से उन पर काम होना चाहिए, वह नहीं करते। हमें अपने आसपास की आबोहवा साफ रखनी ही होगी, अन्यथा मानव जीवन शायद ही बचा रह सकेगा।
शुक्रवार, 5 जून 2020
जानवर कौन
धरती पर मानव ही ऐसा प्राणी है, जो अच्छे और बुरे का भेद कर सकता है। मगर केरल की घटना ने ईश्वर की सबसे सुंदर रचना पर शक की चादर चढ़ा दी है। वहां एक गर्भवती हथिनी के साथ किया गया व्यवहार दुखी करने वाला है। इस घटना से यह समझ नहीं आ रहा कि वास्तव में जानवर कौन है? वह हथिनी, जो पीड़ा में भी शांत होकर पानी में खड़ी रही या फिर वे इंसान, जिन्होंने इस बेजुबान को फल में बम खिला दिया। हथिनी के पेट में पल रहे बच्चे ने भी शायद यही सोचा होगा कि अगर मानव ऐसे होते हैं, तो ठीक है कि मैं धरती पर नहीं आया। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब-जब मानव इंसानियत से दूर हुआ है, तब-तब उसे इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है।
रविवार, 31 मई 2020
भविष्य की चुनौतियां
हर महामारी ने समय-समय पर मनुष्य के लिए संकट पैदा किया है, लेकिन उसके साथ वह इंसान को कई सीख और संदेश भी देकर गई है। वर्तमान में अपने चरम पर चल रही कोरोना महामारी के साथ भी ऐसा ही है। कोरोना से हमारी जंग जारी है। बतौर सबक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य श्रमिक आयोग के गठन की घोषणा कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार भी ‘माइग्रेंट वर्कर्स' को परिभाषित करने जा रही है, जो आने वाले वर्षों में काफी राहतपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। एक सबक यह भी है कि प्रकृति से खिलवाड़ जानलेवा हो सकता है, और अगर हम यूं ही उसके साथ छेड़छाड़ करते रहे, तो वह अपने घाव खुद भर सकती है। तो क्या आगे भी हम पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे? लॉकडाउन अवधि में अपराधों में आई कमी कायम रखेंगे? पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण बंद करेंगे? इन सवालों का सटीक जवाब अभी नहीं दिया जा सकता, लेकिन गांधी जी के स्थानीय स्वशासन के मंत्र को यदि हम अपना लें, तो देश भर में होने वाला भीतरी पलायन भी रुक सकता है। राज्य सरकारों को इसकी तरफ सोचना चाहिए।
मदद वाले हाथ
बॉलीवुड पर संवेदनशील मामलों पर चुप्पी बरतने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अभिनेता सोनू सूद द्वारा गरीब लोगों को घरों तक पहुंचाने के लिए किए गए प्रयास सराहनीय हैं। सोनू सूद जैसे अभिनेताओं से सरकार के जिम्मेदार लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं कि जनता के पैसे को जनता पर खर्च कर कैसे जनसेवा की जा सकती है। कोरोना वायरस बेशक आर्थिक रूप से सरकारों की कमर तोड़ रहा है, लेकिन अभिनेता सोनू सूद जैसे मदद करने वाले लोगों के सामने आने वाली प्रशासनिक मुश्किलों का तुरंत निपटारा तो सरकार कर ही सकती है। ऐसा करने से मदद करने वाले हाथ और ज्यादा मजबूत होंगे।
इंटरनेट का बढ़ता दायरा
डिजिटल दुनिया का साम्राज्य बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि सूक्ष्म से लेकर विशाल तक, सभी चीजों के लिए डिजिटल माध्यम को अपनाने की मांग हो रही है। एक तरफ, डिजिटल के फायदे हैं, तो दूसरी तरफ इसके कुछ नुकसान भी हैं। सभी के लिए, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहां डिजिटल नहीं, नॉर्मल दुनिया की जरूरत है। सरकारी स्तर पर भी अब हर जगह डिजिटल की मांग है, पर उसमें भी यह सबके लिए संभव नहीं। सरकारी क्षेत्र हो या निजी, किसी भी जगह डिजिटल के साथ-साथ सामान्य सुविधा भी आवश्यक है। डिजिटल के साथ ऐसी व्यवस्था भी जरूरी है, जो सबके लिए उपयुक्त हो और सब उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें।
चौधराहट मंजूर नहीं
भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए पिछले कुछ दिनों से कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं। इन कोशिशों का सकारात्मक परिणाम भी सामने आया है। अब चीन के रुख में नरमी दिखने लगी है। मगर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बीच मध्यस्थता की पेशकश कर दी। जाहिर है, वह भारत-चीन सीमा विवाद को नया रूप देने की कोशिश में हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पर भी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है और कोविड-19 पर उन दोनों में तकरार जारी है, तब अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की बात कहना कहां तक प्रासंगिक है? सच्चाई तो यह है कि अमेरिका अपनी चौधराहट दिखाना चाहता है, जिसे हमें कतई नहीं मानना चाहिए।
सवाल तो पूछे ही जाएंगे
जिस देश का अनाज का भंडारण खाने से ३ गुना ज्यादा भरा पड़ा है‚ वहां कोई मां भूखों क्यों मर जा रही हैॽ ये सवाल हम कब और किससे पूछेंगेॽ निश्चित रूप से देश में अन्न के बफर स्टॉक रहने के बावजूद इस देश की कोई मां‚ कोई मजदूर‚ कोई भी गरीब ‘भूख' से मर रहा है! आखिर क्योंॽ इससे ज्यादा दुुख की बात और क्या हो सकती है! इसमें सीधे दोषी सत्ता पर कुंडली मार कर बैठे अशिष्ट‚ लापरवाह‚ अमानवीय‚ क्रूर सत्ता के कर्णधार हैं‚ जो ‘सबकुछ' रहते हुए भी इस देश की जनता को ‘भूखों मारने का दुष्कर्म' कर रहे हैं।
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