कोरोना संक्रमण की चेन रोकने के लिए शारीरिक दूरी का खयाल रखना बहुत जरूरी है। कहीं भी रहें आपस में शारीरिक दूरी कायम रखें। हर हाल में किसी भी एक दूसरे के सीधे संपर्क में न आएं इससे कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर देखा जा रहा है कि लोग शारीरिक दूरी के प्रति सजग नहीं दिख रहें हैं। भीड़ लगाकर दुकानों पर खरीदारी कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति अगर भीड़ में शामिल है तो अन्य लोगों में संक्रमण की संभावना अधिक है और स्थिति भयावह हो सकती है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि कोरोना संक्रमण को लेकर शारीरिक दूरी का खयाल रखकर सदैव सजग रहें।
शुक्रवार, 19 जून 2020
अब संभलने की जरूरत
कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में हर कोई इससे चिंतित व भयजदा है। लगातार बढ़ते मामलों को लेकर अब और ज्यादा संभलने की जरूरत है, जिससे कोरोना संक्रमण से निजात मिल सके। चिकित्सकों का मानना है कि जून के अंत तक संक्रमित मरीजों का आंकड़ा और बढ़ जाएगा। इसलिए लोगों को संभलने की जरूरत है। दिल्ली समेत अन्य राज्य अपने यहां चिकित्सालयों में पर्याप्त बेड की व्यवस्था कर रहे हैं। इसको देखते हुए लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।
चीन को सबक सीखाने का समय
चुनौतियां आती ही हैं परीक्षा लेने के लिए। क्षमता का आकलन करने के लिए। कौन कितने पानी में है इसकी थाह के लिए। अब वो समय आ गया है जब भारत को अपनी ताकत का अहसास कराना होगा। विश्व पटल पर अपनी छाप दिखाने के लिए चीन को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। 20 के बदले 20 को जब तक मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा जबतक जवानों के बलिदान के साथ न्याय नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों को भी तरजीह देने की जरूरत है। एक ऐसी रणनीति तैयार करने की जरूरत है जिसमें चीन सैन्य स्तर से तो झुके ही राजनयिक स्तर पर भी उसे यह लगना चाहिए कि अब भारत से मुकाबला आसान नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश को जवाब देना मुश्किल होगा। सत्ता पक्ष की असली घड़ी का समय है। हां, एक बात और है। स्थितियां जितनी विपरीत होंगी मुकाबला उतना ही रोचक होगा। देश का बच्चा-बच्चा प्रधानमंत्री के साथ है।
बहिष्कार और आक्रामकता दोनों की जरूरत
वर्तमान स्थितियों में भारत-चीन सीमा पर जैसे हालात बन रहे हैं, उसके मद्देनजर अब चीन के साथ दुश्मन देश जैसा व्यवहार करना जरूरी है। इसके लिए जहां एक ओर जबरदस्त सैन्य आक्रामकता की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर चीन निíमत वस्तुओं का देशव्यापी बहिष्कार भी आवश्यक है। संघ का आनुषांगिक संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ तो बहुत पहले से ही चीन निíमत वस्तुओं के बहिष्कार की अलख जगा रहा है। लेकिन सस्ते के चक्कर में फंसा हुआ भारतीय उपभोक्ता चीनी उत्पाद से अपना मोह भंग नहीं कर पा रहा था। लेकिन आज जब चीन खुलकर भारत से दुश्मनी निभाने पर उतारू है तो सभी देशभक्त भारतवासियों का यह फर्ज बनता है कि वे चीन निíमत वस्तुओं का बहिष्कार करें, भले ही वह वस्तु कितनी सस्ती और उपयोगी क्यों न हो। भारतीय जन-मानस का यह चीन विरोधी रुख उसकी आíथक कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए जिस जन जागरूकता की जरूरत है, उसका अभाव परिलक्षित हो रहा है। कोरोना के साथ साथ दुराग्रही विपक्ष की आलोचना और असहयोग से जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब यह जरूरी है कि वह चीन के उस दुष्प्रचार का कि यदि भारत चीन पर आक्रामक हुआ तो उसे पाकिस्तान और नेपाली सेनाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जबाव देते हुए सीमा पर चीन के समक्ष अपनी सैन्य आक्रामकता को बनाए रखे। चूंकि भारतीय सैनिकों ने पहली झड़प में ही चीनी सेना को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, इसलिए अब चीन के समक्ष भारत का रक्षात्मक मुद्रा में रहना कतई उचित नहीं होगा। भारत को चीन के हर दुस्साहस का कड़ाई से प्रतिकार करना चाहिए।
सन्निकट है चीन की पराजय‘ध्वस्त करने होंगे
वर्तमान चीन में हिटलर की आत्मा प्रवेश कर गई है। हिटलर ने पहले ऑस्टिया को निगला। फिर चेकोस्लोवाकिया को कुतरा। जब दो बार अपने साम्राज्यवादी मंसूबों में सफल रहा तो फिर उसने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। यदि पहले ही उसे यूरोपीय देश और अमेरिका सख्त लहजे में समझा देते तो उसे दूसरे विश्वयुद्ध को प्रारंभ करने वाली घटना-पोलैंड पर हमला-करने का दुस्साहस ही न होता। कम्युनिस्ट चीन ने पहले मंचूरिया को हड़पा, फिर इनर मंगोलिया और पूर्वी तुकस्तान पर कब्जा किया। दुनिया चुप रही तभी वह तिब्बत को कब्जाने का दुस्साहस कर सका। यहां तक भी उसकी मनमानी को कोई चुनौती नहीं मिली। तब उसने हिंदुस्तान पर अपनी आंखें गढ़ाईं। भारत को खुद की सुरक्षा में अक्षम पाकर उसकी बांछें खिल गईं। उसने लद्दाख की 37,000 वर्ग किमी भूमि हड़प ली। ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए शर्मनाक 1950 का दौर चीन के लिए अत्यंत उत्साहवर्धक रहा। उसकी खुमारी उस पर अभी तक चढ़ी हुई है। 1962 की जीत के नशे में वह इतराता रहता है। यहां तक कि 1967 में सिक्किम में भारतीय सेना से भिडंत में उसकी जो नाक लहूलुहान हुई, उसे उसने भुला दिया है। 1969 में सोवियत रूस ने मंचूरियन सीमा पर चीन को परास्त किया, 1979 में वियतनाम ने उसके 20,000 हजार सैनिकों का खात्मा कर उसे शर्मनाक पराजय दी। उसके बाद कंबोडिया जैसे छोटे देश में भी चीन ने अपना नाम डुबोया। ये चीनी पराभव एवं अपयश के चिन्ह पिछले पचासवर्षो में दुनिया के सम्मुख उभरे हैं। गलवन की घटना में भी हमारी सेना उससे श्रेष्ठ साबित हुई है। अब अगर व्यापार के मोर्चे पर उसे शिकस्त दे दी गई तो चीन की सारी अकड़ झड़ जाएगी। कैट (भारतीय व्यापारियों का सर्वोच्च संगठन) यह इरादा बना चुका है कि दिसंबर तक 15 अरब डॉलर (एक लाख करोड़ रुपये) के बराबर चीनी माल के ऑर्डर वे रद्द करेंगे। यह एक बड़ी चपत चीन को लगने जा रही है। जनता भी चीनी मोबाइल एप जैसे टिकटोक, जूम को नकार रही है। प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भरता का आह्वान तथा ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का विचार लोगों को भा रहा है। उधर सीमा पर सड़कों का तेज निर्माण एवं विश्व के बेहतरीन शस्त्रों की खरीद अथवा उत्पादन चीन को सबक सिखाने की तैयारी दर्शा रहे हैं। अब चीन की निर्णायक पराजय साफ दिखने लगी है।
चीन का जवाब देना जरूरी
देश की आजादी के कुछ ही वर्षो बाद चीन ने अपनी हरकतों से बता दिया कि उसके साथ संबंध तो रहेंगे लेकिन विश्वास नहीं। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया के विशाल दो देशों के बीच मधुर संबंध विकसित करने की योजना बनाई थी। इसके लिए नारा भी दिया। चीन ने बहुत जल्द 1962 में झटका दिया। उसके बाद से तो स्थितियां बदल ही गईं। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर देश की नीतियां बहुत ज्यादा ढुलमुल रही हैं। आज देश में चीन के सामानों का जबर्दस्त फैलाव है। इसके चलते देसी उत्पादन प्रभावित हुआ। कई कंपनियां खत्म हो गईं। उत्पादन खर्च कम करके वस्तुओं के दामों में कमी करने के फामरूले के साथ चीनी उत्पाद ने भारतीयों के बीच अपनी पैठ बनाई। अब इसे तोड़ने का समय आ गया है।
चीन की दादागिरी
चीन सीमा पर स्थित गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन भी मित्र नहीं अपितु पीठ पीछे छूरा घोंपने वाला कायर देश ही है। अब वक्त बदल चुका है और सहन करने की सीमा भी पार हो चुकी है। सरकार को भी चीन नीति बदलनी होगी, जिसके तहत हंदूी-चीनी, भाई-भाई का नारा बुलंद किया जाता रहा है। हमारा देश काफी समय से चीनी उत्पादों का आयात कर चीनी अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करता रहा है। इसको भी बिल्कुल ही बंद करना होगा। आर्थिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर चीन के खिलाफ हमला ही हमारे वीर जवानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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