सरकार ने टिकटॉक समेत चीन के 59 एप को बैन तो कर दिया है, लेकिन इस कारण सरकारी कर्मचारियों का टाइम पास नहीं हो रहा है। असल में ये कर्मचारी इन दिनों काम के दौरान अपने खाली समय में टाइम पास के लिए चीनी एप का खूब इस्तेमाल कर रहे थे। अब इन कर्मचारियों ने सरकारी दायित्व समझते हुए अपने-अपने मोबाइल फोन से टिकटॉक और हेलो जैसे चीनी एप को हटा तो दिया है, लेकिन इनके दिल में इस बात की कसक जरूर रह गई है कि अब उन्हें टिकटॉक का मजा नहीं मिल पाएगा। चीनी एप की जगह कई भारतीय एप आ तो गए हैं, लेकिन पिछले कई सालों से चीनी एप के अभ्यस्त इन कर्मचारियों को शायद उनके देसी अवतारों की कोई जानकारी नहीं। उनकी जानकारी के बाद शायद उनका गम कुछ कम हो सके।
शनिवार, 4 जुलाई 2020
सियासी बंगला
मौजूदा दौर में सियासतदां ज्यादा से ज्यादा कीचड़ उछालकर एक दूसरे की
सफेदी को गंदा करने का मौका नहीं चूकते। मगर इस दौर में भी कुछ ऐसे नाम भी
हैं जिनका जिक्र आते ही ऐसी सियासत थम जाती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका
गांधी वाड्रा के बंगले का आवंटन रद करने के सरकार के फैसले पर छिड़ी सियासी
जंग के बीच ऐसा ही एक वाकया देखने को मिला। इसे गांधी परिवार के खिलाफ
राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने अपने
आधिकारिक बयान में भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर
जोशी के बंगले पर सवाल उठाने की तैयारी कर ली। मगर बताया जाता है कि बयान
के इस मजमून में आडवाणी का नाम देखकर कांग्रेस नेतृत्व ने इसे आधिकारिक
बयान में शामिल करने की इजाजत नहीं दी। दरअसल वैचारिक दूरी के बावजूद बीते
कुछ वर्षो में सोनिया गांधी और आडवाणी के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। अपनी
आत्मकथा सोनिया को भेंट करने के लिए कुछ साल पूर्व आडवाणी दस जनपथ भी गए
थे। राजनीतिक गलियारों और संसद में रूबरू होने के दौरान राहुल गांधी भी
आडवाणी को पूरा सम्मान देते हैं। इसीलिए बंगले की सियासत में हाइकमान ने ही
आडवाणी का नाम नहीं लेने की ताकीद कर दी। फिर स्वाभाविक रूप से जोशी का
जिक्र भी नहीं किया गया। इसलिए यह कहना गैरमुनासिब नहीं कि कुछ चेहरों के
आगे सियासत भी लिहाज करती है।
बुधवार, 24 जून 2020
सफाई न होने से गलियों में जलजमाव
मानसून से पहले नगर पालिका परिषद प्रशासन की तैयारियां अधूरी हैं। शहर में नाले-नालियों की हालत देख कर इसका अंदाजा साफ तौर पर लगाया जा सकता है कि मानसून पूर्व तैयारियों को लेकर प्रशासन संजीदगी नहीं बरत रहा। इससे आने वाले दिनों में जनता की मुश्किलें और बढ़ेंगी। फिलहाल अधिकांश नालियां गंदगी से पटी पड़ी हैं। बजबजाती नालियों की दुर्गंध से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। वहीं कटहल नाले में भी जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा है और पानी जाम हो गया है। अगर समय रहते प्रशासन नहीं जागता है तो लोगों को जलनिकासी की समस्या से सामना करना पड़ेगा।- बच्चू जी, स्टेशन रोड, बलिया।परीक्षाफल से बच्चों का आकलन न करें27 जून को माध्यमिक शिक्षा परिषद के वर्ष 2020 के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणाम की बाबत विद्यार्थियों के प्रति स्थायी विचार न बनाएं क्योंकि इस वर्ष आने वाला परीक्षाफल कई सारी बाधाएं और विसंगतियों के बाद आ रहा है। कोरोनाकाल में बोर्ड परीक्षा के उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन में आने वाली रुकावटों के बाद यह रिजल्ट आ रहा है। यूपी बोर्ड ने बच्चों के हितों को ध्यान में रखकर उन्हें आगामी कक्षा की तैयारी के लिए निर्णायक समय में उन्हें परीक्षाफल दे रहा है। जिससे हो सकता है कि इस आपाधापी में कापियों का सही आकलन और मूल्यांकन नहीं हो पाया हो। परीक्षाफल से बच्चों का आकलन नहीं करना चाहिए।
लोकतंत्र की हत्याए.
आज के ही दिन 25 जून, 1975 को भारत के महान लोकतंत्र की हत्या हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता के लिए देश के लोकतंत्र का गला घोंटने में संकोच नहीं किया था। देश ने लगातार 21 महीने तक इंदिरा शासन की तानाशाही को बर्दाश्त किया था। संजय गांधी और उनके सलाहकार आरके धवन की चौकड़ी ने कैबिनेट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को धता बताकर देश के शासन का संचालन सूत्र अपने हाथों में ले लिया था। एक अनजाने भय के वशीभूत होकर इंदिरा सरकार ने संघ के सभी आयु वर्ग के स्वयं सेवकों के साथ जो क्रूरतम व्यवहार किया, उसको विस्मृत नहीं किया जा सकता। यह अत्याचार कांग्रेस के लिए इतना घातक सिद्ध हुआ कि 1977 के आम चुनाव में देश की आम जनता ने इंदिरा गांधी को सत्ताच्युत कर दिया। यद्यपि विपक्षी दलों के घालमेल से बनी जनता दल सरकार भी बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह पाई। जिसके परिणामस्वरूप अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने सब कुछ भुलाकर इंदिरा गांधी के हाथों में फिर से देश की बागडोर सौंप दी। राजनीति में इस तरह का विस्मरण संभव है, लेकिन सामान्य जन-जीवन में आपातकाल के काले अध्याय को भुला पाना संभव नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह किसी सबक से कम नहीं है।
बारिश ने खोली पोल
दो दिन की बारिश ने नगर पालिका के सफाई व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। शुरुआती बारिश के बाद नगर के गली-मोहल्ले की नालियां चोक हो गई हैं। इससे नगर पालिका की तरफ से कराए गए गुणवत्ता के कार्यों का पता लग रहा है। नगरवासी जाम नालियों से परेशान हैं। साफ-सफाई ठीक ढंग से होती तो इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़ता। बरसात से पहले नगर पालिका को युद्ध स्तर पर सफाई अभियान चलाना चाहिए, जिससे इस समस्या से निजात मिल सके।
मनरेगा की जांच हो, खुलेगा राज
मनरेगा को लेकर जनपद में हर जगह चर्चा है। हालात तो यह है कि इसमें धन का बंदरबांट इस तरीके से किया जा रहा है जिसमें किसी को पकड़ना मुश्किल हो रहा है यानी नीचे से लेकर ऊपर तक लोग जुड़े हुए हैं। अगर इसकी पारदर्शी ढंग से जांच हो तो बड़ा खुलासा होगा। कई जगहों पर तो बिना काम कराये पैसा निकाल लिया गया है। श्रमिकों को नौकरी देने के नाम पर जमकर सरकारी धन से अपनी जेबें भरीं जा रही हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है जगह-जगह आंदोलन भी शुरू हो। यही हालात टंका के मामले में भी है। इसे लेकर भी लोगों में आक्रोश उभरने लगा है। इस मामले में शासन स्तर से जांच कराने की जरूरत है।
बच्चों को दें अच्छे संस्कार
अभिभावक बच्चों पर उम्मीदों का बोझ लाद देते हैं जबकि बच्चों को अपने सपने पूरे करने देना चाहिए। अब बच्चों को लेकर माता-पिता में संजीदगी कम होती जा रही है। आजकल के व्यस्तता भरे जीवन में हर व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में लोग बच्चों पर भी उचित ध्यान नहीं दे पाते। उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करते हैं। इससे उनमें संस्कार कम होते जा रहे हैं। जिन बच्चों को उम्मीद से ज्यादा आजादी दी जाती है, वे अक्सर परिजनों के साथ-साथ समाज को भी शर्मसार कर देते हैं। आज बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी के पास बैठना पसंद नहीं करते हैं जबकि बड़े-बुजुर्गों से ही बच्चों को संस्कार प्राप्त होते हैं। सभी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि समाज में नाम रोशन कर सकें।
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