शनिवार, 19 सितंबर 2015

अवैध वसूली करेंगे तो कैसे होगा क्राइम कंट्रोल!


क्राइम कंट्रोल कैसे हो रहा है इसका नजारा जिले के कुछ थानों पर जाकर देखने पर दिख सकता है। शिकायत मिली और पहुंच गये आरोपी के घर और फिर शुरु हो गया अवैध वसूली का अभियान। जब तक इसमें सफलता नही मिलती है तब तक पीड़ित और आरोपी को कानून का भय दिखाया जाता है। जब मिशन अवैध वसूली पूरी हो जाती है तो इसे पुलिसियां भाषा में क्राइम कंट्रोल कहा जाने लगता है। अब आप ही बतायें कि पुलिस अवैध वसूली करेगी तो क्राइम कंट्रोल कैसे होगा। शासन के लाख कवायद के बाद भी पुलिसियां कार्यप्रणाली में कोई सुधार नही है। लगातार हालत बद से बदत्तर होती जा रही है। पीड़ित परेशान होता जा रहा है और अपराधियों का मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है। एक के बाद एक अपराध कर अपराधी यह सोच रहे है कि पुलिस को खर्चा पानी देकर मामला शान्त कर देंगे और कुछ मामलों में ऐसा हो भी रहा है। पीड़ित थानों का चक्कर लगाते-लगाते थक जा रहे है लेकिन उनकी कोई सुनवायी नही हो रही है। जब थानों पर इस तरह का खेल होगा तब पीड़ित कहां जायेंगो। पुलिस उच्चाधिकारियों को इस ओर ठोस कदम उठाना पड़ेगा तभी पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा।

वारदात होने के बाद ही क्यों जागती है पुलिस!



प्रदेश मे जिस तरह अपराध बढ़ रहे है उसमें कोई शक नही है कि पुलिस अपनी ड्यूटी बढ़िया तरीके से नही निभा पा रही है। आये दिन संगीन वारदातें होती ही रहती है और पुलिस तमाशबीन बनी रहती है। वारदात हो जाने के बाद आनन फानन में यह दिखाया जाता है कि अपराधियों को छोड़ा नही जायेगा लेकिन जनता एक सवाल का जवाब जानना चाहती है कि वारदात के बाद ही पुलिस क्यों जागती है! दिनोंदिन अपराध बढ़ने से जनता तबाह है। अपराधियों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह दिन दहाड़े कोई संगीन वारदात करने से नही चूकते है। अपराधों का ग्राफ दिनोदिन बढ़ रहा है। पुलिस की कार्यप्रणाली ही इस सबके लिए जिम्मेदार है। लूट, हत्या, बलात्कार, डकैती जैसी वारदातें आम बात हो गयी है। वारदात होने के बाद पुलिस मुकदमा दर्ज कर मामले को शान्त करने मे जुट जाती है लेकिन वह अपराध को रोकने में कैसे विफल रहती है इसका जवाब उनका अफसर भी नही जानना चाहता है। ऐसे में सवाल यह है कि अपराध कैसे रुके। खास बात यह है कि वही अपराधी ज्यादा अपराध कर रहे है जो पहले अपराध कर चुके है ऐसे में उनका मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह पुलिस को कुछ समझ नही रहे है। पुलिस को एक बेहत्तर कार्यप्रणाली बनानी होगी जिससे उसे पहले ही मालूम हो जाय कि कहां अपराध होने वाला है और वह वहां पहुंच कर अपराध रोक सकें और अपराध करने का प्रयास करने वालों के खिलाफ कार्यवाही कर सके।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

मरीज को पर्चा थमाते हैं चिकित्सक


जिला अस्पताल में ऐसा भी होता हैं इसे सुनकर आप चौकिएगा मत। जी हां! जो मरीज चिकित्सक से चिकित्सकीय परामर्श लेता हैं उसको एक और मुफ्त सलाह दी जाती हैं उसे एक पर्चा दे दिया जाता हैं और कहा जाता हैं कि उक्त सेन्टर या क्लिनिक से ही जांच कराइये क्योंकि वहां जांच सही होती हैं। अस्पताल के कुछ चिकित्सकों का ऐसे दुकानदारों से कमीशन बंधा हैं और इसी लाभ के चक्कर में वह मरीजों को वहां भेजते हैं। कुल मिलाकर इससे मरीज का नुकसान होता हैं। कुछ जांच अस्पताल में भी होती हैं इन जांच से सम्बन्धी मरीजों को भी बाहर भेज दिया जाता हैं।

सुविधा तो दूर जानकारी भी नही मिलती


जिला अस्पताल में पहली बार आये नये मरीजों के परिजनों को काफी सांसत का सामना करना पड़ता है पहले तो उन्हें यह कोई बताने वाला नही होता है कि मरीज को दिखाने के लिए पर्चा कहां कटेगा, कैसे मरीज भर्ती होगा इस तरह की तमाम जानकारियां परिजन को देने वाला कोई नही होता है। उल्टे परिजन जब यह जानकारियां लेने के लिए कर्मचारियों से पूछते है तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। जिला अस्पताल में रात में आये नये मरीजों के परिजनों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रात में सभी भर्ती मरीजों के परिजन भी अस्पताल परिसर में इधर-उधर सो जाते है और कर्मचारी ड्यूटी बजाते इधर- उधर ही रहते है ड्यूटी रुम में कोई अप्रशिक्षित नर्स बैठी होती है चिकित्सक अपने रुम में विश्राम करती है। ऐसा अक्सर होता है अस्पताल परिसर में जो गार्ड तैनात रहते है उनको भी इतना नही मालूम रहता है कि वह परिजन को कुछ ज्यादा बता सके और अन्दर जाकर पूछने की सलाह देते है। ऐसे में यदि रात में कोई सिरियस मरीज लाया गया तो वह अस्पताल के चक्कर ही लगाते रह जायेंगे और किसी भी अप्रिय घटना के शिकार हो जायेंगे। ऐसा कई बार हुआ भी है लेकिन सरकारी रिकार्डों में इसका जिक्र नही है क्योंकि मरीज की जान जाने के बाद उसको अस्पताल परिसर से भगा दिया जाता है। यदि कोई मरीज ठीक-ठाक स्थिति में लाया गया और वह ड्यूटी रुम में किसी तरह पहुंच जाता है और मरीज की स्थिति बता कर मरीज को भर्ती करने के लिए कहता है तो अप्रशिक्षित नर्स या वहां बैठा कोई कर्मचारी वहां से हिलने का प्रयास नही करता है यदि शोर शराबा शुरु हो जाता है तो कर्मचारी कहता है कि हमें क्यों परेशान कर रहे हो चिकित्सक साहब इतनी रात में नही आयेगी उन्होंने जगाने से मना कर रखा है और मरीज को एक दो सुईं लगाकर सुबह तक इंतजार करने के लिए कह दिया जाता है।

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

थानों पर नहीं दर्ज होते हैं मुकदमें


जिले के अधिकांश थानों पर मुकदमें ही नहीं दर्ज होते हैं। पीड़ितों को भगा दिया जाता है। बदमाशों, अपराधियों को छोड़ दिया जाता हैं। ऐसे में क्राइम कंट्रोल कैसे होगा। पुलिस की कार्यप्रणाली किसी से छुपी नहीं है। रोजाना कोई न कोई मामला प्रकाश में आता हैं कि पीड़ित की रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। अगले दिन कोई न कोई वारदात पीड़ित के साथ हो जाता हैं। इसके बाद ही पुलिस जागती है। बताया जाता हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं जिसमें पुलिस उच्चाधिकारियों का यह फरमान भी हैं कि कम से कम मुकदमें दर्ज किये जाए जिससे अपराध कम दिखाये जा सके। बाहुबली या धनबली के खिलाफ मुकदमें नही दर्ज किये जाते हैं क्योंकि उनकी ऊंची पहुंच और जुगाड़ पुलिस के नाक में दम किये रहते है। ऐसे में दिनोदिन अपराध बढ़ ही रहे है। अपराध को कम करने के पुलिस उच्चाधिकारियों के सारे प्रयास धरे के धरे रह जा रहे हैं क्योंकि पुलिसियां कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं हो रहा हैं।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...