शनिवार, 19 सितंबर 2015

अवैध वसूली करेंगे तो कैसे होगा क्राइम कंट्रोल!


क्राइम कंट्रोल कैसे हो रहा है इसका नजारा जिले के कुछ थानों पर जाकर देखने पर दिख सकता है। शिकायत मिली और पहुंच गये आरोपी के घर और फिर शुरु हो गया अवैध वसूली का अभियान। जब तक इसमें सफलता नही मिलती है तब तक पीड़ित और आरोपी को कानून का भय दिखाया जाता है। जब मिशन अवैध वसूली पूरी हो जाती है तो इसे पुलिसियां भाषा में क्राइम कंट्रोल कहा जाने लगता है। अब आप ही बतायें कि पुलिस अवैध वसूली करेगी तो क्राइम कंट्रोल कैसे होगा। शासन के लाख कवायद के बाद भी पुलिसियां कार्यप्रणाली में कोई सुधार नही है। लगातार हालत बद से बदत्तर होती जा रही है। पीड़ित परेशान होता जा रहा है और अपराधियों का मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है। एक के बाद एक अपराध कर अपराधी यह सोच रहे है कि पुलिस को खर्चा पानी देकर मामला शान्त कर देंगे और कुछ मामलों में ऐसा हो भी रहा है। पीड़ित थानों का चक्कर लगाते-लगाते थक जा रहे है लेकिन उनकी कोई सुनवायी नही हो रही है। जब थानों पर इस तरह का खेल होगा तब पीड़ित कहां जायेंगो। पुलिस उच्चाधिकारियों को इस ओर ठोस कदम उठाना पड़ेगा तभी पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा।

वारदात होने के बाद ही क्यों जागती है पुलिस!



प्रदेश मे जिस तरह अपराध बढ़ रहे है उसमें कोई शक नही है कि पुलिस अपनी ड्यूटी बढ़िया तरीके से नही निभा पा रही है। आये दिन संगीन वारदातें होती ही रहती है और पुलिस तमाशबीन बनी रहती है। वारदात हो जाने के बाद आनन फानन में यह दिखाया जाता है कि अपराधियों को छोड़ा नही जायेगा लेकिन जनता एक सवाल का जवाब जानना चाहती है कि वारदात के बाद ही पुलिस क्यों जागती है! दिनोंदिन अपराध बढ़ने से जनता तबाह है। अपराधियों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह दिन दहाड़े कोई संगीन वारदात करने से नही चूकते है। अपराधों का ग्राफ दिनोदिन बढ़ रहा है। पुलिस की कार्यप्रणाली ही इस सबके लिए जिम्मेदार है। लूट, हत्या, बलात्कार, डकैती जैसी वारदातें आम बात हो गयी है। वारदात होने के बाद पुलिस मुकदमा दर्ज कर मामले को शान्त करने मे जुट जाती है लेकिन वह अपराध को रोकने में कैसे विफल रहती है इसका जवाब उनका अफसर भी नही जानना चाहता है। ऐसे में सवाल यह है कि अपराध कैसे रुके। खास बात यह है कि वही अपराधी ज्यादा अपराध कर रहे है जो पहले अपराध कर चुके है ऐसे में उनका मनोबल इतना बढ़ गया है कि वह पुलिस को कुछ समझ नही रहे है। पुलिस को एक बेहत्तर कार्यप्रणाली बनानी होगी जिससे उसे पहले ही मालूम हो जाय कि कहां अपराध होने वाला है और वह वहां पहुंच कर अपराध रोक सकें और अपराध करने का प्रयास करने वालों के खिलाफ कार्यवाही कर सके।

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

मरीज को पर्चा थमाते हैं चिकित्सक


जिला अस्पताल में ऐसा भी होता हैं इसे सुनकर आप चौकिएगा मत। जी हां! जो मरीज चिकित्सक से चिकित्सकीय परामर्श लेता हैं उसको एक और मुफ्त सलाह दी जाती हैं उसे एक पर्चा दे दिया जाता हैं और कहा जाता हैं कि उक्त सेन्टर या क्लिनिक से ही जांच कराइये क्योंकि वहां जांच सही होती हैं। अस्पताल के कुछ चिकित्सकों का ऐसे दुकानदारों से कमीशन बंधा हैं और इसी लाभ के चक्कर में वह मरीजों को वहां भेजते हैं। कुल मिलाकर इससे मरीज का नुकसान होता हैं। कुछ जांच अस्पताल में भी होती हैं इन जांच से सम्बन्धी मरीजों को भी बाहर भेज दिया जाता हैं।

सुविधा तो दूर जानकारी भी नही मिलती


जिला अस्पताल में पहली बार आये नये मरीजों के परिजनों को काफी सांसत का सामना करना पड़ता है पहले तो उन्हें यह कोई बताने वाला नही होता है कि मरीज को दिखाने के लिए पर्चा कहां कटेगा, कैसे मरीज भर्ती होगा इस तरह की तमाम जानकारियां परिजन को देने वाला कोई नही होता है। उल्टे परिजन जब यह जानकारियां लेने के लिए कर्मचारियों से पूछते है तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। जिला अस्पताल में रात में आये नये मरीजों के परिजनों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रात में सभी भर्ती मरीजों के परिजन भी अस्पताल परिसर में इधर-उधर सो जाते है और कर्मचारी ड्यूटी बजाते इधर- उधर ही रहते है ड्यूटी रुम में कोई अप्रशिक्षित नर्स बैठी होती है चिकित्सक अपने रुम में विश्राम करती है। ऐसा अक्सर होता है अस्पताल परिसर में जो गार्ड तैनात रहते है उनको भी इतना नही मालूम रहता है कि वह परिजन को कुछ ज्यादा बता सके और अन्दर जाकर पूछने की सलाह देते है। ऐसे में यदि रात में कोई सिरियस मरीज लाया गया तो वह अस्पताल के चक्कर ही लगाते रह जायेंगे और किसी भी अप्रिय घटना के शिकार हो जायेंगे। ऐसा कई बार हुआ भी है लेकिन सरकारी रिकार्डों में इसका जिक्र नही है क्योंकि मरीज की जान जाने के बाद उसको अस्पताल परिसर से भगा दिया जाता है। यदि कोई मरीज ठीक-ठाक स्थिति में लाया गया और वह ड्यूटी रुम में किसी तरह पहुंच जाता है और मरीज की स्थिति बता कर मरीज को भर्ती करने के लिए कहता है तो अप्रशिक्षित नर्स या वहां बैठा कोई कर्मचारी वहां से हिलने का प्रयास नही करता है यदि शोर शराबा शुरु हो जाता है तो कर्मचारी कहता है कि हमें क्यों परेशान कर रहे हो चिकित्सक साहब इतनी रात में नही आयेगी उन्होंने जगाने से मना कर रखा है और मरीज को एक दो सुईं लगाकर सुबह तक इंतजार करने के लिए कह दिया जाता है।

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

थानों पर नहीं दर्ज होते हैं मुकदमें


जिले के अधिकांश थानों पर मुकदमें ही नहीं दर्ज होते हैं। पीड़ितों को भगा दिया जाता है। बदमाशों, अपराधियों को छोड़ दिया जाता हैं। ऐसे में क्राइम कंट्रोल कैसे होगा। पुलिस की कार्यप्रणाली किसी से छुपी नहीं है। रोजाना कोई न कोई मामला प्रकाश में आता हैं कि पीड़ित की रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। अगले दिन कोई न कोई वारदात पीड़ित के साथ हो जाता हैं। इसके बाद ही पुलिस जागती है। बताया जाता हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं जिसमें पुलिस उच्चाधिकारियों का यह फरमान भी हैं कि कम से कम मुकदमें दर्ज किये जाए जिससे अपराध कम दिखाये जा सके। बाहुबली या धनबली के खिलाफ मुकदमें नही दर्ज किये जाते हैं क्योंकि उनकी ऊंची पहुंच और जुगाड़ पुलिस के नाक में दम किये रहते है। ऐसे में दिनोदिन अपराध बढ़ ही रहे है। अपराध को कम करने के पुलिस उच्चाधिकारियों के सारे प्रयास धरे के धरे रह जा रहे हैं क्योंकि पुलिसियां कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं हो रहा हैं।

अपराधी मस्त, जनता त्रस्त, पुलिस पस्त


जिले में अपराध का ग्राफ दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। हत्या, लूट की घटनाएं आम हो गयी है। लगातार हालात बिगड़ते जा रहे है। पुलिस हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। प्रदेश सरकार क्राइम कंटोल के लिए पुलिस अधिकारियों को लगातार हिदायत दे रही है कि बदमाश, अपराधी सलाखों के पीछे होने चाहिए वरना खैर नही है। प्रदेश सरकार क्राइम कंटोल करने के लिए मीटिंग पर माटिंग ले रही है लेकिन अभी तक नतीजा सिफर है। कागजों में क्राइम काफी कम है लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत ही दास्तान बयां कर रही है। अपराधी क्राइम कर फरार हो जा रहे है और पुलिस महकमा कुछ नही कर पा रही है। खाकी का खौफ खत्म होता जा रहा है। सफेदपोश अपने आप को सुरक्षित समझने लगे है। अपराधियों का हौसला बुलंद होता जा रहा है। यदि पुलिस अभी भी नही चेती तो बाद में कहीं बहुत देर न हो जाय।

तो क्या ऐसे करेगी पुलिस गुडवर्क


अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गये। निजाम में कई सरकारें आई गई, लेकिन आज भी पुलिस विभाग वहीं के वहीं रुका रह गया। आज भी लगभग कई वर्ष पीछे का इतिहास आधुनिक युग में अलापा जा रहा हैं। इस आधुनिक युग में अपराधी अत्याधुनिक युक्त गाड़ियां लेकर सड़क पर फर्राटे भर रहे हैं लेकिन सरकार निजाम की पुलिस को महज साधारण और सस्ती किराये की वाहन से इन्हें पछाड़ना चाहती है, आखिर कैसे निजाम की पुलिस गुडवर्क कर पायेगी।

दलाली का चोखा धंधा हावी है


जिले में दलाली का चोखा धंधा चल रहा हैं। तहसील, थाना में मिडिया कवरेज के बहाने पैसा ऐठती हैं। तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना मिडिया की फिदरत हैं। जिले के अफसरों के ईद-गिर्द घूमकर दलाली कर मोटी कमायी हो रही हैं।

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

कागजों में बन रही गुणवत्तायुक्त सड़कें



सोनभद्र जिले में शासन के निर्देशों का किस तरह से क्रियान्वयन हो रहा हैं यह अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी जान रहे हैं। शासन को भेजी जाने वाली रिपोर्टों की जांच करा दी जाय तो विभाग के आंकड़ों की पोल खुल जायेगी। विभागीय सूत्र बताते हैं कि यह सभी जानते हैं कि किसका कितना कमीशन हैं और इसे दिये बिना फाइल खिसकती नहीं हैं। फिर भी शासन के डंडे से बचने के लिए ऐसी रिपोर्ट बनायी जाती हैं जिसमें न के बराबर गड़बड़ी होती हैं। इससे दो फायदा होता हैं एक तो ठेकेदारों से फायदा होता हैं और दूसरी तरफ शासन के दिशा निर्देशों का पालन हो जाता हैं। लेकिन सवाल यह उठता हैं क्या लोगों को टूटी फूटी सड़कों से गुजरना ही पड़ेगा। इसका जवाब फिलहाल विभाग का कोई भी अफसर देने को तैयार नहीं हैं।

सोमवार, 3 अगस्त 2015

देश के गरीबी बनाम सरकार का नैतिक दिवालियापन


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भारत में 2011 से 2012 के बीच में 8.49 करोड़ लोग गरीब नहीं रहे. वे उस रेखा के ऊपर आ गए हैं जिसमे लोग उलझे रहते हैं पर वह सरकारों को दिखाई नहीं देती. अब तक यह कहा जाता रहा है कि देश की बड़ी आबादी निरक्षर है, परन्तु भारत का योजना आयोग मानता है कि देश की आबादी गंवार और बेवक़ूफ़ है. इसे गुलामी की आदत है, इसलिए इस पर शासन किया जाना चाहिए. वह मानता है कि गरीबी को वास्तविक रूप में कम करने की जरूरत नहीं है, कुछ अर्थ शास्त्रियों ने आंकड़ों को बाज़ार की भट्टी में गला कर एक नया हथियार बनाया है, जिसे वे गरीबी का आंकलन (ESTIMATION OF POVERTY) कहते हैं. उन्होंने यह तय किया है कि सच में तो लोग गरीबी से बाहर नहीं निकलना चाहिए परन्तु दिखना चाहिए कि गरीबी कम हो रही है. तो वे बस एक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले खर्चे को इतना तंग करते चले जा रहे हैं कि भारतीय नागरिक का गला दबता जाए.

सोमवार, 27 जुलाई 2015

मेरे चहेते राष्ट्रपति जो भारत के मिसाइल मैंन थे की म्रत्यु पर मुझे भी अपने मन के अन्दर अश्क गिरने की शिकायत हो गई ---------- न जाने क्यूँ


पूर्व राष्ट्रपति, मशहूर वैज्ञानिक एवम् भारत के मिसाइल मैन, भारत रत्न डॉ0 ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के निधन की सूचना पाकर अपार दुःख हुआ। सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए ये अपार क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। आप जैसे लोग इस धरती पर बार-बार जन्म लें।

शनिवार, 11 जुलाई 2015

विचारो के मंथन

विचारो के मंथन से माखन जैसे अभिव्यक्ति जन्म लेती है, पर भेड़चाल वाली स्वीकारिता जहर के समान होती है

शब्दों का जादूगर

शब्दों को क्या कहू, कमबख्त हर स्वाद उनके अन्दर है, जिसे उनकी जादूगरी आ गई वो शब्दों का जादूगर बन जाता है

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

सद्भावना और भावना

हम ऐसे देश मे रहते है, जहाँ भावना जल्द जागती है और देर से सोती है, पर सद्भावना देर से उठ कर जल्द सो जाती है  @SHAKTIANAND1

कामयाबी

कामयाबी किसी चिडिया का नाम नही, बल्कि वो तो एक शिकार है, जो अवसर पर प्रयास न करने पर दुर चली जाती है, और फ़िर तलाश करनी पड़ती है 

सोमवार, 29 जून 2015

यहां चलती है साहब की हुकूमत!

Shakti Anand Kanaujiya
यहां साहब की हुकूमत चलती है! नियम, शासनादेश सब बेईमानी है जो साहब ने कह दिया, वही होना है हम बात कर रहे है लोक निर्माण विभाग की। बड़े साहब का फरमान सर आंखो पर, जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है। कोई कर्मचारी नेता विरोध करता है तो उसे हिदायत दी जाती है कि ऐसी भूल न करो न तो पश्चाना पड़ेगा। कर्मचारियों की क्या मजाल है कि वह कुछ बोल पायें। विभागीय सूत्रों की मानें तो लोक निर्माण विभाग के बड़े साहब के आगे किसी की नही चलती है। जो विभागीय कार्य होते है वह अपनी इच्छा से करवाते है पता चला है कि साहब की शासन में काफी पकड़ है। सड़के निर्माण कराने का कार्य हो या कोई अन्य, हो ही नही सकता है उसमें गड़बड़ी न हो। एकाध काम छोड़ दिया जाय तो सब में गड़बड़ी है और बड़े पैमाने पर। यह बात तो कर्मचारी यूनियन भी जानते है लेकिन वह अपनी पेट पर लात क्यों मारेंगे क्योंकि साहब से कह कर कई काम कराते है कुछ नेता विरोध करते भी है तो वह हिदायत पा जाते है और उनके लिए इतना काफी है। बताया जाता है कि साहब बड़े-बड़े घोटाले किए है और उसे पचा भी गये है उनकी पचाने की क्षमता काफी है। किसी में जांच आ भी गयी तो कौन जांच करेगा। शासन में कुछ ले देकर वह मामला सब फिट कर देंगे। उनसे उलझने की हिम्मत कोई नही करता है। कुछ कर्मचारी भी इसी में हाथ सेक लेते है यदि कुछ चर्चित अधिकारी, कर्मचारी की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच करा दी जाय तो मामला आईने की तरह साफ हो जाएगा और सच जनता के सामने आ जायेगा। ऐसे में लोक निर्माण विभाग का भगवान ही मालिक है।http://shakti-anand.blogspot.com

बुधवार, 24 जून 2015

बोगस कार्डधारकों की भरमार



जी हां ! उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में बोगस कार्डधारकों की भरमार हैं। मजेदार बात यह है कि इसकी खबर शासन, प्रशासन को भी है लेकिन क्या करें इसमें तो उनसे भी चूक हुयी हैं। हुआ यूं कि पूर्ति विभाग ने ऐसे लोगों को भी कार्ड थमा दिया जो कि उसके हकदार नहीं थे नतीजा यह हुआ कि बोगस कार्डधारकों की भरमार हो गयी। भेद खुलते-खुलते देर हो गयी और फिर सच्चाई सामने आयी लेकिन अब कोई कुछ नहीं कर सकता हैं। फिलहाल शासन, प्रशासन की यह कवायद पात्रों के लिए सुखद संकेत है। 

सोमवार, 22 जून 2015

रसोई गैस की हो रही कालाबाजारी


सोनभद्र जिले में कनेक्शनधारकों को रसोई गैस के लिए गैस एजेंसियों का कई दिनों तक चक्कर लगाना पड़ रहा हैं। इसके बाद भी उनको गैस नहीं मिल रहा हैं उनके पास जल्दी गैस पाने का एक ही रास्ता हैं वह यह हैं कि वह ब्लैक में ले ले। इसके आलावा उनके पास सिर्फ इंतजार करने का ही रास्ता हैं। कनेक्शनधारकों का कहना हैं कि गैस एजेंसियां रसोई गैस की कालाबाजारी कर रही हैं। जिसकी वजह से ही उनको गैस नहीं मिल रहा हैं। शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं हो रही हैं। उनका यह कहना हैं कि आखिर वह अपनी शिकायत कहां दर्ज करायें जिससे कि उनकी समस्या का निस्तारण हो सकें। http://shakti-anand.blogspot.com/

कोटेदार बेच रहे राशन

सरकार की लाख कवायद के बाद भी कार्डधारकों को राशन नहीं मिल रहा है। कोटेदार राशन को बाजार में बेच कर कार्डधारकों का हक मार रहे हैं साथ ही राशन बिकने से मिलने वाले पैसे का कुछ हिस्सा कर्मचारी को देकर उनका मुंह बंद कर दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पूर्ति विभाग के उच्चाधिकारियों को इस बारे में कुछ नही मालूम है लेकिन वह भी जांच के बहाने अपना हिस्सा लेते हैं। कार्डधारकों में राशन वितरित कराने के लिए विभाग के अधिकारी, कर्मचारी निरीक्षण करते हैं और सरकारी कागजों में निरीक्षण की खानापूर्ति कर कोटेदार को राशन बेचने का लाइसेंस दे देते हैं। यदि कोई साहब उनके इस कार्य में रोड़ा पहुंचाने का प्रयास करते हैं तो उनकी जेब भी गर्म कर उन्हें खामोश कर देते हैं। ऐसे में सवाल यह हैं कि कार्डधारकों को राशन कैसे मिलेगा।

रविवार, 21 जून 2015

फिर भी क्यों होती है भूख से मौतें!



अभी प्रदेश में ऐसे तमाम गांव हैं जहां गरीबों का राशन कार्ड नहीं बना हैं। इन गांवों में रहने वाले लोग इतने गरीब हैं कि दिनभर मजदूरी करके किसी तरह से अपना व अपने परिवार का पेट भर रहें है। राशन कार्ड बनाने के लिए वह पूर्ति विभाग का चक्कर लगाते रहते हैं लेकिन उनका राशन कार्ड नहीं बनता है। किसी दिन उनकी कमाई नहीं हुयी तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता हैं। दो-चार दिन के बाद वह भूख से दम तोड़ देते ह। मीडिया रिपोर्ट भूख से होने वाली मौतों की पुष्टि करती हैं लेकिन इसे प्रशासन मानने से इंकार कर देता हैं। गरीबों को राशन पहुंचाने की सरकार की तमाम नीतियों को अधिकारी, कर्मचारी नाकाम कर दे रहे हैं। हद तब हो जाती हैं जब उनके पास कोई गरीब आकर राशन कार्ड के लिए गिड़गिड़ाता हैं लेकिन वह कुछ फजूल सी बातें कह कर उन्हें भगा देते हैं। जिनकी पहुंच ऊपर तक होती हैं उनका राशन कार्ड आसानी से बन जाता हैं। सरकार अधिकारियों, कर्मचारियों की इस तरह की मनमानी पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही हैं। ऐसे में गरीबो की भूख से मौत होना लाजमी हैं। आज भी प्रदेश के कुछ गांव की तस्वीर बद से बदत्तर हैं लेकिन यहां कोई झांकने वाला नहीं है। सरकार को इस ओर ठोस कदम उठाना होगा। शासन, प्रशासन सभी को मिल कर भूख से हो रही मौतों के खिलाफ एक कार्य योजना बनानी होगी और उसका अनुपालन सख्ती से कराना होगा तभी भूख से होने वाली मौतों पर अंकुश लग सकेगा।

कागजों में हो रहा समग्र विकास



डा. अम्बेडकर ग्रामीण समग्र विकास योजना का मुख्य उददेश्य प्रदेश की ग्राम सभाओं का समग्र विकास करना हैं जिससे कि ग्राम सभाओं के सभी वर्गो के लोग विकास की मुख्य धारा से जुङ सकें तथा विकास का लाभ सभी को मिल सकें लेकिन अफसरों की कार्य प्रणाली से ऐसा नही लग रहा हैं कि यह योजना सफल हो पायेगी।

गुरुवार, 18 जून 2015

नहीं हो रहा योजनाओं का क्रियान्वयन



केन्द्र व प्रदेश सरकार गरीबों के हित में तमाम योजनाएं चला रही हैं लेकिन उन योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो रहा हैं। सरकार ने इन्दिरा आवास योजना, स्वच्छ पेयजल, रोजगार गारन्टी योजना, विकलांग पेंशन, पोलिया उन्मूलन सहित तमाम योजनाएं, जो सर्वसमाज के उत्थान और उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोङने में मील का पत्थर साबित होगा। अफसरों को चाहिए कि वह योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से करें।

मंगलवार, 16 जून 2015

योजना + लुट = अफसर



उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में केन्द्र व प्रदेश सरकार की जनहित की तमाम योजनाएं कागजों में चल रही हैं। जमीनी सच्चाई चौकाने वाली ही नहीं, डरावनी वाली भी हैं। वृध्दावस्था पेंशन, पारिवारिक लाभ योजना, विकलांग पेंशन, छात्रवृत्ति योजना, मातृ एवं शिशु कल्याण स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना तथा स्वास्थ्य योजना, गरीबों को आवासीय सुविधाएं, रोजगार सृजन आदि योजनाएं गरीब, पिछड़ो के जीवन में एक नया बदलाव ला सकती हैं। सरकार ने सभी वर्गों के हित को ध्यान में रखकर इन योजनाओं को बनाया लेकिन अफसरों की कार्यप्रणाली ने इन योजनाओं का लाभ पात्रों तक नहीं पहुंचने दिया। लूट, खसोट की व्यवस्था को अब ऊपरी मन से ही सही लेकिन अफसर अपनाने लगे हैं।

तो यूं होगा जन शिकायतों का निस्तारण


जन शिकायतों के निस्तारण के लिए शासन ने सख्त निर्देश दिया हैं वह यह हैं कि हर दशा में जन शिकायतों का निस्तारण किया जाय लेकिन इस निर्देश का पालन नहीं हो रहा हैं। सोनभद्र जिले में पीड़ित विभागों का चक्कर लगा लगा कर थक जा रहे हैं लेकिन उनकी समस्या का निस्तारण तो दूर उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं हैं। अधिकारियों के टेबुल पर शिकायतों का अम्बार लगा रहता हैं लेकिन वह अपने बचाव के लिए अपने मातहतों को शिकायतों के निस्तारण का निर्देश देकर अपना कोरम पूरा कर लेते हैं। उन्हें इससे कोई सारोकार नहीं हैं कि शिकायतों का निस्तारण हुआ कि नहीं।

रविवार, 7 जून 2015

नजराना चढ़ाओ काम कराओ!

सरकार की योजनाओं को दीमक की तरह उनके विभाग के अधिकांश कर्मचारी चाट रहे है। किसी भी योजना को ले लिया जाए तो उसका क्रियान्वयन सही तरीके से हो तो कोई पात्र इधर-उधर न  भटके लेकिन विभागों में बिना नजराना चढ़ाए कोई काम नही होता है। एक चपरासी भी फाइल खोजने का सुविधा शुल्क लेता है। सरकार की मंशा साफ है कि पात्रों को योजना का लाभ मिले लेकिन सवाल यह है कि योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे हो। जिनके जिम्मे सारा कार्य ही चलता है उन अधिकांश कर्मचारियों को भेंट लेने की लत लग गयी है और यह किसी ने नही कुछ लोगों ने लगायी है। अब लत लगी है तो सुधरेगी कैसे। शायद हम यही कह सकते हैं कि यह लत नही सुधरने वाली है क्योंकि साहब भी अच्छी तरह जानते है कि वर्कलोड अधिक है तो ऐसे काम कौन करेगा। साहब कर भी क्या सकते है उन्हें मालूम है कि अधिकांश कर्मचारी तो भेट लेते ही है किसको -किसको निलम्बित करेंगे और ज्यादा को निलम्बित कर देंगे तो काम कौन करेगा। मजबूरी है कि जांच बैठा देगे, डांट डपट देंगे इससे ज्यादा क्या करेंगे। घूस लेने वाले कर्मचारी को दंडित करने का कानून भी है लेकिन इस पचड़े में शरीफ क्यों पड़े। धीरे से कर्मचारी की जेब गर्म की और हो गया तुरन्त काम। आखिर झंझट कौन पाले। सवाल यह है कि ऐसे में योजनाओं का लाभ पात्रों को नही मिल पाता है और वह दर-दर भटकने को मजबूर हो जाते है। पात्रों का हक अपात्र ले लेते है। यह क्रम नीचे से ऊपर तक बंधा है किसको-किसको कहां रोकेंगे। जरुरत है ईमानदार अधिकारी, कर्मचारी की जो योजना का लाभ पात्रों तक पहुंचा सके लेकिन इन्हें ईमानदारी का पाठ कौन पढ़ाये। घूस लेते रंगेहाथ तमाम कर्मचारी पकड़े जाते है लेकिन लगता है घूस लेने की प्रथा ही चल पड़ी है। सरकार, जनता, अधिकारी और कर्मचारी सभी मिलकर ही इस घूस लेनी की प्रथा पर पूर्ण विराम लगा सकते है और योजना का लाभ पात्रों तक पहुंचा सकते है इसके लिए सभी को अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए क्योंकि सरकार जानती है कि कर्मचारी के इतने बड़े तबके के खिलाफ कार्रवाई करके भी काम बाधित रहेगाhttp://shakti-anand.blogspot.in/

हकीकत से दूर हैं सरकारी आंकड़े!



सोनभद्र में जनहित में चलायी जा रही तमाम योजनाओं का लाभ जनता तक नहीं पहुंच रहा है। आला अफसर इन योजनाओं को इस तरह क्रियान्वयित करते है जिससे जनता को योजना का लाभ मिले या न मिले। लेकिन उनकी जेबें गर्म हो जाय। मजेदार बात यह हैं कि इन योजनाओं को सरकारी आंकड़ों में दुरुस्त दिखाया जाता है। योजनाओं का लाभ जरुरत मंदों तक कितना पहुंच रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। रोजाना पात्र व्यक्ति विभाग का चक्कर लगा कर चले जाते हैं उनकी कहीं सुनवायी नहीं होती है। साहब से मिलने की बात ही दूर है कर्मचारी है उन्हें डांट कर भगा देते है। ऐसे में वह कहां जाय उन्हें समझ में नहीं आता है। वहीं साहब कागजों में योजनाओं का क्रियान्वयन बेहत्तर दिखाते हैं और आंकड़ों में भी कही कमी नहीं रखते है। सरकारी कागजो में सब कुछ दुरुस्त रहता है लेकिन जमीनी हकीकत तलाशी जाय तो बहुत गड़बड़झाला दिखायी देगा। ऐसे में सरकार को ही इस तरफ कोई ठोस कदम उठाना होगा।

शनिवार, 6 जून 2015

आज हथियारों से नहीं बल्कि विचारों की लड़ाई

आज हथियारों से नहीं बल्कि विचारों की लड़ाई का युग है और मैं वैचारिक स्तर के इस युद्ध में हारने की आदत नहीं रखना चाहता .........!!

सुना है मैगी मे थोडा रासायन बढ गया, इसलिए उस पर बैन लगेगा....

सुना है मैगी मे थोडा रासायन बढ गया, इसलिए उस पर बैन लगेगा....
Shakti Anand Kanaujiya
तम्बाकू, सिगरेट और शराब मे सरकार को, उम्र बढाने के कौन से विटामिन, प्रोटीन दिखे जिनके लाईसेन्स वो रोज जारी कर रही है...??

शुक्रवार, 29 मई 2015

विचार - 29 मई, 2015

अजीब सी कशमकश है जिंदगी में,
जितना दौडता हु, 
मंजिल और दूर चली जाती है,
शायद.....................................
संघर्ष जिंदगी के साथ ही ख़त्म होता है

देर से ही सही पर आ गया स्वदेशी पेमेंट गेटवे

देर से ही सही पर आ गया स्वदेशी पेमेंट गेटवे

वीसा और मास्टर कार्ड की तरह काम करने वाला रुपे कार्ड पहला देसी कार्ड है. इस व्यवस्था की शुरुआत के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास खुद का पेमेंट गेटवे है. क्या इसको वह बुलंदी मिल पायेगी जो वीसा और मास्टर कार्ड को प्राप्त है. स्वदेशी पेमेंट गेटवे होने से रुपये की लागत इंटरनेशनल कार्ड की तुलना में काफी कम है. इस कार्ड से होने वाले लेन-देन पर बैंकों को इंटरनेशनल कार्ड के मुकाबले 40 फीसदी कम अदायगी करनी होती है. और उपभोक्ता को भी कम शुल्क देना पड़ेगा.

भारत में भूखों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा


भारत में भूखों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा

भूखे लोगों की तादाद भारत में विश्व में सबसे ज़्यादा है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था के अनुसार भारत में 19.40 करोड़ भूखे लोग हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़, 1990 में भारत में भूखों की संख्या 21 करोड़ 10 लाख थी. रिपोर्ट में कहा गया है, “पूरी आबादी के मुक़ाबले भूखे लोगों की तादाद में कमी लाने की दिशा में भारत ने बहुत अच्छा काम किया है. उम्मीद की जाती है कि भारत में चल रहे सामाजिक कार्यक्रम ग़रीबी और भूख के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी रखेंगे.”

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...