सोमवार, 15 जून 2020

जानलेवा अकेलापन

फिल्म ‘छिछोरे' में एक पिता आत्महत्या करने की कोशिश करने वाले अपने बेटे को अवसाद से उबारते हुए कहते हैं, ‘अगर जिंदगी में सबसे अधिक कुछ जरूरी है, तो वह है, खुद की जिंदगी'। इस डायलॉग को कहने वाले रील लाइफ के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत खुद को असली जिंदगी के अवसाद से उबार न सके। आखिर क्यों? जब हमें काफी मेहनत के बाद सफलता मिलती है, तो हम उस सफलता के इतने दीवाने हो जाते हैं कि जरा-सी असफलता भी हमें अंदर से तोड़ देती है। इस तरह की असफलता हमें अवसाद की ओर ले जाती है। संयुक्त परिवार न होना हमारे अकेलेपन पर हावी हो जाता है, जिसके कारण हम इतने परेशान हो जाते हैं कि अपनी सबसे कीमती जिंदगी भी स्वयं समाप्त कर देते हैं। अवसाद में डूबे इंसान के लिए अकेलापन जानलेवा होता है। इस समय हमें सबसे अधिक अपनों की जरूरत होती है, जो हमारा ख्याल रख सके। अपने सहयोगी कर्मचारियों के होने के बावजूद प्यार और ख्याल रखने वाले अपनों की कमी ने शायद सुशांत सिंह राजपूत को हमसे दूर कर दिया।

गलत निर्णय का खमियाजा

दिल्ली में जिस तरह से कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़øती जा रही है‚ उससे तो यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हालात को संभालने में केंद्र और राज्य सरकार विफल रही है। केजरीवाल सरकार ने लॉकड़ाउन खोलने में जिस हल्केपन का परिचय दिया‚ उससे हालात तो बिगड़़ने ही थे। जब हालात बेकाबू होने को है तो केंद्र सरकार अपने स्तर पर दिल्ली में नियम–कायदे लगाएगी। यह समझदारी नहीं है। पहले से इस बात का होमवर्क किया जाना जरूरी था।

कार्यशैली में हो बदलाव

छोटे विवादों के बाद पीड़ित पक्ष थाने पर न्याय के लिए पहुंचते हैं तो थाने पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की रवैया भी बहुत अजीब है। समस्या के समाधान या मुकदमा दर्ज कराने के बजाए पीड़ित और विपक्षी को थाने पर बुलाया जाता है। विपक्षी की पैठ पुलिस में अच्छी होने पर उसको तवज्जो और पीड़ित को दबाव दिया जाता है। पुलिस आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के बजाए पंचायत करने में जुट जाती है। लाचार पीड़ित पुलिस के खौफ से दबाव में आकर बगैर समाधान के सुलह पर सहमत हो जाता है। जिससे पीड़ितों को थाने स्तर से बहुत ही कम न्याय मिल पाता है। जिसकी वजह से आपराधिक घटनाएं अधिक हो रही हैं। पुलिस की लापरवाही से पीड़ितों को नुकसानी भी उठानी पड़ रही है। ऐसे में थाने पर पुलिस की कार्यशैली में बदलाव समय की मांग है। जिससे निरीह पीड़ितों को न्याय मिल सके।

भारत और नेपाल संबंधों को मजबूत बनाएं

भारत और नेपाल मैत्री संबंध इतने गहरे थे कि दोनों देशों के नागरिक बिना किसी पासपोर्ट–वीजा के आया करते थे। आज भी भारत नेपाल को अपना अच्छा मित्र मानता है‚ लेकिन पिछले कुछ महीनों से न जाने किसकी काली नजर लग गई‚ जिससे नेपाल ने पूरा तेवर ही बदल दिया। चाहे नेपाल में आने वाला विनाशकारी भूकंप हो या अन्य समस्याएं‚ नेपाल की मदद को भारत हमेशा तैयार रहता है। नेपाल की संसद में सीमा विधेयक को पारित करने से सीमा विवाद और गहरा हो रहा है। दोनों देशों को हर स्तर पर अपने संबंधों को बचाना चाहिए। विश्व में इतना बड़ा उदाहरण और कहां हो सकता है‚ जहां बिना पासपोर्ट और वीजा के यात्रा की जा सके॥

भ्रष्टाचार और लालफीताशाही बड़ी बाधा

प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के तहत विदेशी कंपनियों के निवेश को लेकर किया गया विश्लेषण सटीक है। निश्चित ही हमारे देश का आधारभूत ढांचा और अन्य परिस्थितियां अभी ऐसी नहीं हैं जो चीन से बाहर निकलने को आतुर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी ओर आकर्षति कर सकें। आजादी के बाद इस देश की नीति नियंत्रक राजनीति का उद्देश्य राष्ट्र-विकास की अपेक्षा स्व-विकास बन गया। जिसके फलस्वरूप राजनीति में भ्रष्टाचार और कदाचार को प्रश्रय मिलने लगा। ऐसे में राजनीति की चेरी बन चुकी देश की प्रशासनिक मशीनरी भी इससे अछूती नहीं रही। आज भले ही प्रधानमंत्री मोदी का सपना भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का है, लेकिन इस देश की राजनीति और लालफीताशाही में व्याप्त आधिकारिक भाव और तद्जन्य भ्रष्टाचार विकसित और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं। यद्यपि अब देश में विकास योजनाओं के क्रियान्यवयन को लेकर वैसी स्थिति नहीं रही जिसके संबंध में यह कहा जाता रहा है कि विकास के नाम पर केंद्र से निकलने वाला एक रुपया मूल लाभार्थी तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे रह जाता है, शेष 85 पैसे ऊपर से नीचे तक की हिस्सेदारी की भेंट चढ़ जाता है। अब मोदी की डिजिटल इंडिया में केंद्रीय विकास योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थी को मिल रहा है। बावजूद इसके ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर भ्रष्टाचार के आदी लोग हर चौकसी का तोड़ निकाल ही लेते हैं। अब जहां तक विदेशी कंपनियों के निवेश का प्रश्न है तो वे भी पग-पग पर नियमों का हवाला देकर अवरोध पैदा करने वाली भारत की प्रशासनिक मशीनरी से सशंकित हैं। ऐसे में सरकारी काम-काज को निर्बाध रूप से संपादित करने के लिए डिजिटल इंडिया के न्यू कांसेप्ट को बढ़ावा देकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की जरूरत है

सिनेमा जगत से स्तब्धकारी खबर

सिनेमा जगत से ऐसी खबर निकलकर आई जिसने लोगों के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। समाज में कुछ ऐसे भी चेहरे होते हैं जिनसे हम कभी रूबरू तो नहीं हुए रहते सिवाय बड़े पर्दे के लेकिन उनके चले जाने से दर्द अपनों जैसा होता है। इतनी कम उम्र में अभिनय की दुनिया में बड़ा मुकाम हासिल करने वाले सुशांत सिंह राजपूत के जाने से उनके करोड़ों चहेते स्तब्ध हैं। हाल ही में आई फिल्म ‘छिछोरे' में सुशांत ने खुदकुशी न करने के बारे में बताया और वह असल जिंदगी में खुद आत्महत्या कर सकते हैं‚ यह हर कोई मानने से इनकार कर रहा है। सुशांत के जाने से बॉलीवुड ही नहीं बल्कि बिहार ने भी अपना अमूल्य कलाकार खो दिया है।

तकलीफ में नर्स

पीपीई किट जो डॉक्टरों का एक मात्र सहारा है‚ लेकिन अब यह डॉक्टर महिलाओं के लिए आफत बन गई। हर महीने होने वाली मासिक समस्या से हर महिला को गुजरना होता है। डॉक्टर महिलाओं को भी इस समस्या से गुजरना होता है। महिला डॉक्टरों व नर्स ८ घंटे काम कर रही हैं‚ जिसके कारण उन्हें मासिक धर्म में काम करना पड़ रहा है। एक पैड को केवल ५ घंटे तक ही इस्तेमाल करना होता है ‚ लेकिन महिला वॉरियर्स को एक पैड में ८–८ घंटे से ज्यादा समय गुजारना पड़ रहा है। इन सब तकलीफों से आजिज आकर नर्सों ने ४ घंटे ड्यूटी की मांग की है। सरकार इस पर क्या फैसला लेगी‚ वो तो समय बताएगा पर क्या सरकार को वॉरियर्स की परेशानियों का समाधान नहीं करना चाहिए॥

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...